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सीख
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सीख
मेरी तरह गंभीर बनो तुम,
सागर यह सिखलाता है।
सुख और दुख का मेला तो,
दुनिया में आता जाता है।।
मेरी तरह विशाल बनो तुम,
पर्वत ये सिखलाता है।
तूफान भंयकर भी मुझको तो,
कभी हिला न पाता है।।
मेरी तरह सहनशील बनो तुम,
वृक्ष हमें सिखलाता है।
पत्थर मारे कोई भी तो वो,
फल उनको दे जाता है।।