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क्षमा याचना
Moral Story क्षमा याचना:- मां का अंतिम संस्कार करके शोक संतप्त युवा बेटे ने अपने दुखी पिता को कहा? ‘‘पिता जी, आप भी हमारे साथ आकर क्यों नहीं रहते?’’ वृद्ध पिता पहले तो कुछ झेंप सा गया और फिर कहने लगा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां और मैं हमेशा किसी वृद्ध आश्रम में जाने की योजना बनाया करते थे और अब वह मुझे छोड़कर चली गई है तो मैं अकेला ही वहां जाने की योजना बना रहा हूं। (Moral Stories | Stories)
‘‘पिताजी, अपने बेटे के होते हुए आप वृद्धाश्रम में जाएंगे? क्या आप सचमुच गम्भीरता से ऐसा कह रहे हैं? आप जानते हैं कि मेरे पास कितना शानदार बंगला है, इसमें ढेर सारे कमरे हैं। मेरी पत्नी और मैं किसी भी कीमत पर आपको कहीं और नहीं जाने देंगे। ऊपर से घर में आपका नन्हा पोता है जो आपकी संगत में बड़ा होना पंसद करेगा।’’
इस प्रकार पिता राज़ी हो गया और न चाहते हुए भी बेटे और उसके परिवार के साथ रहने लगा। प्रथम कुछ वर्ष तो बिल्कुल आदर्श जीवन का उदाहरण थे। बहू और बेटा उनकी एक-एक ज़रूरत का ख्याल रखते और उन्हें अत्याधिक प्यार करते थे। खास तौर पर उनका पोता तो कभी भी उनके बिना नहीं रहता था। और इसके एवज में वह भी सभी को भरपूर लाड-प्यार देते थे। वह सचमुच ही एक प्रसन्न परिवार की तस्वीर प्रस्तुत करते थे। (Moral Stories | Stories)
समय बीतता गया और धीरे-धीरे दरारें प्रकट होने लगीं। बहू-बेटे को लगने लगा कि पिता जी...
समय बीतता गया और धीरे-धीरे दरारें प्रकट होने लगीं। बहू-बेटे को लगने लगा कि पिता जी गुसलखानें में जरूरत से अधिक समय लगाते हैं। उन्होंने यह भी कहना शुरू कर दिया कि वह बार-बार सो जाते हैं और लम्बे समय तक जागते नहीं।
धीरे-धीरे प्यार ने गुस्से का स्थान ले लिया और कुछ समय बाद इसने असहिष्णुता का रूप धारण कर लिया अब मधुर संबंध बिगड़ने शुरू हो गए। (Moral Stories | Stories)
किसी समय प्यार से रह रहे बेटे ने अचानक एक दिन कहा, ‘‘पिता जी, आपका पोता अब बड़ा हो गया है उसे अपना अलग कमरा चाहिए। इसलिए आपको बालकनी में डेरा जमाना होगा।’’ बेशक नन्हे पोते ने उसके विरूद्ध बहुत हो-हल्ला किया क्योंकि वह दादा के साथ ही रहना चाहता था तो भी वृद्ध दादा को बालकनी में जाना पड़ा।
एक दिन सफल युवा बेटा घर लौटा और जब वह अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठकर आराम कर रहा था। तो उसने अपने पिता के खर्राटों की परिचित सी आवाज़ सुनी। हालांकि यह आवाज़ बहुत ऊंची नहीं थी तो भी उसका विचार प्रवाह इससे भंग हो रहा था और वह भागता-भागता बालकनी में गया। वहां उसने देखा कि उसका बूढ़ा पिता अपने पसंदीदा कम्बल में सिकुडा हुआ आलस्यपूर्ण ढंग से दोपहर का ठोंका लगा रहा है। (Moral Stories | Stories)
पिता का कम्बल खींचते हुए वह जोर से चिल्लाया, ‘‘इसी समय मेरे घर से निकल जाओ। बहुत हो गया, अब मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह मुआ कम्बल भी अपने साथ ले जाओ।’’ बिना कोई प्रतिवाद किए बूढ़े पिता ने कम्बल अपने झुके हुए कंधों के गिर्द लपेटा और धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर गया और काफी दूर निकल गया।
अचानक सफल युवा बेटे ने अपने लाडले की आवाज सुनी, ‘‘पापा, दादा जी को रोकिए, वह कम्बल तो अपने साथ ले गए हैं।’’
‘‘ले जाने दो कम्बल उन्हे अपने साथ,’’ सफल युवा बेटे ने हैरानी से अपने लाल को निहारते हुए कहा। लेकिन नन्हा बच्चा अपने दादा के पीछे भाग लिया और उनसे कम्बल छीन लाया। उसने यह कम्बल अपने पापा के कंधों पर डाल दिया और कहा, ‘‘पापा, इस कम्बल के दो टुकड़े करो, एक अपने लिए रख लो। जब आप बूढ़ों होंगे तो मैं भी आपको इसी तरह घर से निकाल दूंगा तब आपको अपना बदन ढकने के लिए इस कम्बल की ज़रूरत पडे़गी।’’ (Moral Stories | Stories)
ये शब्द कहते ही वह अपने दादा की ओर भाग गया और उन्हें अपनी नन्ही बांहों में कस लिया। उसके सफल युवा पिता ने यह दृश्य देखा तो उसे अपनी गलती महसूस हुई। उसने तत्काल जाकर अपने पिता से क्षमा याचना की और उन्हें यह कहते हुए सम्मानपूर्वक घर ले आया, ‘‘पिता जी, आप इसी घर में रहेंगे। आज मेरे बटे ने मुझे सबक सिखाया है कि जो मैं अपने पिता के साथ करूंगा वैसा ही व्यवहार एक दिन मेरा बेटा मेरे साथ करेगा। (Moral Stories | Stories)
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