हिन-हिन करता घोड़ा- यह कविता घोड़े की अद्भुत शक्ति, साहस और महानता का वर्णन करती है। घोड़ा न केवल शारीरिक रूप से ताकतवर है, बल्कि मानसिक रूप से भी दृढ़ है। उसकी शान, वीरता, और उसके योगदान को इस कविता में खूबसूरती से उकेरा गया है। चाहे युद्ध के मैदान में हो या राजा की सवारी में, घोड़ा हर जगह अपनी उपयोगिता और महत्व दिखाता है। बच्चों के लिए प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक यह कविता घोड़े की महानता का गुणगान करती है।
हिन-हिन करता घोड़ा बाल कवित्गा
हिन-हिन करके चलता घोड़ा,
नहीं किसी को खलता घोड़ा।
देख हमारी भारी शौकत,
नहीं ज़रा भी जलता घोड़ा।
खींच-खाँच करवाते कितना,
मगर न पीछे हटता घोड़ा।
खाकर भूसा-घास-चुन्नी भी,
भारी हिम्मत रखता घोड़ा।
पीता दूध, मलाई खाता,
तो कितना इतराता घोड़ा।
सड़क छोड़कर आसमान से,
सैर करा ले आता घोड़ा।
दौड़ में सबसे आगे रहता,
जीत का परचम फहराता घोड़ा।
शानदार उसकी चाल निराली,
जैसे सारा जग जीतता घोड़ा।
राजा की शान बढ़ाता सदा,
रणभूमि में गरजता घोड़ा।
धूल उड़ा कर, पत्थर तोड़ कर,
अपनी ताकत दिखलाता घोड़ा।
सपनों का साथी, वीरों का साथी,
हर पल काम आता घोड़ा।
इतिहास गवाह है उसकी दौड़ का,
सबके दिल में बसता घोड़ा।