Bal Kavita: नींद

By Lotpot
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नींद

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नींद

बिना पंख के आती नींद,
पलकों पर मंडराती नींद।

सूरज के ढलते ही प्रायः,
जादू नये चलाती नींद।

घर-घर बिस्तर तकिया, चादर,
झटपट में जुटवाती नींद।

मिटा थकानें सबके तन की,
है फुर्ती पनपाती नींद।

दुनिया भर की सैर सपनों में,
बिल्कुल मुफ्त कराती नींद।

होते हैं हम धन्य-धन्य जब,
केवल सुख बरसाती नींद।

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