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Sir Ganesh Dutt Singh - बिहार के एक युवा, गर्वित ज़मींदार थे जिनकी उम्र उन्नीस साल हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने अभी तक पढ़ाई-लिखाई का महत्त्व नहीं समझा था। उन्हें लगता था कि धन-संपत्ति के बल पर जीवन आसान हो जाएगा और शिक्षा की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन एक दिन उनके जीवन में ऐसा मोड़ आया जिसने उनके दृष्टिकोण को बदल दिया। किसी कानूनी काम के सिलसिले में उन्हें पटना कोर्ट जाना पड़ा। वहां पर अर्ज़ी लिखने में काफी समय लग गया, जिससे वह हैरान और असहज हो गए। उस दिन उन्होंने महसूस किया कि पढ़ाई-लिखाई न जानने के कारण उन्हें कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
इस घटना से प्रभावित होकर, वे वापस अपने गाँव लौटे और बिना समय गवाए पढ़ाई शुरू कर दी। उन्होंने निष्ठा और श्रम के साथ अपनी शिक्षा की शुरुआत की और धीरे-धीरे पढ़ना-लिखना सीख लिया। उनकी सच्ची लगन और मेहनत का फल मिला, और उन्हें समाज में एक सम्मानित स्थान प्राप्त हुआ। उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा ने उन्हें सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँचाया।
ब्रिटिश सरकार ने उनकी लगन और समाजसेवा को देखते हुए उन्हें "सर" की उपाधि से सम्मानित किया। सन 1926 में वे बिहार प्रांत में स्वायत्त शासन के मंत्री भी बने। मंत्री पद से मिलने वाली आय को उन्होंने धर्मशालाओं, अन्नालयों और निर्धन छात्रों की सहायता के लिए दान किया। उनका मानना था कि शिक्षा ही समाज की उन्नति का आधार है और यह उनके जीवन का उद्देश्य बन गया। Sir Ganesh Dutt Singh Story
जानते हो वो कौन थे, उनका नाम था "सर गणेश दत्त सिंह" आज भी बिहार में सर गणेश दत्त सिंह का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उनके योगदान और निष्ठा को देखकर लोग प्रेरणा लेते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची लगन और मेहनत से जीवन में सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
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