बाल कहानी : विजय का साहस बाल कहानी : विजय का साहस - विजय अपने माता-पिता के साथ गाँव जा रहा था। वहाँ उसकी चचेरी बहन की शादी थी। पिता जी ने शादी में देने के लिए सुन्दर सुन्दर उपहार खरीदे थे जिसमें कपड़े, बर्तन और सोने के गहने भी थे। फैजाबाद से शाम को वे सब गंगा युमना एक्सप्रेस गाड़ी से रवाना हुए जो सुबह तक उनको आगरा पहँँुचा देती। जहाँ से बस पकड़कर वे दोपहर तक गाँव पहुँच जाते। By Lotpot 20 Jan 2020 | Updated On 20 Jan 2020 11:50 IST in Stories Moral Stories New Update बाल कहानी : विजय का साहस - विजय अपने माता-पिता के साथ गाँव जा रहा था। वहाँ उसकी चचेरी बहन की शादी थी। पिता जी ने शादी में देने के लिए सुन्दर सुन्दर उपहार खरीदे थे जिसमें कपड़े, बर्तन और सोने के गहने भी थे। फैजाबाद से शाम को वे सब गंगा युमना एक्सप्रेस गाड़ी से रवाना हुए जो सुबह तक उनको आगरा पहँँुचा देती। जहाँ से बस पकड़कर वे दोपहर तक गाँव पहुँच जाते। गाड़ी लखनऊ पहुँची तो विजय को भूख लग आयी थी। माँ ने खाने का डिब्बे खोला। पिता जी बोतल में ताजा पानी ले आये फिर सबने भरपेट भोजन किया। लखनऊ से गाड़ी जब छूटी तो रात के नौ बज रहे थे। विजय जिस डिब्बे में यात्रा कर रहा था वह शयनकक्ष था। थोड़ी देर में विजय को नींद सी आने लगी। वह माँ को बताकर ऊपर वाली सीट पर लेटने चला गया। पिताजी और माँ अभी बैठे बाते कर रहे थे। जब थोडा मेलजोल बढ़ा माँ ने सामने बैठी औरत से मेलजोल बढ़ा लिया था और बातें कर रही थीं। वह औरत काफी दिनों बाद अपने मायके जा रही थी और छोटे भाई बहनों के लिए ढेर सारे उपहार ले जा रही थी जिसमें खिलौने, कपड़े और जाने क्या क्या था। उन्हीं के डिब्बे में एक व्यापारी भी खाना खा रहा था, जो आगरा से अपनी दुकान के लिए कुछ सामान खरीदने जा रहा था। कुछ छात्र भी थे जो ताजमहल, लालकिला, फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा इत्यादि ऐतिहासिक स्थल देखने की इच्छा से जा रहे थे। इस समय वे सब कहानियों की किताबें पढ़कर और बातें करके अपना मनोरंजन कर रहे थे। दो व्यक्ति अलग बैठे बातें कर रहे थे। कभी कभी वे अपनी नजर उठाकर पूरे डिब्बे पर डाल लेते और फिर बातों में व्यस्त हो जाते। थोड़ी देर बाद डिब्बे में लगभग सभी यात्री ऊंघने लगे। विजय के माता-पिता भी अपनी अपनी सीटों पर लेट गये थे और सोने की कोशिश कर रहे थे। स्वंय विजय भीं आँख बंद किये लेटा था। पटरियों की खटपट से उसे नींद नहीं आ रही थी। तब लूट खसोट आरम्भ हुई बातें करते हुए दोनों व्यक्तियों ने आपस में कुछ इशारा किया और वे उठ खड़े हुए। एक ने जेब से पिस्तौल निकाल लिया और कड़क कर बोला- ‘खबरदार, किसी ने कोई हरकत की तो गोली मार दूंगा। एकाएक जैसे डिब्बे में बम फट गया हो। सभी चैंक पड़े और उन दोनों को देखने लगे। पिस्तौल वाला फिर गरजा-‘कोई अपने स्थान से हिलेगा नहीं। जिसके पास जो हो वह चुपचाप निकाल दे।’ लोग अवाक रह गये कि ये अचानक क्या हो गया। अभी वे ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाये थे कि दोनों ने लूट खसोट आरम्भ कर दी। पिस्तौल वाला हर एक के पास जाकर इशारा करता और सारा सामान अपने थैले में रखवा लेता। हर एक अपना सारा सामान निकाल कर सामने रख देता जिसे आदमी उठाकर अपने थैले में रख लेता। पिस्तौल वाला व्यापारी के पास पहँुचा और बोला-जो कुछ हो चुपचाप निकाल दो।’ ‘नहीं मैं तुम्हें अपने रूपये नहीं दे सकता।’ ‘अगर एक मिनट तुमने और देर की तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा। अचानक व्यापारी ने पिस्तौल वाले पर हमला कर दिया। लेकिन वह सतर्क था उसने पिस्तौल चला दी। गोली लगते ही व्यापारी वहीं ढेर हो गया। डर और दहशत से पूरे डिब्बे में सन्नाटा छा गया पिस्तौल वाला गरजा, ’अगर अब किसी ने कोई शरारत की तो यही अंजाम उसका भी होगा।’ फिर पिस्तौल वाला जिसके पास भी जाता वह बिना किसी हील हुज्जत के धीरे से अपना गहना, रुपया सब उसके हवाले कर देता। छात्रों ने भी एक दूसरे की तरफ देखते हुए बेबसी से अपना सामान उसके हवाले कर दिया। लुटेरे, विजय के माता-पिता के पास पहँुचे। उन्होंने भी चुपचाप सारा सामान उसको दे दिया। विजय देख रहा था, बहन की शादी में दी जाने वाली चीजें गहने, उपहार, रुपये सब वे उठा-उठाकर अपने थैले में रखे जा रहे थे। चोरों की हुई धुनाई पिताजी के परिश्रम की कमाई हुई दौलत लूट रहे थे। पिस्तौल वाले की पीठ उसकी तरफ थी। अचानक ही विजय को न जाने क्या सूझा वह उठकर बैठ गया। बगल में रखा हुआ ब्रीफकेस उठाकर पिस्तौल वाले के सर पर पटक दिया। पिस्तौल वाले के मुंह से चीख निकल गयी। पिस्तौल छूटकर दूर जा गिरी। लोग चौंके और जब तक वे कुछ समझते विजय एक बड़ा बैग भी उसके सर पर पटकते हुए चिल्लाया-‘पकड़ो........ मारो.... एकाएक जैसे सबको स्थिति का आभास हुआ। छात्रों ने दौड़कर उन दोनों को पकड़ लिया और लात घूंसों की बरसात शुरू कर दी। दो ही मिनट में दोनों लुटेरे बेदम बेबस फर्श पर पड़े थे। एक यात्री ने अपने बिस्तर बंद से रस्सी खोलकर निकाल दी। उसी से दोनों के हाथ पाँव अच्छी तरह बाँध दिये गये। अगले स्टेशन पर उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया गया। सभी विजय की प्रशंसा कर रहे थे, कि उसकी चालाकी और साहस ने उन लोगों के सामान को लुटने से बचा लिया था। घायल व्यापारी को भी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। और पढ़ें : बाल कहानी : आदमी का शिकार Facebook Page #Acchi Kahaniyan #Bacchon Ki Kahani #Best Hindi Kahani #Hindi Story #Inspirational Story #Jungle Story #Kids Story #Lotpot ki Kahani #Mazedaar Kahani #Moral Story #Motivational Story #जंगल कहानियां #बच्चों की कहानी #बाल कहानी #रोचक कहानियां #लोटपोट #शिक्षाप्रद कहानियां #हिंदी कहानी You May Also like Read the Next Article