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चीनी लोक कथा पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी
झील के किनारे पर्वत की तलहटी में एक गांव था। गांव के निवासी खेती करते थे, कुछ भेड़ें पालते थे, और कुछ कपड़े, जूते, मिट्टी के बर्तन, खुर्पा आदि बनाते थे। सभी में परस्पर बहुत प्रेम था, और कोई भी खुशी या दुःख का मौका हो, सारा गांव एक बड़े परिवार की तरह साथ-साथ सुख-दुःख बांट लेता था।
पर एक दिन सुबह एक विचित्र घटना हुई। किसान अपने हल लेकर घरों से निकल चुके थे, भेड़ें चरने निकल चुकी थीं, और घर की महिलाएं कपड़े बुनने या फिर खाना बनाने में लगी हुई थीं। अचानक झील की तरफ से एक तेज तूफान आया और कुछ ही देर में तेज बारिश होने लगी। आकाश में काले बादल छा गए और गहरा अंधेरा सारे गांव पर छा गया। फिर थोड़ी देर में बारिश थम गई। झील का पानी फिर से शांत हो गया, लेकिन सूरज नहीं निकला।
सूरज के न निकलने से गांव के लोग ठंड से ठिठुरने लगे। भेड़ें और अन्य पालतू जानवर ठंड से मरने लगे। पेड़-पौधे सब मुरझा गए, और गांव की सारी खुशियां एक-एक कर समाप्त होने लगीं। तब गांव के लोग पहाड़ी के ऊपर रहने वाले बुजुर्ग के पास पहुंचे और उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया।
बुजुर्ग ने सारी बात सुनी और बोले, "तुम लोगों की खुशियों पर बहुत समय से दैत्यों के राजा की नजर थी। सूरज की रोशनी में दैत्य तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। सूरज के होते, तुम्हारे खेत, भेड़ें, पेड़, फल, फूल सभी सुरक्षित थे। इसलिए दैत्यों के राजा ने सूरज को चुराकर कैद कर लिया है। अब वह जल्दी ही तुम्हारे गांव पर कब्जा कर तुम्हें अपनी दासता में रख लेगा।"
सभी ग्रामवासी चिंता में पड़ गए! वे जानते थे कि अगर सूरज न निकला तो सभी भूख से तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। पर प्रश्न यह था, "सूरज कौन लाएगा?" तभी उनके बीच से वीर सिंह निकल कर बाहर आया और बोला, "मैं सूरज को फिर से लेकर आऊंगा। मैं सारे गांव को भूख से नहीं मरने दूंगा।"
वीर सिंह की पत्नी ने भी सोचकर कहा, "हां, सूरज को तो लाना ही पड़ेगा। मैं तुम्हारे पुत्र की देखरेख करूंगी। तुम सूरज को दोबारा लेकर आओ।" गांव की बूढ़ी औरतों ने मिलकर वीर सिंह के लिए कपड़े बुने। युवतियों ने रास्ते के लिए भोजन की व्यवस्था की। सभी कारीगरों ने मिलकर उसके लिए छड़ी, छतरी, जूते आदि उपहार में दिए। और वीर सिंह सूरज की खोज में चल पड़ा। सारा गांव वीर सिंह को छोड़ने आया। गांव से बाहर आते ही पेड़ से एक सोने के पंखों वाली चिड़िया उतरी। उसने वीर सिंह से कहा, "दैत्यों के राजा ने सूरज को कैद कर बहुत बड़ा अन्याय किया है। अब वर्षा कैसे होगी? खेती और पेड़ सूख जाएंगे, फिर चिड़िया कहां रहेगी? क्या खाएगी? तुम सूरज को लेने जा रहे हो, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी। मुझे सारे रास्ते मालूम हैं।" और सोने के पंखों वाली चिड़िया वीर सिंह के कंधे पर बैठ गई। दोनों सूरज की खोज में चल दिए।
वीर सिंह की पत्नी और बेटा नवीन रोज पहाड़ी पर जाकर दूर तक देखते, पर उन्हें वीर सिंह आता हुआ नहीं दिखता। दूर-दूर तक अंधेरा था। दोनों घंटों पहाड़ी पर बैठकर वापस आ जाते।
एक दिन उनके आंगन में एक सोने के पंखों वाली चिड़िया आई। मां-बेटे उसे देखने बाहर आ गए। चिड़िया ने अपनी चोंच खोली तो उसके मुंह से एक छोटी सी अंगूठी निकली। वीर सिंह की पत्नी ने पहचान लिया, "यह तो उसके पति की अंगूठी है।" चिड़िया की आंखों से आंसू बह निकले। वीर सिंह की पत्नी समझ गई कि उसका पति अब नहीं रहा। पत्नी फूट-फूट कर रो पड़ी। बेटे नवीन ने मां को रोते देखकर पूछा, "मां, तुम क्यों रो रही हो?" मां ने उसके पिता की मृत्यु का दुःखद समाचार उसे सुनाया, पर बेटा नहीं रोया। वह बोला, "मां, सूरज की जरूरत मुझे भी है और मेरे बाद भी रहेगी। मैं अपने पिता के संकल्प को पूरा करूंगा। सूरज को बाहर लाना ही होगा। उस दैत्यों की कैद में छोड़कर हम कभी स्वतंत्र जीवन नहीं जी सकेंगे।"
एक बार फिर गांव की बूढ़ी औरतों ने गर्म कपड़े बनाए। युवतियों ने रास्ते का भोजन तैयार किया और बूढ़ों ने रास्ते के लिए आवश्यक उपहार देकर वीर सिंह के बेटे को विदा किया। सोने के पंखों वाली चिड़िया उसके कंधे पर बैठ गई।
बीहड़ रास्तों पर वीर सिंह का बेटा खोए हुए सूरज की तलाश में चलता रहा। सारी जगह अंधेरा ही अंधेरा था। रास्ते में जो भी गांव पड़ते, ग्रामवासी उसकी बहुत खातिर करते। सूरज की अनुपस्थिति में उनका भी जीवन ठप्प पड़ा था। वे उसका फटा कोट बदलकर उसे नए कोट देते। ग्रामवासी उसके भोजन की व्यवस्था करते और उसकी सफलता की कामना करते। नवीन के पैर लहूलुहान हो चुके थे। जब वह एक गांव से विदा होने लगा, तो गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, "तुमने बहुत बड़े काम की जिम्मेदारी ली है। दैत्यों का राजा बहुत बलवान है। उसके पास सैनिक, हथियार, और अनेकों शस्त्र हैं। उनसे लड़ने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है, पर मैं तुम्हें यह मिट्टी देता हूं। यह मिट्टी और तुम्हारे हाथ मिलकर दैत्यों की सारी शक्ति का विनाश कर देंगे, क्योंकि इस मिट्टी में हमारे पसीने की शक्ति है।" यह कहकर बुजुर्ग ने एक पोटली मिट्टी उसे दे दी।
चलते-चलते थककर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। सोने के पंखों वाली चिड़िया पंखों से उसे हवा करने लगी। वह थोड़ी देर में सो गया। आंख खुलने पर उसने देखा कि दूर एक गांव में बहुत रोशनी हो रही है। "इन लोगों के पास इतना प्रकाश कहां से?" यही सोचता हुआ वह चल पड़ा।
गांव पहुंचकर उसने देखा कि एक बड़ी दावत चल रही है। पर यह क्या, दावत में आया हुआ सबसे बड़ा व्यक्ति तो उसके पिता का कोट पहने हुए था। उसके बूट भी वही थे, जो गांव से चलते समय उपहार में दिए गए थे। वह समझ गया कि ये वही लोग हैं जिन्होंने उसके पिता की हत्या की है और जिनके पास सूरज कैद है।
कुछ देर में वह सभी लोग गायब हो गए। पास में ही समुद्र तट था। वहां पहुंचकर नवीन ने मिट्टी की पोटली सागर में डाल दी। पसीने से सींची हुई वह मिट्टी जैसे ही सागर में गिरी, दूर तक एक रास्ता बन गया। वह रास्ता उसे एक महल तक ले गया। महल के प्रहरी ने जब उसे रोकना चाहा, तो सोने की पंखों वाली चिड़िया ने झपट कर प्रहरी की आंखें फोड़ दीं।
महल के अंदर घुसकर उसने देखा कि महल विलासिता की अनेकों चीजों से भरा पड़ा है। दैत्यों का राजा नशे में सो रहा था। उसके कमरे के पास एक सुरंग थी। सुरंग में अंदर घुसने पर उसने देखा कि सूरज वहीं कैद है। अपने कंधे पर उठाकर वह सूरज को बाहर लाया और मिट्टी के बने रास्ते से सागर पार कर गया।
फिर सोने के पंखों वाली चिड़िया ने एक विशेष आवाज निकाली। आकाश से हजारों पक्षी नीचे आए और सूरज को अपने पंखों पर उठाकर आकाश में ले गए। चारों ओर फिर प्रकाश हो गया। खेती और पेड़ लहलहा उठे। चिड़ियों की आवाज से सारा वातावरण गूंज उठा। फिर आकाश से एक बहुत बड़ा पक्षी उड़कर नीचे आया, उसकी पीठ पर बैठकर नवीन अपने गांव वापस आ गया।
उसने अपनी सारी यात्रा का विवरण ग्रामवासियों को बताया। गांव की सारी खुशियां फिर लौट आईं। ग्रामवासियों का विश्वास है कि अब सूरज को कोई नहीं चुरा सकता। और यदि किसी ने कोशिश भी की, तो वे पसीने से सींची हुई मिट्टी और अपने बाहुबल से फिर उसे छुड़ा लाएंगे। इस प्रयास में सोने के पंखों वाली दैविक चिड़िया हमेशा उनका साथ देगी।
कहानी की सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संकल्प और साहस से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। अगर आप दृढ़ निश्चय करते हैं, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।