हिंदी प्रेरक कहानी: संतोष धन
हमारी इच्छाएं असीमित हैं किन्तु हमारे साधन सीमित हैं। हमारे पास कितना भी धन हो जाये, हमारी कुछ इच्छाएं सदैव पूरी होने से वचिंत रहेंगी। जब तक हम अपने वर्तमान से संतुष्ट होना नहीं सीखते हम दुखी रहेंगे।
हमारी इच्छाएं असीमित हैं किन्तु हमारे साधन सीमित हैं। हमारे पास कितना भी धन हो जाये, हमारी कुछ इच्छाएं सदैव पूरी होने से वचिंत रहेंगी। जब तक हम अपने वर्तमान से संतुष्ट होना नहीं सीखते हम दुखी रहेंगे।
विष्णु कॉलेज में पढ़ता था, उसके सभी कॉलेज के मित्रों में एक गुण समान था। कक्षा की पढ़ाई को छोड़कर उन्हे हर काम में दिलचस्पी थी। प्रताप के पिता मैजिस्ट्रेट थे और वह स्वयं एक अच्छा खिलाड़ी था।
किसी नगर में दानवीर नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसका नाम और स्वभाव एक जैसे ही थे। दानवीर किसी भी सीमा तक जाकर जरूरत मंद लोगो की सहायता करता था।
सुमित पूरे चार महीने के बाद अपने दादा-दादी के पास आया था। पर दादा-दादी एक बात से बहुत परेशान थे कि जबसे वह आया है तब से या तो वीड़ियो गेम खेलता रहता है या फिर टीवी पर कार्टून्स देखता रहता है।
राजा प्रद्युम्न एक अत्यंत कुशल शासक थे, उनके मंत्री बहुत योग्य और कुशल थे और सदैव राजा को बिना डर के सही सलाह दिया करते थे। राजा के गुरू ने उन्हें एक अमूल्य सीख दी थी।
एक पिता अपने काम से घर देर से पहुंचे। वह बहुत थके हुए और चिड़चिड़े हो रहे थे। जब वह घर पहुंचे तो उनका पांच साल का बेटा दरवाजे पर खड़ा उनका इंतजार कर रहा था।
एक बार बेगम साहिबा को चीन की महारानी ने एक बहुमूल्य सिल्क के कपड़े का टुकड़ा भेंट दिया था। बेगम साहिबा ने बीरबल को बुलाया और उसे कहा कि वह उनके लिए इस कपड़े की सुंदर पोशाक तैयार करवाएं।