बाल कहानी : झाड़ फूंक

किसी नगर में नरेन्द्र नाम का एक निकम्मा और आलसी लड़का रहता था। उसकी माँ जब उसे पढ़ने को कहती तो वह मुुँह बिचका देता कहता माँ मुझ पर आलस का भूत सवार हो जाता हैं। जब तक यह भूत न उतरे मैं कैसे पढूँ।’’ अनपढ़ माँ को सचमुच लगने लगा कि नरेन्द्र पर कोई भूत सवार है। उसने अपनी पड़ोसन माया से जाकर बड़ी गम्भीरता से कहा। नरेन्द्र को जाने क्या हो गया है। बैठा रहता है, पढ़ने को मन नहीं करता। हर समय उदास मुंह लटकाये हुए जाने क्या बोलता रहता है।

By Lotpot
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बाल कहानी Lotpot Hindi Kids Stories झाड़ फूंक

बाल कहानी (Lotpot Hindi Kids Stories) : झाड़ फूंक- किसी नगर में नरेन्द्र नाम का एक निकम्मा और आलसी लड़का रहता था। उसकी माँ जब उसे पढ़ने को कहती तो वह मुुँह बिचका देता कहता माँ मुझ पर आलस का भूत सवार हो जाता हैं। जब तक यह भूत न उतरे मैं कैसे पढूँ।’’

अनपढ़ माँ को सचमुच लगने लगा कि नरेन्द्र पर कोई भूत सवार है। उसने अपनी पड़ोसन माया से जाकर बड़ी गम्भीरता से कहा। नरेन्द्र को जाने क्या हो गया है। बैठा रहता है, पढ़ने को मन नहीं करता। हर समय उदास मुंह लटकाये हुए जाने क्या बोलता रहता है।

माया ने सुना तो सोचा नरेन्द्र को जाकर देख ही आये अतः वह उसके साथ ही चल दी। नरेन्द्र को पता न था कि माँ इतनी जल्दी लौट आयेगी। वह तेजी से अपने कॉमिक्स ढूंढने लगा था सारी शेल्फ की किताबें उसने नीचे पटक दी थी और सामने माँ को किसी के साथ आता देखकर उसने तेजी से सारी किताबें वापस शेल्फ पर रख दी। माया ने दूर से ही नरेन्द्र को फुर्ती से काम करते देख लिया था।

माँ समझ गई थी नरेन्द्र की बात 

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वह बच्चों को मनोविज्ञान से भली-भाँति परिचित थी और ऐसे कई बच्चों को सुधार चुकी थी जिन्होंने माँ-बाप के नाक में दम कर रखा था। एकाध बार उसने नरेन्द्र की माँ को बताया था कि वह कई बच्चों के भूत उतार चुकी है। इसीलिए ही नरेन्द्र की माँ वहाँ आई थी।

माया दबे पाँव नरेन्द्र की हरकतें देखने लगी नरेन्द्र ने अब कॉमिक्स उठा लिए थे और पढ़ना शुरू कर दिया था। सामने माया को देखते ही उसने कॉमिक्स छुपा लिए और सिर पकड़ कर लेट गया। माया पास आकर बोली, ‘‘ओह तो अब यह भूत तुम पर सवार हो गया है।

नरेन्द्र की माँ और गम्भीर हो गई। नरेन्द्र ने भी बड़ा दयनीय मुँह बनाया हुआ था। माया ने उसके चारों तरफ चक्कर काटकर फिर पूछा।

‘‘क्यों नरेन्द्र कभी ऐसे तो नहीं होता कि तुम्हें एकदम फुर्ती आ गई। तुमने किताबें पटकी फिर ठीक किया। फिर तेज-तेज काम करने के लिए तुम्हारे हाथ तेजी से चलने लगे। अभी तुम शेल्फ जो ठीक कर रहे थे।

नरेन्द्र एकदम बोला ‘‘हाँ, हाँ ऐसा ही तो होता है।’’ माया बोली तब तो तुम पर दो भूत सवार हैं एक आलस का दूसरा फुर्ती का। फुर्ती वाला तुम्हारे हाथ लम्बे करता है। आलस वाला, तुम्हारे हाथ छोटे कर देता है अगर दोनों में तालमेल न रहा तो।

‘‘तो क्या होगा?’’ नरेन्द्र ने पूछा।

तो हो सकता है हाथ लम्बे हो जाये व बिल्कुल छोटे। देंखू तो तुम्हारे हाथ!

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माया ने दोनों हाथ अपने हाथ में लेते हुए फिर कहा। अरे रे तुम्हारे दायें हाथ की ऊंगलियाँ तो छोटी हो गई। ठहरो। मैं ठीक कर दूँ। कहकर उसने उसकी ऊंगलियों को हाथ से थोड़ा-थोड़ा खींच दिया फिर बोली लगता है तुम इस हाथ में कलम या पेन कभी नहीं पकड़ते यह ऊंगलियाँ तो पेन वगैरा के बगैर उठती ही नहीं मुढ़ने लगती है।

नरेन्द्र ने अपनी ऊंगलियो को बार बार टटोला। माया फिर बोली खैर ठीक हैं आलस के भूत को भगाने का आसान तरीका है, फुर्ती के भूत को सोने न दिया जाये।

आलस उसे बार बार सुला कर तुम्हें निकम्मा बना रहा है। धीरे-धीरे तुम्हारी ऊंगलियाँ इतनी छोटी हो जाएगी कि हथेली ही बाकी नजर आयेगी। और यह कहकर माया देवी वहाँ से चली गई।

नरेन्द्र ने यह सुना तो उठ बैठा। हाथ में पेन्सिल तो उठा ली फिर उसे लगा उसमें फुर्ती आ रही है। वह तेजी से उठा कि तभी आलस हो आया। सोचने लगा कितने मजे से सोया था उह! फिर पढ़ाई-पढ़ाई! आराम से बढ़कर कुछ नहीं।

नरेन्द्र धम्म से बैठ गया। उसे माया देवी की बातें ध्यान हो आई। याद आया आलस का भूत फुर्ती केे भूत को सुलाना चाहता है।

‘‘अच्छा यह बात है।’’ कहकर नरेन्द्र ने अपने आप को थपथपाया। मन ही मन उसे लगा आलस और फुर्ती के भूत आपस में कुश्ती खेल रहे हैं। नरेन्द्र ने तुरंत अम्पायर की तरह सीटी बजा दी। फिर बस्ता संभाला और पढ़ना शुरू कर दिया।

माया अब नरेन्द्र के पास रोज आती और उसे दिनों दिन फुर्तीला देखकर खुशी से फूली न समाती।

बाद में उतर गया आलस का भूत 

नरेन्द्र में अचानक परिवर्तन देखकर सभी खुश थे। जो भी नरेन्द्र की माँ से इस परिवर्तन की कहानी पूछने आता तो बेचारी कहती। पड़ोस में माया देवी है उसी ने नरेन्द्र का भूत उतारा है। एक दिन आकर ऐसी झाड़-फूंक कर गई कि नरेन्द्र को ठीक कर दिया। कहते हैं उसने बड़े-बड़े भूत उतारने के सेन्टर खोल रखे हैं।

माया देवी ने उन्हीं दिनों अपने घर के बाहर एक बोर्ड लटका दिया था। जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था। बच्चों ने नाक में दम कर रखा है, आपको तंग करने का उन पर भूत सवार है या आलस के भूत ने उन्हें आ जकड़ा है तो उन्हें यहाँ लाइये। उनकी मुफ्त झाड़-फूंक होगी।

लेकिन नरेन्द्र ने खुद ही अपने आलसी और निकम्मे दोस्तों को आलस और फुर्ती के भूतों के किस्से सुनाकर सबके आलस के भूत उतार दिये हैं। अब और किसी को झाड़-फूंक की जरूरत हो तो अपने भीतर बैठे आलस के भूत को भगा दे वरना बाद में मुश्किल होगी।

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