Fun Story: हीरालाल की कहानी
हीरालाल महज दस वर्ष का था जब उसके माता पिता का देहांत हो गया था। एक दिन उसके माता पिता खेतों में काम कर रहे थे तो बिजली की चपेट में आ गए थे। वह एक ज़मींदार के लिए काम करते थे।
हीरालाल महज दस वर्ष का था जब उसके माता पिता का देहांत हो गया था। एक दिन उसके माता पिता खेतों में काम कर रहे थे तो बिजली की चपेट में आ गए थे। वह एक ज़मींदार के लिए काम करते थे।
किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था। परमात्मा में आस्था रखने वाला था। वह रोज़ सवेरे उठ कर गंगा में नहाने जाया करता था। नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था।
एक बार महाराज कृष्णदेव पड़ोस के राज्य पर जीत हासिल करके विजयनगर लौटे, अपनी इस जीत को यादगार बनाने के लिए महाराज कृष्णदेव के मन में विचार आया कि क्यों न नगर में विजय स्तंभ बनवाया जाए।
एक खूबसूरत गांव था, चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ। पहाड़ी के पीछे एक शेर रहता था। जब भी वह ऊंचाई पर चढ़कर गरजता था तो गांव वाले डर के मारे कांपने लगते थे। कड़ाके की ठंड का समय था।
बंटी आज जब स्कूल से आया तो फिर उसने घर पर ताला देखा। घर की सीढ़ियों पर वह अपना बैग रख कर बैठ गया। उसे भूख लगी थी और वह थका हुआ भी था। वह सोचने लगा, काश मेरी माँ भी राजू की माँ की तरह ही घर पर ही होती।
एक समय की बात है जब भारत के एक गांव का नाम उदास था। वह डल नदी के पास स्थ्ति था। उदास गांव के रहने वाले लोग कभी भी हंसते नहीं थे। इस गांव के बच्चे भी कभी नहीं हंसे थे। बच्चे सिर्फ स्कूल जाते थे।
हमेशा ही मम्मी और रसोई का नाता रहा है। मैंने आज तक पापा को रसोई से पानी का गिलास खुद लेकर पीते नहीं देखा। पापा सरकारी अफसर हैं इसलिए दफ्तर के साथ साथ घर पर भी खूब रौब चलाते हैं।