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इस कविता में लाल टमाटर और हरी मिर्ची के बीच प्यारी नोकझोंक और तकरार को मज़ेदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है। टमाटर अपनी गोल-मटोल और सबको भाने वाली छवि के साथ मिर्ची को चिढ़ाता है, जबकि मिर्ची अपनी तीखी और सेहतमंद होने का दावा करती है। अंततः दोनों इस बात पर सहमत होते हैं कि दोनों ही खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए ज़रूरी हैं।
लाल टमाटर, लाल टमाटर,
मिर्ची बोली सुन लो आकर।
मैं पतली-सी हरी-हरी,
दौड़ लगाऊं खड़ी-खड़ी।
टमाटर बोला, मिर्ची रानी,
क्यों इतना इतराती हो।
पतली-सी तुम, दम भी कम है,
क्यों गुस्सा मुझे दिलाती हो।
मैं बच्चों को प्यारा लगता,
गोल-गोल हूँ, सबको भाता।
तुम तो खूब रुलाती हो,
सबको दुख पहुँचाती हो।
मिर्ची बोली हंसते-हंसते,
"टमाटर राजा, समझ ना पाए।
मैं तीखी हूँ, सेहतमंद हूँ,
तुम बस मीठे, मज़े लुटाए।
खाने में मेरी तासीर है,
स्वाद बढ़ाऊं, दिल बहलाऊं।
पर जब ज़रूरत मीठी की हो,
तुम हो, सबकी जान बनाऊं।"
टमाटर मुस्काया सुनकर,
"चलो, अब न करो शिकायत।
तुम हो स्वाद की महारानी,
मुझसे मत रखो कोई हायात।"
दोनों ने फिर हाथ मिलाया,
बन गए सबके पसंदीदा।
अब सबके खाने में दोनों,
एक-दूसरे के साथी सजीदा।
- टमाटर और मिर्ची की नोकझोंक
- लाल टमाटर और हरी मिर्ची का संवाद
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