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पेड़ और लकड़हारा
प्रेरणादायक हिंदी कहानी: पेड़ और लकड़हारा:- गांव की आबादी से थोड़ी दूरी पर एक पहाड़ी थी, जहां कुछ छोटी-छोटी झाड़ियां थी। उन झाड़ियों में चुन्नी नामक एक चिड़िया घोंसला बनाकर रहती थी। एक दिन चिड़िया अपने बच्चों के लिए दाना चुगने कहीं दूर निकल गई, जहां उसे एक दाना पड़ा मिला। दाना उठाकर वह अपने घोंसले में ले आई, मगर वह दाना असल में एक पेड़ का बीज था, जो बड़ा होने की वजह से बच्चे नहीं निगल सकते थे। चुन्नी ने उस बीज को पत्थर पर पटक-पटक कर छोटा बनाने की पूरी कोशिश की, मगर उसे सफलता मिलनी तो दूर, उलटे बीज छिटक कर कहीं दूर जा गिरा और पत्थरों के दरार में कहीं गुम हो गया। चुन्नी ने उसे बहुत ढूंढा, मगर वह नहीं मिला। अंत में मायूस होकर वह किसी दूसरे दाने की कोशिश में उड़ गई।
बीज का संघर्ष
दरार में फंसे बीज को बीतते समय के साथ धूल और कणों ने पूरी तरह ढक लिया था। फिर बारिश का मौसम आया। बारिश हुई तो बीज पानी में फूल गया और गर्मी पाकर अंकुर बन गया। कुछ सप्ताह बाद अंकुर से कोंपल बनकर जमीन के ऊपर निकल आया। फिर धीरे-धीरे छोटा-सा पौधा बढ़ता गया।
एक दिन एक लकड़हारा उस तरफ से गुजर रहा था। जब उसकी नजर पौधे पर पड़ी तो उसने महसूस किया कि पौधा जलाने लायक हो गया है। वह कुल्हाड़ी लेकर पौधे की तरफ बढ़ा तो पौधा कांप उठा और ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, "हे प्रभु, मेरी रक्षा करना। जब से मैं उगा हूं, अनेक बार मुझपर संकट आए और हर बार तूने मेरी रक्षा की। इस बार भी तू ही बचाएगा, इस जालिम से मुझे"।
पौधा अभी ईश्वर से प्रार्थना कर ही रहा था कि इसी बीच वह पीला पड़ने लगा। फिर सुर्ख होकर थर-थर कांपने लगा। यह दृश्य देखकर लकड़हारा इतना भयभीत हो उठा कि पौधे को जादू का पौधा समझ प्राण लेकर भागा।
पेड़ का विकास
पौधे की यह हार्दिक इच्छा थी कि बड़ा होने के बाद संसार के सभी प्राणियों के काम आए। चिड़िया उसकी शाखाओं पर घोंसले बनाएं, गिलहरियां इस डाल से उस डाल इठलाती फिरें, मोर छांव तले झूम-झूमकर नाचें, हाथी टहनियों और पत्तियों से अपना पेट भरें तो मनुष्य पके-पके फलों का आनंद लें। इसके अलावा पर्यावरण को संतुलित रखने में भी विशेष योगदान करे लेकिन लकड़हारे का विचार मन में आते ही पौधा उदास हो जाता। उसे मनुष्यों की मूर्खता पर रोना आता कि वह उनके लिए क्या-क्या सोचता है, मगर मनुष्य है कि उसके अस्तित्व को ही मिटा देने पर तुला है।
इस प्रकार की बातों पर रोते-रोते पौधा, पेड़ बन गया। वह बेहद प्रसन्न था कि अब अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकेगा। तब नि:संदेह कम से कम इंसान की आंख जरूर खुलेगी और अपनी मुर्खता पर शर्मिन्दा होने के साथ-साथ उसके सदूगुणों की प्रशंसा भी करेगा।
ऐसा हुआ भी। पेड़ बड़ा हुआ तो सभी शरण में आने लगे। बंदर, मैना, तितली, मोर, हाथी, ऊंट इत्यादि। पेड़ ने गिलहरी को अपनी शाखा पर इतराते-फुदकते देखा तो उसे तुरंत अपना बचपन याद हो आया। तब वह कोंपल था। गिलहरी की नजर जब उस पर पड़ी थी तो वह चट कर जाने के लिए मचल उठी थी। वह तो किसी पतंगे की कृपा कहिए कि बेचारा कहीं से उड़ता हुआ आया और सीधे गिलहरी के मुंह में घुस गया। फिर क्या था, पतंगे को खा लेने के बाद गिलहरी की भूख मिट-सी गई थी, वरना उस रोज कोपल की खैर नहीं थी।
पेड़ अपनी छांव तले चरते मेमने को भी देखकर अतीत में खो गया था। तब वह नन्हा पौधा था। एक रोज एक मेमना कहीं से चरता हुआ उसके नजदीक आ गया था। मगर चरवाहे ने समय पर आकर उसको मेमनें के पेट में जाने से बचा लिया था।
समझदारी और पेड़ की उदारता
"हे प्रभु, रक्षा करना मेरी"। पेड़ एक बूढ़े लकड़हारे को भी अपनी छांव के नीचे आराम करते देख सिहर उठा। क्योंकि यह वही लकड़हारा था, जो कभी कुल्हाड़ी लेकर उसे काटने आया था, मगर ईश्वर की लीला से उसे पीला फिर सुर्ख होते देख वह डरकर भाग खड़ा हुआ था।
पेड़ को थर-थर कांपते देख लकड़हारा लज्जित हो उठा और भारी कंठ से बोला, "डरो नहीं पेड़ मैं तुम्हे क्षति पहुँचाने नही, बल्कि तुमसे लाभ उठाने आया हूं। उस रोज यदि मैं तुम्हें काट देता तो आज के रोज इस तेज धूप से बचने के लिए भगवान जानें मैं किससे ठंडी छांव मांगता। वह तुम ही तो हो, जिसके मीठे-पके फल दरकार हैं, क्योकि मैं हद भूखा हूं। यही नहीं, मुझे कुछ पौधे भी चाहिए। तुम्हारे अस्तित्व को खतरे में डालकर हम इंसान खुद संकट मे घिर गए हैं। तुम समझ सकते हो कि तुमसे उपेक्षित होने के नतीजे में हमें कैसी-कैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है"।
लकड़हारे की बात सुनकर पेड़ को विश्वास हो गया कि वह अब समझदार हो गया है और उसके अस्तित्व को संकट में डालने जैसी मूर्खता नहीं दोहराएगा। अत: इस खुशी में वह झूम-झूमकर पके-पके फल गिराने लगा, ताकि लकड़हारा अपना पेट भर सके।
कहानी से सीख: कहानी यह सिखाती है कि प्रकृति के साथ समझदारी और सम्मानपूर्ण संबंध रखना सभी के लिए लाभकारी होता है और यही प्राकृतिक संतुलन की कुंजी है।