बाल कहानी : अभी देर नहीं हुई...

प्रताप और प्रकाश बचपन से साथ पढ़े थे। प्रताप आजकल दिल्ली में नौकरी कर रहा था प्रकाश अपने पुराने शहर में ही रह रहा था प्रकाश अपने दफ्तर के काम से दिल्ली आया था। अपना काम खत्म कर के उसने कुछ समय अपने दोस्त के साथ बिताया।

By Lotpot
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बाल कहानी : अभी देर नहीं हुई...- प्रताप और प्रकाश बचपन से साथ पढ़े थे। प्रताप आजकल दिल्ली में नौकरी कर रहा था प्रकाश अपने पुराने शहर में ही रह रहा था

प्रकाश अपने दफ्तर के काम से दिल्ली आया था। अपना काम खत्म कर के उसने कुछ समय अपने दोस्त के साथ बिताया।

प्रकाश शाम को वापिस अपेन घर आ रहा था। प्रताप अपने दोस्त को रेलवे स्टेशन पर छोड़ने के लिए आया। जब वे दोनो..प्लेटफार्म पर जा रहे थे तभी एक लड़की उनके पास आई और बोली ‘मेरी मां बहुत बीमार थी वे चाहती थी कि मैं उनसे एक आखिरी बार मिल लूं। किन्तु मैं अपने काम में इतनी व्यस्त थी कि उनसे मिलने न जा सकी। अब मेरी मां का स्वर्गवास हो गया है। मैं उनके अंतिम दर्शन को जा रही थी कि किसी ने मेरा पर्स छीन लिया। अब मेरे पास टिेकट के भी पैसे नहीं हैं। क्या आप टिकट खरीदने में मेरी मदद कर सकते हैं?’

दोनों दोस्तों को पहले तो लड़की की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्हें लगा कि वह लड़की उन्हें धोखा दे रही है। पर फिर उस लड़की के आंसुओं को देखकर उन्हें लगा कि लड़की सच बोल रही है। यह सोचते हुए प्रकाश ने उससे पूछा, ‘‘तुम्हारे शहर तक का टिकट कितने का है?’’

‘‘केवल अस्सी रूपये’’ उस लड़की ने धीमी आवाज में जवाब दिया। प्रकाश ने उसे 100 रूपये का नोट दिया और बोला कि बचे हुए पैसे सफर में काम आयेंगे। जाओ और एक अंतिम बार अपनी मां के दर्शन कर लो’’। लड़की ने फटाफट उसके हाथ से नोट लिया और टिकट खिड़की की तरफ दौड़ पड़ी।

अभी ट्रेन आने में कुछ समय था अतः प्रकाश और प्रताप ने सोचा चलो पास की दुकान में कुछ खा-पी लिया जाये। खा-पी कर वे वापिस प्लेटफार्म पर आ गये। ट्रेन अब आ चुकी थी। प्रकाश को ट्रेन में बैठा कर प्रताप वापिस अपने घर की ओर चल दिया।

बस की ओर जाते हुए उसने फिर उस लड़की को देखा जो ट्रैन की तरफ जा रही थी। शायद उस लड़की के आंसू देखकर अचानक प्रताप को एक झटका लगा। अभी-पिछले सप्ताह ही उसे उसकेे चाचा का खत मिला था जिसमें उन्होनें लिखा था कि प्रताप की मां की तबीयत बहुत खराब है। प्रताप अपनी मां को अपने पास लाना चाहता था पर उसका एक कमरे का घर उसकी बीवी और बच्चांे को ही छोटा पड़ता था तो उसमें अपनी मां को वह कैसे रखता। इसलिए उसने उन्हें अपने रिश्तेदारों के साथ पुश्तैनी घर में ही छोड़ रखा था।

अगर ऐसे ही किसी दिन मेरी मां भी बिना किसी से मिले स्वर्गवासी हो गई तो? ऐसा सोच कर प्रताप के रोंगटे खड़े हो गये। उसने सोचा ‘क्या पैसे भेज देना ही काफी है?’

‘‘उसकी मां अन्तिम सांसों को गिनते समय कितनी अकेली होंगी?’’ यह सोच कर वह सिहर उठा। बस फिर क्या था, वह फटाफट टिकट खिड़की की तरफ दौड़ा और इससे पहले कि ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ती वह टिकट ले कर ट्रेन में बैठ गया-अपने शहर, अपनी मां के पास जाने के लिए।

कहानी से सीख : 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता का प्यार और उनकी सेवा सबसे महत्वपूर्ण है। अक्सर हम अपने काम और जिम्मेदारियों में इतने उलझ जाते हैं कि अपने बुजुर्ग माता-पिता की भावनाओं और उनकी ज़रूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं। केवल आर्थिक मदद देना काफी नहीं होता, बल्कि उनका साथ देना, उनके साथ समय बिताना और उनकी देखभाल करना भी उतना ही आवश्यक है।

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