बाल कहानी : पछतावा

आज सुबह के दैनिक अखबार के खेल पन्ने पर यह पढ़ते ही कि, ‘जिला क्रिकेट संघ, राष्ट्रीय वीनू मांकड़ सब जूनियर क्रिकेट ट्राफी’  हेतू स्थानीय बाल क्रिकेट खिलाड़ियों की चयन स्पर्धा आयोजित कर रहा है, राजू खुशी के मारे उछल पड़ा। वह बहुत समय से इस प्रतियोगिता में अपने जिले की टीम का प्रतिनिधित्व करने का सपना देख रहा था।  राजू ने तुरन्त भागकर अपने पड़ोसी क्रिकेट खिलाड़ी मित्रों गुड्डू व चिंटू को भी ताली बजाकर अपनी प्रसन्नता जाहिर की। अखबार की सूचना के अनुसार टीम का चयन अगले दिन सुबह आठ बजे से नेहरू स्टेडियम में प्रारंभ होना था।

By Ghanshyam
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REGRET बाल कहानी

बाल कहानी : पछतावा - Lotpot Kids Stories : आज सुबह के दैनिक अखबार के खेल पन्ने पर यह पढ़ते ही कि, ‘जिला क्रिकेट संघ, राष्ट्रीय वीनू मांकड़ सब जूनियर क्रिकेट ट्राफी’  हेतू स्थानीय बाल क्रिकेट खिलाड़ियों की चयन स्पर्धा आयोजित कर रहा है, राजू खुशी के मारे उछल पड़ा।

वह बहुत समय से इस प्रतियोगिता में अपने जिले की टीम का प्रतिनिधित्व करने का सपना देख रहा था।  राजू ने तुरन्त भागकर अपने पड़ोसी क्रिकेट खिलाड़ी मित्रों गुड्डू व चिंटू को भी ताली बजाकर अपनी प्रसन्नता जाहिर की।

अखबार की सूचना के अनुसार टीम का चयन अगले दिन सुबह आठ बजे से नेहरू स्टेडियम में प्रारंभ होना था।

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अगली सुबह के इंतजार में राजू का पूरा दिन पहाड़ सा कटा। सुबह होते ही वह अपनी सफेद ड्रेस पहनकर एवं अपना बैट हाथ में लेकर गुड्डू को बुलाने उसके घर की ओर चल दिया। वहीं चिंटू भी आ गया। तीनों मित्र नेहरू स्टेडियम जाने के लिए बस स्टाॅप की ओर चल दिए।

राजू की गिनती शहर के गिने चुने बाल क्रिकेट खिलाड़ियों में होती थी। उसे अपने खेल पर पूरा भरोसा था। शायद इसीलिए वह टीम में अपने चयन के प्रति बहुत ज्यादा विश्वास था।

तीनों मित्र बस स्टाॅप की ओर बढ़े चले आ रहे थे। तभी एक काली बिल्ली उनका रास्ता काट गई। चिंटू व गुड्डू ने बिल्ली के रास्ता काटे जाने पर कोई गौर नहीं किया परंतु राजू वहीं पर ठिठक कर खड़ा हो गया। क्योंकि राजू बिल्ली के रास्ता काट जाने को अशुभ मानता था।
गुड्डू व चिंटू राजू की अंधविश्वासी आदतों से परिचित थे अतः वे उसके चलते चलते रूक जाने का कारण समझ गये।

चिंटू, राजू की बाँह पकड़कर बोला। अरे चलो यार। इससे कुछ नहीं होता, ये तो फालतू की बातें हैं।

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परन्तु राजू ने चिंटू व गुड्डू की बातों पर गौर नहीं किया। वह मन में डर का ख्याल लिए वापिस लौट गया। इसमें दोष राजू का नहीं उसके परिवारिक संस्कारों का था। राजू की दादी माँ ने उसे बचपन से ही घुट्टी पिलाई थी कि ‘अगर कहीं जाते वक्त खाली मटका सामने आ जाये या कोई छींक दे या फिर काली बिल्ली रास्ता काट जाये तो घर लौट आना चाहिए।
क्योेंकि ऐसे में सोचे काम पूरे नहीं होते बल्कि कुछ और गलत हो जाता है।

राजू दादी माँ की सीखों को ध्यान रख कर वापिस घर लौट गया। गुड्डू व चिंटू उसकी मूर्खता पर मन ही मन हँसते हुए बस स्टाॅप की ओर चल दिये। राजू ने घर लौटकर शंकर भगवान के सामने अगरबत्ती जलाकर शिव-चालीसा का पाठ किया, क्योंकि उस दिन शंकर जी का दिन सोमवार था। फिर मुँह मीठा कर वह प्रसन्न मन से बस स्टाॅप की ओर चल दिया। अपने कर्म -काण्डों से उसे विश्वास हो गया कि इनसे अपशगुन का प्रभाव नष्ट हो गया होगा।

किन्तु इस चक्कर में उसे यह ध्यान ही नहीं रहा कि उस इलाके से हर दो घंटे बाद ही बस नेहरू स्टेडियम की ओर जाती थी। सात बजे वाली बस जा चुकी थी और नौ बजे वाली बस आने में अभी बहुत देर थी।

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ब राजू बड़ा घबराया। जल्दी-जल्दी में वह गलत बस में चढ़ गया। उस बस ने उसे स्टेडियम से डेढ़ किलोमीटर दूर छोड़ा। राजू बस से उतरकर बैट बगल में दबाये स्टेडियम की ओर दौड़ पड़ा। जब वह पसीने से लथपथ स्टेडियम पहुँचा तो वहाँ का दरवाजा बन्द हो चुका था।

राजू ने चैंकीदार से दरवाजा खोलने की विनती की। लेकिन ‘जिला क्रिकेट संघ’ के अधिकारियों का निर्देश था कि लेट लतीफ खिलाड़ियों के लिये न तो दरवाजा खोला जाएगा और न ही उन्हें चयन में शामिल किया जाएगा।
राजू रूआंसा सा होकर वहीं बैठ गया। गलती उसकी ही थी क्योंकि चयन आठ बजे से प्रारंभ था और वह काफी लेट हो चुका था।

अन्दर चयन स्पर्धा समाप्त होते ही बाल खिलाड़ी बाहर निकल आये। राजू के दोनों साथी गुड्डू व चिंटू टीम में चुन लिये गये थे। राजू ने अपना सिर पीट लिया। उसे अब पछतावा हो रहा था कि वह क्यों अंधविश्वास में पड़ा?
राजू गुड्डू व चिंटू के साथ मायूस सा घर लौट गया। आज की ठोकर से उसने सबक सीखा कि अब वह कभी ऐसी दकियानूसी बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देगा।