प्यासा कबूतर: एक सीख देती कहानी- एक बार की बात है, गर्मी का मौसम अपने चरम पर था। सारे तालाब और झीलें सूख चुकी थीं। सूरज की तपिश इतनी तेज थी कि जानवरों और पक्षियों को पीने का पानी मिलना मुश्किल हो गया था। उसी गांव में एक कबूतर रहता था, जो हमेशा खुश और चहकता रहता था। लेकिन इस भीषण गर्मी ने उसे भी परेशान कर दिया था।
कबूतर अपनी प्यास बुझाने के लिए जगह-जगह भटक रहा था। उसकी हालत खराब हो रही थी। तभी उसने एक दीवार के पास पानी की हल्की चमक देखी। कबूतर के चेहरे पर उम्मीद की किरण जागी। उसने सोचा, "आखिरकार, मुझे पानी मिल ही गया!"
कबूतर: "यह पानी मेरी जान बचा सकता है। मुझे जल्दी इसे पी लेना चाहिए।"
कबूतर बिना ज्यादा सोचे समझे दीवार की ओर उड़ चला।
जैसे ही कबूतर दीवार पर पहुंचा, उसने देखा कि पानी सिर्फ एक पतली सी धार की तरह रिस रहा है। पानी पाने की जल्दी में उसने अपने पूरे जोश के साथ दीवार पर ज़ोर से चोंच मारी।
कबूतर: "बस थोड़ा और जोर लगाऊंगा, और पानी बहने लगेगा!"
लेकिन दीवार कमजोर हो चुकी थी। जैसे ही कबूतर ने फिर से चोंच मारी, दीवार का एक बड़ा हिस्सा टूटकर नीचे गिर गया। कबूतर उस मलबे के साथ नीचे गिर पड़ा। उसके पंख चोटिल हो गए और वह ज़मीन पर असहाय पड़ा रहा।
कुछ देर बाद, वहां से एक आदमी गुजरा। उसने घायल कबूतर को देखा और उसे उठा लिया।
आदमी: "अरे, बेचारा कबूतर! इस गर्मी में पानी की तलाश में खुद को ही चोटिल कर बैठा।"
आदमी ने कबूतर को अपने घर ले जाकर उसकी मरहम-पट्टी की और एक कटोरी में पानी दिया। कबूतर ने राहत की सांस ली।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी चीज़ को पाने के लिए उत्साह और जोश जरूरी है, लेकिन अगर हम बिना सोचे-समझे कदम उठाएंगे, तो उसका अंजाम नुकसानदायक हो सकता है। अतिउत्साह अक्सर हमें मुश्किलों में डाल सकता है।