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गड़रिये की समझदारी
प्रेरणादायक कहानी: गड़रिये की समझदारी:- आभानगरी इलाके में दूर-दूर तक फैला एक विशाल जंगल था। अरावली की सुरम्य पहाड़ियों से घिरा यह स्थल नाना प्रकार के पशु-पक्षियों की किलकारियों से दिन-भर गूंजता रहता था। सुदूर क्षेत्रों से कई मनभावन पक्षी यहां मौसम के अनुसार आते, जंगल के स्वच्छन्द वातावरण में विचरण करते और लौट जाते। जंगल के मध्य में स्थित विशाल सरोवर में जल-क्रीड़ा करते पक्षियों को देखकर प्रकृति स्वयं आनन्दित हो उठती स्वतंत्रता के शंखनाद से वातावरण गूंज उठता था।
शिकारियों की आक्रमण और जंगल की तबाही
समय का फेर हुआ कुछ शिकारियों की नजर इस जंगल पर पड़ी। शिकारियों ने जंगल के आसपास डेरा डाल लिया। निरीह पक्षियों को पकड़ना, खाना और बेच आना ही उनका धंधा हो गया। स्वच्छन्द उड़ान भरने वाले पक्षी शिकारियों का भोजन और पिंजरों की शोभा बनकर रह गये। धीरे-धीरे सारा जंगल पक्षियों से खाली हो गया। सुदूर क्षेत्रों से आने वाले पक्षियों ने भी भयभीत होकर अपने रास्ते बदल लिये। पूरे जंगल में मौत सी वीरानी छा गई। अब तो प्रकृति ने भी अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया। सूरज जो पक्षियों की चहचाहट सुनकर उगता था, ने उगना बंद कर दिया। चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा छा गया। पेड़-पौधे मुरझा गये। जंगल की सारी हरियाली नष्ट हो गई, सरोवर सूख गया। हरियाली के बिना वर्षा ने भी अपना मार्ग बदल लिया।
राज्य में फैला संकट और राजा की परेशानियाँ
जंगल के आस-पास के सम्पूर्ण क्षेत्र में काल की स्थिति छा गई। खेती और काम धंधे चौपट हो गये। भूख और प्यास से त्रस्त लोग गांव छोड़कर अन्यत्र जाने लगे। पूरे राज्य में हाहाकार मच गया। राजा और प्रजा भी दु:खी हो गये। सारा राजकोष खाली हो गया। कोई प्रकृति के इस अद्भुत कोप को समझ नहीं पा रहा था। राजा ने कई यज्ञ और अनुष्ठान सम्पन्न करवाये पर कोई परिवर्तन नहीं हुआ। राजा ने घर-घर जाकर जनता से प्रार्थना की कि संकट की इस घड़ी में विवेक से काम लें और प्रकृति के इस कोप का हल ढूँढने में मदद करें। राजा ने भी सम्पूर्ण राज्य एवं आस-पास के इलाके में यह घोषणा करवा दी कि जो भी इस संकट से राज्य को मुक्त करवायेगा उसे महामंत्री बनाया जायेगा।
भीमसेन का अद्भुत समाधान और राजा की घोषणा
गांव के गड़रिये भीमसेन ने भी राजा की घोषणा सुनी। भीमसेन भेड़ें चराता था पर था बुद्धिमान। जंगल में भेड़ें चराते-चराते वह पक्षियों की भाषा का ज्ञाता हो गया था। वह पक्षियों की भाषा समझ लेता और उनकी भाषा बोलकर वापस समझा भी सकता था। अकाल पड़ने से उसका भेड़ चराने का धंधा भी चौपट हो गया। भीमसेन गांव की एक गली से गुजर रहा था। उसकी नजर पिंजरे में कैद पक्षियों के एक जोड़े पर पड़ी। दोनों पक्षी आपस में बतिया रहे थे। भीमसेन उनके नजदीक जाकर बैठ गया और उनकी बातचीत सुनने लगा।
दोनों पक्षी आपस में अपने पुराने सुखद दिनों को याद करके आंसू बहा रहे थे और दुष्ट शिकारियों को कोस रहे थे तथा प्रकृति के इस कोप का मुख्य कारण उन शिकारियों को बता रहे थे। भीमसेन को सारा मामला समझ में आ गया। वह तत्काल राजा के पास गया और उन्हें सारी बात समझाई। राजा ने भी उसी समय सिपाही भेजकर सभी शिकारियों को कैद कर लिया और उन्हें मृत्युदण्ड दिया।
राज्य में खुशहाली की वापसी और भीमसेन की मान्यता
भीमसेन की योजनानुसार राजा ने पूरे राज्य में यह घोषणा करवाई कि राज्य में आई इस विपदा का हल खोज लिया गया है। जिस किसी भी घर में पिंजरों में पक्षी कैद हैं वे उन्हें लेकर राजमहल आ जायें। सभी लोग कौतूहल वश राजमहल की ओर पिंजरे लेकर चल पड़े। देखते ही देखते पिंजरों में कैद हजारों पक्षी वहां इकट्ठे हो गये।
भीमसेन ने सभी पक्षियों को उनकी भाषा में सारी बात समझाते हुए आजाद कर दिया, सभी पक्षी चहकते उड़ चले। पक्षियों की चहचहाहट सुनकर सूरज उग गया। आकाश में बादल उमड़ आए और बरसात होने लगी। कुम्लहाए पेड़-पौधे फिर जी उठे। पूरे राज्य में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी। राजा ने भीमसेन को महामंत्री बनाने की घोषणा की। सारी प्रजा महामंत्री भीमसेन की जय जयकार कर उठी।
कहानी से सीख: सच्ची समझदारी और साहस से कठिन समस्याओं का समाधान संभव है। भीमसेन ने अपनी विशेषता और बुद्धिमत्ता से राज्य को संकट से उबार लिया, जिससे यह साबित हुआ कि छोटे लोग भी बड़े बदलाव ला सकते हैं।