बाल कविता : ओ सूरज भैया !

इस कविता "ओ सूरज भैया!" में कवि शिवनारायण सिंह ने गर्मी के मौसम का चित्रण किया है, जिसमें सूरज की तेज़ धूप से लोग व्याकुल हो रहे हैं। सूरज की गर्मी इतनी बढ़ गई है कि प्यास बढ़ती जा रही है और पानी दूर कहीं नजर नहीं आता।

By Lotpot
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Bal Kavita Oh Suraj Bhaiya
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बाल कविता- इस कविता "ओ सूरज भैया!" में कवि शिवनारायण सिंह ने गर्मी के मौसम का चित्रण किया है, जिसमें सूरज की तेज़ धूप से लोग व्याकुल हो रहे हैं। सूरज की गर्मी इतनी बढ़ गई है कि प्यास बढ़ती जा रही है और पानी दूर कहीं नजर नहीं आता। चिड़िया भी उड़ रही हैं लेकिन छाया नहीं मिल रही। पेड़ बूढ़े हो गए हैं और उनमें छाया देने की शक्ति भी नहीं रही। गर्मी के कारण लोग पसीने से तर-बतर हैं और बारिश की कामना कर रहे हैं ताकि तालाब भर जाएं और प्रकृति में ठंडक लौट आए। यह कविता गर्मी की परेशानी और वर्षा की चाह को सुंदरता से अभिव्यक्त करती है। (Best Hindi Poem)

ओ सूरज भैया !"

ताता था थैया
ओ सूरज भैया !


गर्मी है ज्यादा
क्या है इरादा ?


प्यास है गैया
दूर खड़ी नैया


कहीं नहीं पानी
क्या तुमने ठानी ?


उड़ रही चिरैया
कहीं नहीं छैयाँ।

पेड़ थके हारे
टूँठ हुए सारे,


हैया ओ हैया !
ना चले पुरवैया,

तन बदन पसीना
जेठ का महीना,


बजेगी बधैया
भरे उठे तलैया


बरखा को बुलावा
भेज रहा कौवा।

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