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कविता का परिचय
कविता “मेरा घर राजमहल” बच्चों को यह सिखाती है कि असली समृद्धि (real wealth) और असली खुशी (true happiness) घर की दीवारों, छत या महंगी चीज़ों से नहीं आती, बल्कि परिवार के प्यार (love), अपनापन (togetherness) और रिश्तों की मिठास (relationships) से मिलती है। कवि ने इस कविता में मिट्टी की सोंधी खुशबू, आँगन के पेड़-पौधों और घर के साधारण वातावरण को राजमहल (palace) जैसा बताया है।
इस कविता में बताया गया है कि जहाँ माँ का प्यार, दादी का दुलार और भाई-बहनों का स्नेह होता है, वही घर असली राजमहल बन जाता है। इसके विपरीत, यदि किसी जगह छल, कपट और दिखावा ही हो, वहाँ भले ही सोने-चाँदी का महल हो, लेकिन वह आत्मिक दृष्टि से खंडहर (ruin) है।
कविता बच्चों को यह सीख देती है कि हमें घर की छोटी-छोटी खुशियों को महत्व देना चाहिए। घर का मूल्य पैसों या आलीशान चीज़ों से नहीं, बल्कि रिश्तों और भावनाओं से आँकना चाहिए। यही सोच घर को एक छोटे झोंपड़े से भी बड़ा बना देती है।
मेरा घर राजमहल
तुम इसे झोंपड़ी कहते हो,
मुझको तो लगता यह राजमहल!
मिट्टी की सोंधी-सी खुशबू
महके इसमें हर छिन, हर पल।।
इसके छप्पर की बेलों पर
लदते लौकी और सीताफल,
आँगन के पेड़ों पर लगते
नींबू, जामुन, मोटे कटहल।।
इसमें बढ़ती प्रेमलता,
द्वेषों की खरपतवार नहीं।
उस घर को मरघट समझो,
जिसमें पलता हो प्यार नहीं।।
इसमें है माँ का प्यार बसा,
दादी का मधुर दुलार बसा।
भाई-बहनों का स्नेहभाव,
मेरा सारा संसार बसा।।
छल-कपट जहाँ पर बसते हैं,
उसको तुम कहते राजमहल।
ममता का नाम नहीं जिसमें,
नकली-नकली जिसकी हलचल।।
जिसमें रहता हो प्यार नहीं,
वह राजमहल भी है खंडहर।
जिसमें जलती है स्नेहशिखा,
बन जाता राजमहल वह घर।।
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