राजा की बीमारी और एक युवक का बलिदान - एक बार की बात है। महाराणा प्रताप मोहन नामक राजा कई दिनों से बीमार थे। राजवैद्य ने उनकी बीमारी का इलाज करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे बीमारी का सही कारण पता नहीं कर सके। देशभर में चिंता की लहर फैल गई। राजवैद्य की सलाह पर राजा ने कई औषधियां और जड़ी-बूटियों का सेवन किया, पर कोई लाभ नहीं हुआ।
जब राजवैद्य के उपचार से कोई लाभ नहीं हुआ, तो राजा ने देश के अन्य वैद्यों को अपने इलाज का निमंत्रण दिया। एक दिन एक वैद्य ने आकर राजा की जांच की और कहा, “राजा को रोगमुक्त करने के लिए मुझे एक जीवित युवक के कलेजे की जरूरत होगी।” यह सुनकर राजा चिंतित हो गए। कौन अपनी जान देने के लिए तैयार होगा?
राजा ने घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति अपने कलेजे का दान करेगा, उसके परिवार को मुंहमांगी स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। कई दिन बीत गए, लेकिन कोई आगे नहीं आया। उसी राज्य में एक लालची किसान था जिसके ग्यारह बेटे थे, उनमें से सबसे बड़ा बेटा लंगड़ा था। किसान ने सोचा, "मुझे इस लंगड़े बेटे से भविष्य में कोई लाभ नहीं है।" यह सोचकर उसने अपने बेटे के बदले स्वर्ण मुद्राएं लेने का निर्णय लिया।
अगले दिन वह अपने लंगड़े बेटे को लेकर दरबार पहुंचा। राज्य में इस खबर से खुशी की लहर दौड़ गई, और महाराज ने अगले सप्ताह बलि समारोह की घोषणा कर दी। समारोह के दिन दूर-दूर से लोग उस युवक को देखने आए। फूलों की माला से सजे लंगड़े युवक को मंच पर लाया गया। महाराज ने समारोह शुरू होने से पहले युवक से उसकी अंतिम इच्छा पूछी।
युवक मुस्कुराया। उसने एक बार अपने पिता की ओर देखा, फिर महाराज की ओर और अंत में आसमान की ओर। महाराज ने उसकी मुस्कान देखी तो कहा, "तुम्हारी मुस्कान ने मेरे हृदय को विचलित कर दिया है। बताओ, तुमने पहले अपने पिता की ओर, फिर मेरी ओर और अंत में आसमान की ओर देखकर क्यों मुस्कुराया?"
युवक ने धीरे से कहा, "मुझे अपने पिता की ओर देखकर इसलिए हंसी आई क्योंकि मैंने सुना था कि पिता अपने पुत्र के लिए जान दे सकता है। पर मेरे पिता मुझे बेचने आए हैं। मुझे आप पर हंसी आई क्योंकि मैंने सुना था कि राजा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं करता, परंतु आप अपनी जान बचाने के लिए प्रजा की जान लेना चाहते हैं। और अंत में, मुझे ईश्वर पर हंसी आई क्योंकि मैंने सुना है कि ईश्वर हर असहाय की मदद करता है, लेकिन आज वह भी खामोश है।”
राजा के आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने युवक को गले लगा लिया और उसे मुक्त कर दिया। युवक का लालची पिता भी पश्चाताप से भर उठा और युवक को लेकर घर लौट गया। इस घटना के कुछ समय बाद, बिना किसी इलाज के ही राजा का रोग ठीक हो गया।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में परोपकार, सहनशीलता और मानवता का सबसे बड़ा स्थान है। जब कोई अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करता है और दूसरों की भलाई को प्राथमिकता देता है, तो ईश्वर स्वयं उसकी रक्षा करते हैं।
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