बाल कहानी :करीम बख्श के जूते

करीम बख्श बहुत ही सीधा-सादा आदमी था, पर था बहुत कंजूस। सादा भोजन करना और सादे कपड़े पहनना ही उसे भाता था जूते तो कभी उसने पहने ही नहीं थे। एक बार मित्रों के बहुत कहने पर उसने जूते खरीदने की सोची। सारा बाजार छान मारा, पर उसे अपनी पसंद के जूते न मिले।

By Lotpot
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बाल कहानी : करीम बख्श के जूते(Lotpot Kids Story):

बाल कहानी : करीम बख्श के जूते(Lotpot Kids Story): करीम बख्श बहुत ही सीधा-सादा आदमी था, पर था बहुत कंजूस। सादा भोजन करना और सादे कपड़े पहनना ही उसे भाता था जूते तो कभी उसने पहने ही नहीं थे। एक बार मित्रों के बहुत कहने पर उसने जूते खरीदने की सोची। सारा बाजार छान मारा, पर उसे अपनी पसंद के जूते न मिले।

जो जूते देखने में अच्छे और मजबूत होते वे इतने महँगे होते कि उन्हें देखकर करीम बख्श दूर भाग जाता। लगातार एक सप्ताह की दौड़ भाग के बाद उसे अपनी मन पसंद के सस्ते से जूते मिले। इन जूतों को करीम बख्श अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखता। जहाँ कंकड़ीली पथरीली जमीन देखता झट खराब होने के डर से जूते उतार लेता।

काफी हिफाजत के बाद भी करीम बख्श के जूतों का तला घिसने लगा। उसने फौरन जूते में दूसरा एक मोटा सा तला लगवा लिया।

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बाल कहानी : करीम बख्श के जूते(Lotpot Kids Story):

मोटे तले के हिसाब से उसमें बड़ी-बड़ी कीलें लगाई गई। इस मोटे तले को लगवाने का परिणाम यह हुआ कि जूते थोड़े भारी हो गये। भारी जूते पहनने से करीम बख्श को थोड़ी परेशानी तो होती, पर यह सोचकर वह खुश होता की अब ये जल्दी खराब नहीं होंगे। बेचारा करीम बख्श कितनी ही जूतों की हिफाजत करता, पर तला घिस ही जाता। वह झट से दूसरा मोटा सा तला लगवा लेता।

लगातार इतने तले व कीलों जूतों में लगवाते लगवाते उनका यह हाल हो गया था। कि मानों एक एक जूता दो दो किलों का हो गया हो।

अब उन्हें पहनना भी करीम बख्श के लिए समस्या बन गया था। उन्हें पहनकर वह तेजी से चल भी न पाता। जो भी करीम बख्श को धीरे धीरे चलते देखता वह पूछ ही लेता। क्यों करीम भईया क्या कोई तकलीफ है जो इतनी धीमी चाल से चल रहे हो? करीम बख्श को उसने जूतों को देखकर उसका खूब मजाक बनाते। लगातार लोगों के हँसी को सुनते सुनते वह तंग आ गया था।

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उसका मन करता कि इन जूतों को कहाँ दे जहाँ से वे कभी नजर न आएं। उसने उन्हें एक खेत में फेंक दिया और राहत की सांस लेता हुआ घर आया। चारपाई पर वह बैठा ही था कि किसी ने पुकारा। करीम बख्श तुम्हारे जूतों ने तो हमारे खेत में आने वाले पानी को रोक दिया। लो संभालों इनको। और सुन लो ये अब कभी हमारे खेत में न दिखें, वर्ना हमसे बुरा कोई न होगा।

करीम बख्श सिर धुनता हुआ बाहर निकला। उसने देखा कि जूते पानी में भीग जाने के कारण काफी भारी हो गये थे। उन्हें तो अब सुखाना पड़ेगा वर्ना सारे घर में भीगे चमड़े की बदबू आयेगी।

ऐसा सोचकर करीम बख्श ने उन्हें खपरेल पर सूखने के लिए डाल दिया। पर जूते तो करीम बख्श को जूतों की तरह परेशान करने में लगे थे। एक दिन दो बिल्लियाँ खपरैल पर लड़ने लगीं। उनकी लड़ाई में जूते खपरैल से सरक कर उधर से जाते हुए एक आदमी के सिर पर गिर पड़े। दो-दो किलो के जूतों के सिर पर गिरते ही वह आदमी बिलबिला उठा।

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उसकी करीम बख्श से जमकर लड़ाई हुई। उस समय करीम बख्श को जूते ही सबसे बड़े दुश्मन नजर आ रहे थे। जूतों को उठाकर उसने मन में ठान लिया कि अब उन्हें दफन करके ही दम लूँगा। घर के करीब में ही उसने गड्ढा खोदा और उसमें उन्हें दबा दिया। करीब बख्श को जूते दबाते दो चोरों ने देख लिया। उन्होंने सोचा, जरूर ही करीम बख्श यहाँ अपना धन गाड़ रहा है।

रात को मौका देखकर उन्होंने वह गड्ढा खोद डाला। खोदने पर जब उन्हें धन की जगह जूते मिले तो वे बहुत खिसियाए। गुस्से में आकर उन्होंने जूते करीम बख्श के घर के सामने डाल दिए जूतोें के चमड़े की गंध आने के कारण कुत्तों ने उन्हें खाने की कोशिश की। वे जूतों को घसीटते हुए नहर तक ले गए। आखिर में उन्होंने जूतों को नहर में डाल दिया।

बाल कहानी : करीम बख्श के जूते(Lotpot Kids Story):

नहर में बहते बहते जूते उस पाइप में जाकर फंस गये, जिस पाइप से होकर पानी जमींदार के घर मे जाता था। जमींदार के नौकरों ने पानी को रूकता देख पाइप की जांच की। पाइप में करीम बख्श के जूतों को फंसा देखकर उन्होंने उन्हें वहाँ से निकाला और सारी बात जाकर जमींदार को बताई। जमींदार को बहुत गुस्सा आया की करीम बख्श के जूतों ने सारा पानी खराब कर दिया।

उसने नौकरों को भेजकर फौरन करीम बख्श को बुलाया। जूतों का नाम सुनते ही करीम बख्श की जान सूख गई। अपना माथा पीटता हुआ वह जमींदार के पास पहुँचा और हाथ जोड़कर बोला। महाराज मुझे चाहे कितनी कड़़ी से कड़ी सजा दीजिये, पर मेरा पीछा इन जूतों से छुड़वाइए। इन्होंने तो मेरा जीना हराम कर दिया है।

एक बार उन्हें खरीदकर मैं इतना पछता रहा हूँ कि अब सात जन्म भी इनका नाम नहीं लूँगा। करीम बख्श की हालत देखकर जमींदार को दया आ गई। उसने करीम बख्श को छोड़ दिया। साथ ही उसका पीछा जूतों से भी छुड़ा दिया नौकरों को आदेश दिया कि जूतों को जला डालों ताकि उनका नामोनिशान मिट जाए। उनकी छाया तक भी करीम बख्श पर पड़ने न पाए।

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