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एक और कदम: प्रेरणा की लघु कहानी- नमस्ते दोस्तों! क्या आपने कभी सोचा कि सफलता कभी-कभी एक कदम दूर होती है? आज हम एक best hindi story लेकर आए हैं, जो एक व्यापारी और मूर्तिकार की प्रेरक हिंदी कहानी है। यह प्रेरक लघु कहानी आपको मेहनत और दृढ़ संकल्प का महत्व सिखाएगी। तो चलो, इस रोचक सफर पर चलें!
शुरुआत और आशा का पत्थर
एक छोटे से गांव में रहने वाले व्यापारी गोपाल को भगवान पर गहरा विश्वास था। एक दिन वह दूसरे शहर से लौट रहा था। बस से उतरकर पैदल चलते समय उसे रास्ते में एक चमकता हुआ पत्थर दिखा। गोपाल की नजर उस पर ठहर गई, और वह मुस्कुराया, "यह तो कमाल का पत्थर है! इसे लेकर माता की खूबसूरत मूर्ति बनवाऊंगा।" उसने पत्थर उठा लिया और निश्चय किया कि इसे मूर्तिकार के पास ले जाना है।
रास्ते में उसने एक मूर्तिकार, रमेश, की दुकान पर रुककर कहा, "भाई रमेश, इस पत्थर से एक सुंदर माता की मूर्ति बना दो।" रमेश ने सहमति जताई, "ठीक है, गोपाल भाई। कुछ दिन बाद आकर ले जाना, मैं कोशिश करूंगा।" गोपाल खुश होकर चला गया।
पहला प्रयास और असफलता
रमेश ने अपने औजार उठाए और पत्थर को तराशने लगा। पहला वार करने पर उसे एहसास हुआ कि पत्थर बहुत सख्त है। वह जोश से बोला, "चलो, एक और कोशिश!" लेकिन पत्थर पर असर नहीं हुआ। पसीने से लथपथ होकर वह लगातार हथौड़े चलाता रहा। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी पत्थर नहीं टूटा। थककर रमेश ने सोचा, "शायद यह मेरे बस की बात नहीं।"
कुछ दिन बाद गोपाल मूर्ति लेने आया। रमेश ने मायूस होकर कहा, "गोपाल भाई, मैंने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन यह पत्थर नहीं टूटा। मूर्ति नहीं बन सकती।" गोपाल उदास हो गया और बोला, "अच्छा, ठीक है। पत्थर वापस ले जाता हूँ।" वह पत्थर लेकर चला गया।
दूसरा मौका और सफलता
गोपाल ने दूसरे मूर्तिकार, सूरज, की दुकान पर जाकर वही पत्थर सौंपा। सूरज ने हंसते हुए कहा, "चलो, देखते हैं क्या हो सकता है।" उसने पहला हथौड़ा मारा, और आश्चर्यजनक रूप से पत्थर टूट गया, क्योंकि रमेश की मेहनत ने उसे पहले ही कमजोर कर दिया था। गोपाल खुशी से चिल्लाया, "वाह, सूरज भाई! अब जल्दी से मूर्ति बना दो।"
सूरज ने चट्टान को तराशकर माता की एक मनमोहक मूर्ति बना दी। गोपाल ने मूर्ति को अपने मंदिर में स्थापित किया और मन ही मन सोचा, "रमेश भाई ने 99% मेहनत की, लेकिन एक कदम और बढ़ाया होता, तो सफलता उसी की होती।"
कुछ समय बाद गांव में एक उत्सव हुआ, जिसमें गोपाल ने मूर्ति का अनावरण किया। लोगों ने तालियां बजाई, और रमेश भी वहां मौजूद था। गोपाल ने उसे पास बुलाकर कहा, "रमेश भाई, तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं गई। तुम्हारे प्रयास ने पत्थर को तैयार किया।" रमेश मुस्कुराया, "गोपाल भाई, शायद मुझे हिम्मत करनी चाहिए थी।"
उस रात गोपाल ने गांव के बच्चों को बुलाया और कहा, "बच्चों, मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। एक और प्रयास करो, और देखो क्या होता है!" एक बच्चे, राजू, ने पूछा, "क्या हर बार आखिरी कोशिश काम करेगी?" गोपाल हंसा, "हां, अगर दिल से की जाए, तो जरूर!" बच्चों ने मिलकर एक छोटी सी मूर्ति बनाने की कोशिश की, और उनकी मेहनत रंग लाई। गांव में यह कहानी मिसाल बन गई।
सीख
इस प्रेरक हिंदी कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सफलता के लिए लगातार मेहनत करो और कभी हार मत मानो। एक आखिरी प्रयास ही जिंदगी बदल सकता है!
नोट अभिभावकों के लिए: अभिभावक इस प्रेरक लघु कहानी का उपयोग करके बच्चों को मेहनत और दृढ़ संकल्प का महत्व सिखा सकते हैं। बच्चों को हार न मानने की प्रेरणा दें।
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