प्रतिभा की असली पहचान एक बार एक साधु ने सुनसान जगह पर एक झोपड़ी बना ली। वह वहीं मजे में रहने लगा। जंगली फल-फूलों से वह अपना गुजारा करता और हमेशा भगवद भजन में लीन रहता। एक दिन, तीन राजपुरुष जंगली जानवरों का शिकार करते हुए उसकी झोपड़ी के करीब आए। By Lotpot 19 Oct 2024 in Moral Stories New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 प्रतिभा की असली पहचान- एक बार एक साधु ने सुनसान जगह पर एक झोपड़ी बना ली। वह वहीं मजे में रहने लगा। जंगली फल-फूलों से वह अपना गुजारा करता और हमेशा भगवद भजन में लीन रहता। एक दिन, तीन राजपुरुष जंगली जानवरों का शिकार करते हुए उसकी झोपड़ी के करीब आए। उनमें से एक बोला, "साधु बाबा, हम प्यासे हैं, हमें पानी पिलाइए।" साधु ने तीनों को पीने के लिए पानी दिया। फिर उसने पहले राजपुरुष से पूछा, "आप कौन हैं?" पहला राजपुरुष गर्व से बोला, "मैं इस राज्य का महामंत्री हूँ।" साधु ने कहा, "मतलब आपकी प्रतिभा तीसरे स्तर की है।" इसके बाद, साधु ने दूसरे राजपुरुष से वही सवाल पूछा। दूसरे ने जवाब दिया, "मेरा नाम देवदत्त है।" साधु ने कहा, "देवदत्त, क्या वही देवदत्त है, जिसने एक बार राजा को नदी में डूबने से बचाया था?" "बिल्कुल," देवदत्त ने गर्व से कहा। साधु बोला, "तो आप अवश्य ही दूसरे स्तर की प्रतिभा रखते हैं।" फिर साधु ने तीसरे राजपुरुष से भी उसका परिचय पूछा। तीसरा राजपुरुष नम्र स्वर में बोला, "मेरी व्यवस्था के कारण ही आज पूरे राज्य में आम आदमी चोर-डाकुओं के भय से मुक्त है।" साधु ने कहा, "मतलब कि आप इस राज्य के प्रधान सेनापति विनायक हैं।" "हाँ बाबा," प्रधान सेनापति ने हामी भरी। साधु ने कहा, "ऐसे में तो आप निःसंदेह पहले स्तर की प्रतिभा में आते हैं।" महामंत्री को साधु के इस मूल्यांकन का तरीका समझ में नहीं आया। उसने साधु से पूछा, "भला, आप किस आधार पर किसी की प्रतिभा का मूल्यांकन करते हैं?" साधु ने स्पष्ट कहा, "पहले स्तर की प्रतिभा वह होती है, जो पदनाम से जानी जाती है। महामंत्री जी, आपने अपना परिचय मुझे पदनाम बताकर दिया। इसी से मैंने आपको तीसरे स्तर की प्रतिभा की श्रेणी में रखा।" फिर उसने देवदत्त से कहा, "जो प्रतिभा अपने नाम से जानी जाती है, वह दूसरे स्तर की प्रतिभा होती है। आपने अपना नाम बताकर मुझे परिचय दिया, इसी से आप दूसरे स्तर की प्रतिभा में आते हैं।" "और मेरी प्रतिभा को आपने दूसरे स्तर में रखा, इसे भी समझा दीजिए," देवदत्त ने जानना चाहा। साधु ने कहा, "पहले स्तर की प्रतिभा वह होती है, जो न तो पदनाम से और न नाम से, बल्कि अपने अच्छे काम से जानी जाती है। आज पूरा राज्य विनायक जी को उनके पदनाम या नाम के कारण नहीं, बल्कि राज्य भर में उनकी सुव्यवस्था के कारण जानता है।" "याद रखो," साधु ने आगे कहा, "जो अपने अच्छे कार्यों के कारण जाने जाते हैं, वे तो मरणोपरांत भी अमर रहते हैं। ऐसी कोशिश आप सब करें, तभी आपकी प्रतिभा में निखार आएगा।" साधु के जवाब के आगे महामंत्री और देवदत्त की बोलती बंद हो गई। अगले ही क्षण वे वहाँ से लौट पड़े। सीख: अच्छे कार्यों से ही व्यक्ति की असली पहचान बनती है। नाम और पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है हमारी मेहनत और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी। बाल कहानी यहाँ और भी हैं :- Motivational Story : आँख की बाती: सच्चे उजाले की कहानीगौतम बुद्ध और नीरव का अनमोल उपहारMotivational Story : रोनक और उसका ड्रोनशिक्षाप्रद कहानी : ईमानदारी का हकदार #Hindi Moral Stories #bachon ki moral story #hindi moral kahani #bachon ki hindi moral story #bachon ki moral kahani You May Also like Read the Next Article