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कंजूसी और फिजूलखर्ची का महत्व: सही राह का चुनाव- यह कहानी सुधीर और राजेश के माध्यम से हमें बताती है कि जीवन में फिजूलखर्ची और कंजूसी के बीच सही संतुलन कैसे बनाए रखा जाए। बूढ़े बाबा का दृष्टांत हमें यह समझने में मदद करता है कि सोच-समझकर खर्च करना ही सही आर्थिक नीति है। कहानी के अंत में दी गई सीख हमें यह महसूस कराती है कि आर्थिक समझदारी जीवन को सुखी और सुरक्षित बनाती है। (Motivational kids story )
आर्थिक समझदारी के मूल्यों पर एक सीख देती कहानी
स्कूल में आधी छुट्टी का समय था। सुधीर और राजेश एक पेड़ की छाँह में बैठकर बातें कर रहे थे। बातचीत के दौरान दोनों के बीच बहस छिड़ गई। सुधीर ने कहा, "राजेश, तुम कभी स्कूल में कुछ खरीदकर नहीं खाते, बहुत कंजूस हो।"
राजेश ने जवाब दिया, "ऐसी बात नहीं है। मैं घर से टिफिन लाता हूँ, इसलिए यहाँ खरीदकर खाने की ज़रूरत नहीं होती।"
सुधीर ने घमंड से कहा, "मुझे घर से लाई हुई चीज़ें खाने में मज़ा नहीं आता। यहाँ दोस्तों के साथ चाट, पकौड़ियाँ, समोसे और जलेबियाँ खरीदकर खाने का अलग ही आनंद है।"
राजेश ने शांतिपूर्वक जवाब दिया, "मुझे फिजूलखर्ची बिल्कुल पसंद नहीं।"
सुधीर ने फिर कहा, "तुम्हें फिजूलखर्ची पसंद नहीं और मुझे कंजूसी। हम दोनों की पसंद एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है।"
राजेश ने सलाह दी, "यह किसी और से पूछकर देखो।"
तभी वहाँ से एक बूढ़ा आदमी गुज़रा। दोनों ने उसे पुकारा, "बाबा, क्या आप हमारे एक सवाल का जवाब देंगे?"
बूढ़े ने रुककर कहा, "क्यों नहीं, पूछो।"
सुधीर और राजेश ने पूछा, "फिजूलखर्ची और कंजूसी में क्या सही है?"
बूढ़े ने पहले पूछा, "तुम दोनों किसके बेटे हो?"
सुधीर ने कहा, "मैं अनूप शर्मा का बेटा हूँ।"
राजेश ने कहा, "मैं अमरनाथ का बेटा हूँ।"
बूढ़ा हँसा और बोला, "मैं तुम्हारे दोनों बापों को अच्छी तरह जानता हूँ। सुधीर, तुम्हारे पिता सोच-समझकर खर्च करते थे, इसलिए उन्हें कंजूस कहा जाता था। मगर उन्होंने अपने जीवन में जो अर्जित किया, उससे तुम्हारा परिवार आज भी सुखी और सम्पन्न है।"
सुधीर ने सिर हिलाते हुए सहमति जताई।
बूढ़ा राजेश की ओर मुड़ा और बोला, "राजेश, तुम्हारे पिता बहुत फिजूलखर्च थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कमाया, पर उससे ज्यादा गंवाया। नतीजा यह हुआ कि उनके निधन के बाद तुम्हारे परिवार को आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा।"
राजेश ने स्वीकार किया, "बिल्कुल सही।"
बूढ़े ने अंत में कहा, "कंजूसी में थोड़ा कष्ट तो होता है, मगर उससे परिवार को सुख-सुविधा मिलती है। वहीं, फिजूलखर्ची से जीवन में तो आनंद आता है, पर परिवार को भविष्य में कठिनाई झेलनी पड़ती है। अब तुम खुद तय करो कि कौन सी राह सही है।"
सुधीर ने इस बात को समझ लिया और राजेश से कहा, "तुम्हारी राह सही है। सोच-समझकर खर्च करना कंजूसी नहीं, बल्कि अक्लमंदी है।"
घंटी बजने पर दोनों अपनी कक्षा की ओर चल दिए।
कहानी से सीख:
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि फिजूलखर्ची और कंजूसी के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। सोच-समझकर खर्च करने से न केवल आज का दिन बेहतर होता है, बल्कि भविष्य में भी परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है। वहीं, फिजूलखर्ची से आज की खुशी तो मिलती है, लेकिन आगे चलकर यह आदत परिवार को मुश्किलों में डाल सकती है। जीवन में हमेशा विवेकपूर्ण निर्णय लेना ही समझदारी है।