बाल कविता 'उठो लाल!

यह कविता बच्चों को सुबह जल्दी उठने और प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने की प्रेरणा देती है। इसमें एक माँ अपने बच्चे को प्रेमपूर्वक जगाते हुए कहती है कि अब आँखें खोलने का समय आ गया है।

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बाल कविता 'उठो लाल! :- यह कविता बच्चों को सुबह जल्दी उठने और प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेने की प्रेरणा देती है। इसमें एक माँ अपने बच्चे को प्रेमपूर्वक जगाते हुए कहती है कि अब आँखें खोलने का समय आ गया है। वह उसे पानी लाकर देती है ताकि वह अपना मुँह धो सके और दिन की अच्छी शुरुआत कर सके।

कविता में प्रकृति की खूबसूरती का भी सुंदर चित्रण किया गया है। सुबह के समय कमल के फूल खिल चुके हैं, उन पर भँवरे मँडरा रहे हैं, और पेड़ों पर चिड़ियाँ चहक रही हैं। ठंडी और सुगंधित हवा बह रही है, जिससे पूरा वातावरण और भी सुंदर लग रहा है। आसमान में हल्की लाली छा गई है, और धरती ने मानो एक नई छवि धारण कर ली है।

सूरज की किरणें जल में सुनहरी छटा बिखेर रही हैं, और माँ अपने बच्चे से कहती है कि इस अद्भुत समय को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अब सोने का समय नहीं बल्कि जागकर इस सुंदर सवेरे का आनंद लेने का समय है।

यह कविता बच्चों को अनुशासन, दिनचर्या और प्रकृति से प्रेम करने की सीख देती है। सरल और मीठे शब्दों में यह संदेश देती है कि हमें सूरज के साथ उठना चाहिए और आलस्य को त्यागकर अपने दिन की अच्छी शुरुआत करनी चाहिए।

उठो लाल!

उठो लाल! अब आंखें खोलो,
पानी लाई हूँ, मुंह धो लो।
बीती रात, कमल दल फूले,
उनके ऊपर भंवरे झूले।

चिड़ियाँ चहक उठीं पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
नभ में न्यारी लाली छाई,
धरती ने प्यारी छवि पाई।

भोर हुआ, सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
ऐसा सुंदर समय न खोओ,
मेरे प्यारे, अब मत सोओ।

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