Travel: जगन्नाथ पुरी रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी नगर में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के सबसे विशाल और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है। By Lotpot 30 Jan 2024 in Travel New Update जगन्नाथ पुरी रथयात्रा Travel जगन्नाथ पुरी रथयात्रा:- आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा के पुरी नगर में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के सबसे विशाल और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसमें भाग लेने के लिए पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। (Travel) नीम की पवित्र लकड़ियों से बनते हैं रथ:- ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाये जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है। (Travel) जब ये तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ करते हैं। (Travel) आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शायद यही बात भक्तों में उत्साह, उमंग और अपार श्रद्धा का संचार करती है। मौसी के यहां सात दिन विश्राम करते हैं:- जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। (Travel) गुंडीचा मंदिर को श्गुंडीचा बाड़ीश् भी कहते हैं। यह भगवान की मौसी का घर है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। कहते हैं कि रथयात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए यहां आती हैं। तब द्वैतापति दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर रथ का पहिया तोड़ देती हैं और ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक एक मुहल्ले में, जहां देवी लक्ष्मी का मंदिर है, वहां लौट जाती हैं। (Travel) बाद में भगवान जगन्नाथ द्वारा रुष्ट देवी लक्ष्मी को मनाने की परंपरा भी है। यह मान-मनौवल संवादों के माध्यम से आयोजित किया जाता है, जो एक अद्भुत भक्ति रस उत्पन्न करती है। रथों की वापसी कहलाती है बहुड़ा यात्रा:- आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहते हैं। (Travel) जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। देवी-देवताओं के लिए मंदिर के द्वार अगले दिन एकादशी को खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान करवा कर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है। वास्तव में रथयात्रा एक सामुदायिक पर्व है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है और न ही किसी प्रकार का उपवास रखा जाता है। एक अहम बात यह कि रथयात्रा के दौरान यहां किसी प्रकार का जातिभेद देखने को नहीं मिलता है। समुद्र किनारे बसे पुरी नगर में होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के समय आस्था और विश्वास का जो भव्य वैभव और विराट प्रदर्शन देखने को मिलता है, वह दुनिया में और कहीं दुर्लभ है। (Travel) lotpot-e-comics | travel-destinations-india | travel-places | travel-places-india | Travel Jagannath Puri | Jagannath Puri Rath Yatra | लोटपोट | lottpott-i-konmiks यह भी पढ़ें:- Travel: भारत की सबसे बड़ी मीनार है कुतुब मीनार Travel: मध्यरात्रि के सूर्य का देश है नार्वे Travel: दीमापुर की भीम की गोटी Travel: एक खुला संग्रहालय है हम्पी #लोटपोट #Lotpot #लोटपोट इ-कॉमिक्स #lotpot E-Comics #travel places #Travel places India #travel destinations India #Travel Jagannath Puri #Jagannath Puri Rath Yatra #जगन्नाथ पुरी #जगन्नाथ पुरी रथयात्रा You May Also like Read the Next Article