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“संसार नया लगता है” एक बेहद कोमल, भावनात्मक और बाल-मन की मासूम सोच को दर्शाने वाली कविता है। इस कविता में एक बच्चे की नज़र से दुनिया को देखा गया है, जहाँ हर दिन, हर अनुभव और हर रिश्ता नया लगता है। माँ से संवाद करती यह कविता बच्चों की उस स्वाभाविक जिज्ञासा और उत्साह को सामने लाती है, जिसमें वे जीवन की छोटी-छोटी चीज़ों में भी नयापन महसूस करते हैं।
कविता में सूरज, रात, तारे, स्कूल, दोस्त, किताबें, जूते-जुराबें जैसे रोज़मर्रा के अनुभवों को इतनी सरलता से प्रस्तुत किया गया है कि पाठक अपने बचपन की यादों से जुड़ जाता है। पापा की मुस्कान, दीदी का झुंझलाना और दादा-दादी का स्नेह इस रचना को पारिवारिक गर्माहट से भर देता है। यह कविता बच्चों को यह सिखाती है कि जीवन को खुले मन से देखने पर हर दिन एक नई सीख और नई खुशी लेकर आता है।
यह कविता न केवल बच्चों के लिए मनोरंजक है, बल्कि बड़ों के लिए भी आत्मचिंतन का अवसर देती है। आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में यह रचना हमें याद दिलाती है कि नयापन देखने की नज़र हमारे भीतर ही होती है। इसलिए “संसार नया लगता है” प्राथमिक कक्षाओं, बाल-साहित्य और पारिवारिक पाठन के लिए एक बेहद उपयुक्त और प्रभावशाली कविता है।
संसार नया लगता है
जब भी देखूं मुझको यह संसार नया लगता है,
सच कहता हूँ अम्मा ये,
हर बार नया लगता है।
रोज़ नया लगता है सूरज,
और रात भी नयी-नयी,
रोज़ चमकते तारों का,
अंबार नया लगता है।
सच कहता हूँ अम्मा ये,
संसार नया लगता है।
लगती नयी किताबें अपनी,
सच कहता हूँ अम्मा,
जूते और जुराबें अपनी,
लगता है स्कूल नया,
हर यार नया लगता है।
सच कहता हूँ अम्मा ये,
संसार नया लगता है।
पापा की मुस्कान नयी,
और दीदी का झुंझलाना,
दादा-दादी का मीठा,
दुलार नया लगता है।
सच कहता हूँ अम्मा ये,
संसार नया लगता है।
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