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हाथी दादा
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हाथी दादा
हाथी दादा ओढ़ लबादा,
कलकत्ता से पहुँचे टाटा।
सर पे लगी गर्मी की धूप,
आने लगा पसीना खूब।
तान लिया सर पर फिर छाता,
हाथी दादा ओढ़ लबादा।
सेल लगी चप्पल की देख,
खरीद लिया झट चप्पल एक।
अकड़ के चलें कदम बढ़ाके,
देख ना पाए केले का छिल्का।
फिसले और गिरे धड़ाम से,
टूट गया फिर चप्पल बाटा।
सस्ता चप्पल ले पछतायें,
हो गया था उनका घाय।
हाथी दादा, ओढ़ लबादा,
कलकत्ता से पहुँचे टाटा।