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आखिरी प्रयास: सफलता की सच्ची कहानी : एक समय की बात है, एक राज्य में राजा विक्रम सिंह राज करते थे, जो अपनी कला और कलाकारों के प्रति सम्मान के लिए जाने जाते थे। एक दिन, उनके दरबार में एक दूर देश से आया व्यापारी एक अद्भुत पत्थर लेकर आया। पत्थर इतना चमकदार और बेदाग था कि राजा उसे देखते ही मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने तुरंत घोषणा की कि इस पत्थर से भगवान विष्णु की सबसे सुंदर प्रतिमा बनाई जाए और उसे राज्य के सबसे बड़े मंदिर में स्थापित किया जाए।
राजा ने यह जिम्मेदारी अपने महामंत्री को सौंपी और कहा, "मुझे यह प्रतिमा सात दिनों में चाहिए। जो भी मूर्तिकार इसे बनाएगा, उसे पचास सोने के सिक्के दिए जाएंगे।"
महामंत्री सीधे नगर के सबसे मशहूर मूर्तिकार अर्जुन के पास पहुँचे। अर्जुन ने पत्थर को देखा और उसकी खूबसूरती पर हैरान रह गया। महामंत्री ने उसे राजा का आदेश सुनाया। "क्या आप तैयार हैं, अर्जुन? पूरे राज्य में आपके जैसा कारीगर कोई नहीं।"
अर्जुन आत्मविश्वास से भर गया। "महामंत्री जी, यह तो मेरे लिए गर्व की बात है। आप निश्चिंत रहें, सात दिन के भीतर प्रतिमा राजमहल में होगी।"
अर्जुन अपने घर आया और औजार निकालकर पत्थर को तराशने लगा। उसने हथौड़ा उठाया और पूरे ज़ोर से पत्थर पर पहला प्रहार किया, लेकिन पत्थर पर एक खरोंच भी नहीं आई। उसने सोचा, 'शायद हथौड़ा कमजोर है।' उसने दूसरा, तीसरा और चौथा वार किया, लेकिन हर बार नतीजा वही था। अर्जुन ने पंद्रह, बीस, और फिर पूरे पचास बार पत्थर पर वार किया, लेकिन पत्थर अपनी जगह से हिला भी नहीं। वह थक गया, पसीना-पसीना हो गया, और उसके हाथों में दर्द होने लगा।
हार मानकर, अर्जुन ने सोचा, 'यह पत्थर तो पत्थर नहीं, लोहा है। इसे तोड़ना मेरे बस की बात नहीं।' उसने अपने हाथों से आखिरी हथौड़ा हटा लिया और पत्थर लेकर महामंत्री के पास चला गया।
"महामंत्री जी," अर्जुन ने हताश होकर कहा, "यह पत्थर टूटता ही नहीं। मैंने पचास बार कोशिश की, पर यह बिल्कुल भी नहीं टूटा। इस पर काम करना नामुमकिन है।"
महामंत्री ने उसे सांत्वना दी, "कोई बात नहीं, अर्जुन। मैं राजा से बात करूँगा।"
महामंत्री को राजा का आदेश पूरा करना था, इसलिए वह उसी पत्थर को लेकर एक साधारण से मूर्तिकार रामू के पास गए, जो अर्जुन के घर के पास ही रहता था। रामू के पास न तो अर्जुन जैसी प्रसिद्धि थी और न ही उसके पास सुंदर औजार थे। महामंत्री ने उसे पूरा किस्सा सुनाया और कहा, "रामू, क्या तुम यह काम कर सकते हो?"
रामू ने पत्थर को देखा और फिर महामंत्री को देखा। उसने कहा, "प्रयास करने में क्या जाता है, महामंत्री जी। मैं कोशिश करूँगा।"
महामंत्री ने उसे पत्थर दिया और वहीं खड़े होकर देखने लगे। रामू ने अपना पुराना और घिसा हुआ हथौड़ा उठाया। महामंत्री के सामने ही उसने पत्थर पर पहला प्रहार किया। "ठक!" की आवाज के साथ पत्थर दो टुकड़ों में टूट गया।
महामंत्री हैरान रह गए। रामू ने कहा, "यह क्या? मुझे लगा था कि बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन यह तो एक ही वार में टूट गया।"
महामंत्री मुस्कुराए और मन ही मन सोचा, 'अगर अर्जुन ने एक और वार किया होता तो आज पचास सोने के सिक्के उसके होते। उसने पचास वार किए, लेकिन एक आखिरी कोशिश करने से चूक गया।'
रामू ने खुशी-खुशी प्रतिमा बनाने का काम शुरू किया और समय पर उसे पूरा करके राजा को सौंप दिया।
कहानी का सार:
यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सफलता अक्सर हमारे आखिरी प्रयास पर निर्भर करती है। जिस तरह मूर्तिकार अर्जुन ने पचास बार मेहनत की, लेकिन हार मानकर रुक गया, वहीं साधारण रामू ने सिर्फ एक बार प्रयास किया और सफल हो गया।
सीख:
जीवन में कभी-कभी सबसे बड़ी सफलता बस एक और प्रयास के बाद ही मिलती है। जब हमें लगे कि अब और नहीं हो सकता, तो शायद वही आखिरी मौका हो। हमें तब तक प्रयास करते रहना चाहिए, जब तक हमें सफलता न मिल जाए।
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