प्रेरणादायक कहानी: दानवीर राजा की परीक्षा राजा नरेश चंद्र अपने दानी स्वभाव और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। एक भयंकर सूखा पड़ने पर, उन्होंने अपनी प्रजा की मदद के लिए हर संभव प्रयास किया। इंद्र ने राजा की दानवीरता देखकर उसे आशीर्वाद दिया। प्रजा लौट आई और राज्य में खुशहाली वापस आई। By Lotpot 05 Aug 2024 in Stories Motivational Stories New Update दानवीर राजा की परीक्षा Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 प्रेरणादायक कहानी: दानवीर राजा की परीक्षा:- रामपुर के राजा नरेश चन्द्र बहुत ही दानी स्वाभाव के थे। उनके दरबार से कभी कोई याचक खाली हाथ नहीं लौटता था। दानी होने के साथ-साथ नरेश चन्द्र एक योग्य राजा भी थे। वे अपनी प्रजा के सुख-दुख का पूरा ध्यान रखते थे। अच्छा और दानी राजा मिल जाने के कारण वहां की प्रजा हमेशा राजा के गुणों को प्रशंसा करते रहते थे। राजा नरेश चंद्र का दानी स्वभाव और राज्य की सुख-समृद्धि नरेश चन्द्र ने अपने महल के बाहर एक बड़ा घंटा लगा दिया था जब किसी को राजा की सहायता की आवश्यकता पड़ती वह घंटा बजा देता और कुछ ही देर में राजा स्वयं उसकी सेवा में हाजिर हो जाते थे। इसी तरह रामपुर राज्य की प्रजा सुख से अपनी जिन्दगी गुजार रही थी। एक बार गर्मियों में राज्य में भंयकर सूखा पड़ा, सभी नदी, झीलों और तालाबों का जल स्तर पहले तो कम हुआ फिर एक एक करके वह सभी सूखने लगे। पानी के अभाव में खेत की फसल भी बेकार हो गई, सर्वत्र पानी और भोजन के लिए त्राहि-त्राहि मच गई। भयंकर सूखा और राज्य की विकराल स्थिति नरेश चन्द्र ने अकाल से निपटने के लिए राज्य के गोदामों में मुफ्त अनाज बंटवाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने खजाने का काफी धन कुंए आदि खुदवाने में लगवा दिया परन्तु इतना कुछ करने के बावजूद भी सूखे को स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हुआ। धीरे-धीरे राज्य के गोदामों का सारा अनाज और राजसी खजाना भी खत्म हो गया। राज्य के लोग दूसरे राज्य में जाने लगे। एक दिन मंत्रीजी ने राजा को समझाते हुए कहा "महाराज अकाल की स्थिति अब काफी विकराल हो गई है, वर्षा का भी कोई संकेत नहीं है। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम भी कहीं दूसरे राज्य में चले जाएँ, बाद में स्थिति सुधरते ही हम वापस राज्य में लौट आंएगे"। राजा का निर्णय और मंत्री की सलाह मंत्री जी की बात सुनकर राजा तनिक मुस्कुरा कर बोले- "मंत्री जी! मैं आपकी बात समझ सकता हूं पर मैं अपने पूर्वजों की धरती छोड़कर भला दूसरी जगह कैसे जा सकता हूं। हां अगर आप दूसरी जगह जाना चाहते हो तो जा सकते हो मेरी तरफ से कोई रूकावट नहीं है"। मंत्री जी ने राजा को समझाने का काफी प्रयास किया पर राजा अपना राज्य छोड़कर दूसरी जगह जाने को तैयार नही हुए धीरे धीरे सारी प्रजा राज्य छोड़कर अन्यत्र चली गई बस राज्य में केवल राजा नरेश चंद्र और उनके मंत्री जी बच गये। भोजन-पानी के अभाव में बड़े कष्ट से उन दोनों का जीवन गुजर रहा था। दो-तीन दिनों में एक बार उनको भोजन नसीब होता। कभी-कभार वह भी नहीं। एक दिन मंत्री जी ने गोदाम में बिखरे पड़े कुछ गेंहू के दानों को चुन कर उन्हें पीस कर दो रोटी बनाई और कहीं से एक लोटा पानी लाकर राजा को देते हुए कहा "महाराज आप ने चार दिनों से भोजन नहीं किया है कृपया यह रोटी खाकर और पानी पीकर अपनी भूख शांत कीजिए। राजा ने एक रोटी ली और दूसरी मंत्री जी को देकर कहा- "मंत्रीजी! आप भी भूखे हैं एक रोटी आप भी खाइए"। भगवान इंद्र की परीक्षा और वृद्ध का आगमन मंत्रीजी ने एक ही बार में रोटी खाकर दो घूंट पानी पिया ओर शेष जल राजा जी के लिए छोड़ दिया। नरेश चन्द्र ने जैसे ही रोटी का पहला निवाला खाने के लिए मुंह की ओर बढ़ाया तभी उन्हें, बाहर से किसी की करूण आवाज सुनाई पड़ी। आवाज सुनकर राजा चौंक गए। रोटी का टुकड़ा थाली में ही रखकर उन्होंने कहा- "बाहर कौन है? अंदर आओ"। अगले ही पल एक पतला-दुबला वृद्ध पुरूष राजा के समक्ष उपस्थित हुआ। उसके तन के कपड़े फटे हुए थे। उस वृद्ध ने अपने कांपते हाथों से हाथ जोड़ते हुए करूण स्वर में कहा, "महाराज अकाल के कारण मेरे परिवार के सभी सदस्य मुझ वृद्ध को अकेला छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले गए हैं। मैंने पिछले कई दिनों से अन्न का एक दाना मुंह में नहीं डाला है। कपया मुझे कुछ भोजन दीजिए"। वृद्ध की व्यथा सुनकर नरेश चन्द्र ने तुरंत अपने हिस्से की रोटी और पानी उसकी ओर बढ़ा कर कहा, "मेरे पास इस वक्त यह सूखी रोटी और थोड़ा सा जल है। इसे ग्रहण कर अपनी भूख मिटाइए" रोटी देखकर वृद्ध उस पर टूट पड़ा। राजा की दानवीरता की स्वीकृति और आशीर्वाद राजा ने अपना कपड़ा उतारकर बृद्ध को पहना दिया। भोजन करने के पश्चात वृद्ध ने मुस्कुरा कर राजा से कहा "महाराज मैं कोई वृद्ध नहीं बल्कि भगवान इंद्र हूँ और आपके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए इस भेष में आपके पास आया था। आपके दान के आगे मैं नतमस्तक हूं। मैंने आपके दानी होने के बारे में केवल सुना ही था, आज परख भी लिया, धन्य है आपकी प्रजा जिसे आप जैसा राजा मिला आज के बाद इस राज्य में कभी सूखा नहीं पड़ेगा," इतना कहकर भगवान इन्द्र अपने असली रूप में आ गए और नरेश चन्द्र को आशीर्वाद देकर अदृश्य हो गए। अगले ही पल बादलों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई और देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी। राज्य की सभी नदियां, झील और तालाब पानी से भर गए। सारी प्रजा भी राज्य में लौट आई राज्य में एक बार फिर से पुरानी खुशहाली वापस लौट आई। कहानी से सीख: सच्ची दानवीरता और परोपकार में ही सबसे बड़ी शक्ति है। जब आप कठिन परिस्थितियों में भी दूसरों की मदद करते हैं, तो उसकी सराहना अंततः सच्ची सफलता और आशीर्वाद के रूप में मिलती है। यह भी पढ़ें:- प्रेरणादायक कहानी: निंदक नियरे राखिए हिंदी प्रेरक कहानी: प्रार्थना और भगवान हिंदी प्रेरक कहानी: अद्भुत देशप्रेम Motivational Story: आशु की होशियारी #प्रेरणादायक कहानी #दानवीर राजा की कहानी #दानवीर राजा की परीक्षा #danveer raja ki kahani #Hindi story of a king #Kids Hindi Motivational Story You May Also like Read the Next Article