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मुस्कान पुरानी
बचपन (childhood) हर किसी के जीवन का सबसे सुनहरा समय होता है। वह समय जब चेहरे पर बेफिक्र मुस्कान होती है और दिल में ढेर सारी मासूम शैतानियाँ। कविता “मुस्कान पुरानी” हमें उसी बचपन की गलियों में ले जाती है, जहाँ पगडंडी पर दौड़ना, छुक-छुक रेल खेलना और छोटी-छोटी बातों पर रूठना-मनाना जीवन का हिस्सा था।
इस कविता में कवि ने बच्चों की प्यारी दुनिया को शब्दों में पिरोया है। आम की डाल पर झूला झूलना, नीम की ठंडी छांव में खेलना, बेर तोड़ना और गांव की गलियों में अपनेपन के साथ जीना – यह सब हमें पुरानी यादों की ओर खींच ले जाता है। कविता बताती है कि कैसे बचपन की छोटी-छोटी खुशियाँ जीवनभर के लिए बड़ी यादें बन जाती हैं।
बच्चों के लिए यह कविता प्रेरणादायक है क्योंकि यह उन्हें सिखाती है कि असली खुशी महंगी चीज़ों में नहीं, बल्कि सरल जीवन और सच्चे रिश्तों में होती है। बड़े पाठकों के लिए यह कविता बचपन की स्मृतियों को ताज़ा कर देती है और चेहरे पर वही “मुस्कान पुरानी” ला देती है।
इस कविता से हमें यह संदेश मिलता है कि अपने अंदर के बच्चे को ज़िंदा रखना ही जीवन की असली खूबसूरती है।
मुस्कान पुरानी
होठों पर आ जाये
फिर से वो मुस्कान पुरानी,
भीगा मन बहता जाए
वो बचपन की शैतानी।
पगडंडी की दौड़ हो
या छुक-छुक वो रेल,
झगड़ा छोटी बात पर
मीठा-मीठा मेल।
झूला आम की डाल का,
नीम की ठंडी छांव,
नटखट-सी नादानियां,
अपनेपन का गांव।
कच्चे-पक्के बेर की
खट्टी-मीठी चाह,
थाम के वो परछाइयां
चल दूँ फिर उस राह।
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