Bal Kavita: मच्छर जी ओ मच्छर जी

By Lotpot
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मच्छर जी ओ मच्छर जी

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मच्छर जी ओ मच्छर जी

मच्छर जी ओ मच्छर जी,
छोटे-हल्के मच्छर जी।

बड़े-बड़ों की नींद उड़ाते,
क्या है इनका चक्कर जी।

मच्छर जी ओ मच्छर जी,
जब भी मैं पढ़ने को बैठूं।

या थक कर बिस्तर पर लेटूं,
भुन-भुन करते आ जाते हो।

नगमे गाते सत्तर जी,
मच्छर जी ओ मच्छर जी।

चुपके से तुम कान में आते,
भुन-भुन का शोर मचाते।

कभी नाक में घुस जाते हो,
बहुत लगाते चक्कर जी।

मच्छर जी ओ मच्छर जी,
कभी हाथ से तुम्हें भगाता।

फूंक मारकर कभी उड़ाता,
फिर-फिर वापस आ जाते हो।

क्यों हो इतने खच्चर जी,
मच्छर जी ओ मच्छर जी।

जिसको-जिसको तुमने काटा,
मलेरिया है जिसको बांटा।

खटिया पकड़े पड़ा है देखो,
बिगड़े उसके नछत्तर जी।

मच्छर जी ओ मच्छर जी।।

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