बाल कहानी : आकाश महल (Lotpot Kids Story): शंहशाह जलालुद्दीन अकबर अभी दरबार में आकर बैठे ही थे कि दरबान ने आकर सूचना दी।
आलमपनाह वर्मा के राजा का दूत आपके पास हाजिर होने की इजाजत चाहता है। इजाजत हैं। शंहशाह ने गुलाब का फूल सहलाते हुए उत्तर दिया। इजाजत पाते ही दरबान दूत को लेकर हाजिर हुआ और वह चिट्ठी लेकर बड़े अदब से बादशाह तक पहुँचाई जो वह वर्मा के राजा से लाया था।
चिट्ठी आवाज-ए-बुलंद पढ़ी जाए। बादशाह ने फरमान जारी किया। चिट्ठी में लिखा था कि दरबारे अकबरी में बीरबल जैसे अक्लमंद रत्न भरे हैं। उनमें से अगर किसी को अगर यहाँ एक आकाश महल बनाने के लिये भेजा जाए तो मेहरबानी होगी।
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पत्र सुनते ही बादशाह मुस्कुराया। और फिर पत्र उसी की ओर बढ़ाते हुए कहा। बीरबल जाओ, आकाश महल बनवा दो जाकर। मगर ख्याल रहे कि अगर महल नहीं बना तो हमारी तौहीन होगी और शाही तौहीन की सजा बीरबल अच्छी तरह से जानते हैं।
पत्र बीरबल ने भी पढ़ा और जाने की तैयारी की। बीरबल सोचने लगा कि आकाश महल का अर्थ है आकाश के बीच बना हुआ महल।
अब आकाश के बीच महल कैसे बनेगा? किस पर यह खड़ा होगा। कैसे खड़ा होगा? यह सब असंभव सी बात है। असल में लगता है इसके पीछे कोई चाल है। वह सोचने लगा। खैर वर्मा तो जानता ही था। वहाँ पहुँचकर उसने वहाँ के राजा की सारी योजना सुनी। और उस पर विचार करने लगा।
बापू अब सो भी जाईये। बहुत देर हो गई है। सुबह भी आपको जल्दी उठना होगा। बीरबल की लड़की कल्याणी ने कहा। जो यात्रा में उसकी देखभाल करने के लिये साथ रहती थी। बेटा जान आफत में आ पड़ी है। यहां का राजा मूर्ख है। यहा आकाश के बीच महल बनवाना चाहता है।
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किसी ने इसको मेरे बारे में बता दिया है और इसने बादशाह से मुझे बुलवा लिया है। अब यह तो स्पष्ट है कि आकाश में लटकता हुआ कोई महल बन नहीं सकता और न बन पाने की सूरत में बादशाह की तौहीन होगी और बादशाह की तौहीन का अर्थ मौत की सजा ही हो सकती है।
कल्याणी भी काफी समझदार थी। आखिर बीरबल के बेटी थी। वह भी इस समस्या पर विचार करने लगी। अचानक उसके चेहरे पर आशा की रेखा चमक उठी। वह कहने लगी। इस कार्य में मैं आपकी सहायता कर सकती हूँ। वह कैसे? बीरबल बोल पड़ा। कल्याणी कहने लगी आप बढ़िया नस्ल के एक सौ तोते मंगवा लें। बीरबल ने सौ शिकारियों को बुलवाया।
शिकारियों ने और पक्षियों को छोड़कर तोते पकड़ने शुरू कर दिये। वे रोज तोते पकड़कर लाते और बीरबल को सौंप देते। बीरबल और कल्याणी उन तोतों को एक वाक्य सीखाने लगे। ईटें लाओ, चूना लाओ। रोज रोज के अभ्यास से और प्रयास से तोते ईटें लाओ, चूना लाओ। सीखने लगे।
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जब सभी तोते सीख गये तो बीरबल ने राजा को कहा। महाराज आज तक मैं आकाश महल तैयार करने के लिये राज तैयार करता रहा हूँ। अब मेरे राज तैयार हो गये हैं। आप कृपा कर मजदूर ऐसे तैयार करके दें जो आकाश में ईंट चूना आदि पहुँचा सकें।
राजा का क्या लगता था उसने तो आज्ञा ही देनी थी। उसने अपने प्रधान मंत्री को आज्ञा दी कि ऐसे मजदूर तैयार किये जाएं जो आकाश महल के लिये आकाश में ईंट चूना पहुँचा सके। प्रधान मंत्री तो पहले ही इस योजना से हैरान थे। वे सोचते थे कि राजा मूर्ख हो गया है। उसे पता नहीं कि आकाश में लटकता कोई महल नहीं बन सकता।
और यह सलाह भी उन्होंने ही अपने सिर से मुसीबत टालने के लिये दी थी। कि यह काम करने के लिये बीरबल को कहा जाए।
पर आखिर में ये मुसीबत फिर मेरे ही गले पड़ गई है। वह फिर थोड़ा संभले और वह राज दिखाने के लिये कहा। जो आकाश में भवन बनाएंगे। बीरबल के पास तोते तैयार तो थे ही वह मंत्री को एक तरफ ले गया जहाँ तोतों की आवाजें आ रही थीं। ईटें लाओ, चूना लाओ। उसने समझा
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ये राज आगे ही आकाश में भेजे जा चुके हैं। पर वह मजदूर कैसे तैयार करे।
आखिर में उसने राजा से कह दिया कि वह इस काम में असमर्थ है। हार कर राजा को अपनी योजना छोड़नी पड़ी और राजा को बीरबल से क्षमा माँगनी पड़ी कि उन्हें बेकार कष्ट भी दिया जिसमें यह लिखा था कि बीरबल की सामथ्र्य में कोई कसर नहीं रही। कसर रही तो हमारी ही समाथ्र्य में।
बीरबल लौटकर आए तो उन्होंने सारी कहानी शंहशाह को सुना दी और साथ ही आकाश महल बनाने के लिये तैयार किये गये राज भी दिखा दिये। जिन्हें देखकर शंहशाह बहुत प्रसन्न हुए और उनकी चतुराई पर खूब हँसें और बीरवल की बेटी को दरबार में बुला कर 50 गांव ऊपहार में दे दिये।