निष्कपट हाथी- एक वक्त था जब वाराणसी में ब्रह्मदत्ता का राज हुआ करता था, उसी शहर में लकड़हारा की बस्ती हुआ करती थी। हर दिन लकड़हारा नदी के किनारे पेड़ काटने जाते और जंगल से लकड़ियां लेकर आते थे। एक दिन लकड़हारा दोपहर का खाना खा रहा था, तभी उन लोगों ने देखा कि एक हाथी सामने लड़खड़ाता हुआ आ रहा है। हाथी ने अपना पैर आगे कर मदद की गुहार लगाई," मैं कहीं चढ रहा था और शायद मेरा पैर में कांटा धस गया है "। लकड़हारा ने देखा और कहा कि, हम इसे निकाल देंगे। लकड़हारा ने उस कांटा को निकाल दिया और हाथी के घाव पर मरहम भी कर दी। हाथी को थोड़ी ही देर में आराम मिल गया और वो लकड़हारा का बहुत आभारी हो गया। हाथी ने कहा कि,"अब मैं रोज यहां आप लोगों की मदद करने के लिए आऊंगा। कई सालों तक हाथी ने उन लोगों की मदद की। एक दिन लकड़हारा ने देखा कि एक बच्चा हाथी बड़े हाथी के साथ आ रहा है। हाथी ने कहा कि,"मैं अब बूढ़ा हो गया हूं, इसलिए मैं अपने बेटे को लेकर आया हूं, अब वो आप लोगों की मदद करेगा "। छोटा हाथी बहुत ही कर्मठ था। वो फटाफट सारे काम कर देता था। लकड़ियां काटना उन्हें उठाना हर काम करता था। छोटे हाथी ने कारपेंटर के चेहरे पर हंसी ला दी और वह बहुत जल्द ही उनके परिवार का हिस्सा बन गया। एक दिन अचानक कुछ छोटे हाथी बारिश की वजह से पानी में बह गए, लेकिन बड़े हाथी उस गंदे पानी में जाकर उन्हें बाहर निकालने से इंकार करने लगे। हाथी के रखवालों ने राजा को इस बात की खबर दी। राजा खुद उन्हें ढूंढने लगे। राजा को पता चला कि ये हाथी लकड़हारा के हैं। उन्हें अपने पास आता देखकर लकड़हारा हैरान हो गए। तभी बड़ा हाथी आगे आया और उसने कहा कि, ये लोग बहुत अच्छे हैं, इन लोगों ने अब तक मेरा बहुत ख्याल रखा है, मैं इनका आभारी हूं। राजा ने लकड़हारा को इनाम के तौर पर बहुत कुछ देना चाहा, लेकिन हाथी ने मना कर दिया। उसने कहा कि, ये लोग इतने गरीब है कि, इन्हें मदद की जरूरत है। राजा हाथी की सच्चाई देखकर खुश हो गया और लकड़हारा के परिवार को मदद करने को तैयार हो गए। इस वादे के साथ हाथी राजा के साथ जाने को तैयार हो गया। वाराणसी में जश्न का माहौल था। सब लोग नए मेहमान के आने की खुशी में जश्न मना रहे थे। राजा ने हाथी को अपना भाई माना और कहा कि,"तुम मेरे साथ हमेशा रहना"। दोनों साथ में खाना खाते थे। राजा को पता चला कि उनकी पत्नी मां बनने वाली हैं। उन्होंने हाथी को अपने लिए लकी माना और उसका शुक्रिया अदा भी किया। लेकिन राजा की खुशी बहुत कम वक्त के लिए थी। कुछ ही दिनों में राजा बीमार हो गए और उनकी मृत्यु भी हो गई। हाथी को इस बात की कोई खबर नहीं दी गई क्योंकि राजा और हाथी बहुत करीब थे। इस खबर के बाद शायद हाथी खाना-पीना छोड़ दे। इस मौके का फायदा उठाकर कोसाला के राजा ने वाराणसी को अपने कब्जे में करने की मुहिम छेड दी। मंत्री ने इस युद्ध को कुछ दिनों के लिए टालने को कहा। मंत्री ने कहा कि, एक हफ्ते में राजा को बच्चा होने वाला है, अगर उनको बेटा हुआ तो हम युद्ध करेंगे और बेटी हुई तो बगैर किसी का खून बहाए हम वाराणसी आपको सौंप देंगे। रानी को बेटा हुआ और दोनों प्रदेशों के बीच युद्ध की तैयारी शुरू हो गई। लेकिन नेतृत्व के अभाव की वजह से वाराणसी की प्रजा हार गई। रानी को इस हार की सूचना दी गई। वे दुखी मन से हाथी के पास पहुंची और उन्हें राजा के मरने की खबर सुनाई और कहा कि, अगर राजा तुम्हारे लिए कोई माईने रखते थे तो तुम इस बच्चे की जिम्मेदारी जरूर ले लेना। हाथी ने एक हफ्ते से कुछ भी नहीं खाया था, लेकिन राजा की मौत की खबर सुनकर वो टूट गया। हाथी ने कहा कि, अब राजा का बेटा इस प्रदेश में राज करेगा। रानी ने हाथी के लिए दुआ मांगी। कोसाला और वाराणसी के बीच युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। इस बार वाराणसी की जीत हुई। हाथी बड़े ही गर्व के साथ रानी के पास गया और प्रिंस से कहा कि, अब तुम्हारे ही हाथों में राज्य की बागडोर है। यह कहानी हमें निःस्वार्थ सेवा, कृतज्ञता और निष्ठा की महत्वपूर्ण सीख देती है। हाथी ने अपनी सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा और निःस्वार्थ सेवा से सभी का दिल जीत लिया। वह अपने उपकारों का प्रतिदान करने के बजाय दूसरों की मदद करता रहा, चाहे वह लकड़हारा हो, राजा हो, या राज्य की प्रजा। जीवन में अपनाने योग्य बातें: निःस्वार्थ सेवा: दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है। कृतज्ञता: जिन्होंने हमारा साथ दिया, उन्हें सदा सम्मान दें। नेतृत्व: कठिन समय में सही नेतृत्व एक बड़ी जीत दिला सकता है। दृढ़ता और साहस: मुश्किलों में हिम्मत और संकल्प रखना जरूरी है। त्याग और समर्पण: दूसरों के लिए अपना योगदान देकर दुनिया को बेहतर बनाया जा सकता है। यहाँ पढ़ें और मोरल स्टोरीज : - सच्चाई की ताकत: ईमानदारी का अनमोल सबक Moral Stories : दयालुता का फल बाल कहानी : रवि और उसकी मेहनत गणेश जी को प्रथम पूजनीय बनाने की कथा