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बाल कहानी (Hindi Kids Stories) : फसलें लहलहा उठीं- विजय नगर के महाराज कृष्णदेवा राय अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखा करते थे। प्रजा के सुख-दुख को जानने के लिये वह अपने जासूसों पर ही नहीं निर्भर रहा करते थे, बल्कि अक्सर भेस बदलकर अपने प्रधानमंत्री के साथ अपने राज्य के भ्रमण पर निकल जाया करते थे। इस प्रकार उन्हें जनसाधारण के साथ घुलने मिलने का और उसकी कठिनाइयां जानने का अवसर मिल जाया करता था।
एक बार महाराज कृष्णदेव राय अपने प्रधानमंत्री के साथ एक किसान के भेस में राजधानी से दूर स्थित एक गांव रामपुर जा पहुँचे। सर्दी के दिन थे और रात हो चुकी थी। गांव की चैपाल में कुछ किसान अलाब जलाकर ताप रहे थे। महाराज कृष्णदेव राय अपने प्रधानमंत्री के साथ उन ग्रामीणें के बीच जा बैठे। ग्रामिणों ने उन्हें मुसाफिर समझकर उनकी कुशलक्षेम पूछी और फिर अपनी बातों में मशमूल हो गये।
ग्रामीणों के बीच इस बार भी पिछले तीन सालों की तरह फसल अच्छी न होने की चर्चा चल रही थी। रामपुर में इसके पहले हर साल बहुत अच्छी हुआ करती थी और अपनी जरूरत भर का अनाज रख लेने के बाद वे बचे हुये अनाज को राजधानी में भी अच्छे दामों पर बेचने के लिये भेज दिया करते थे, परंतु पिछले तीन सालों से उनके खुद के खाने के लाले पड़ रहे थे और वे राजधानी अपना अनाज नहीं भेज पा रहे थे। महाराज कृष्णदेव राय का रामपुर आने का मकसद भी यही था कि वे रामपुर से राजधानी में अनाज न आने का कारण जान सकें।
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अलाब ताप रहे उन ग्रामीणों के बीच से एक नौजवान ने यूँ ही बात करते हुये अपनी राय दी कि यदि राज्य की तरफ से उनके गाँव के खाने-पीने का जिम्मा उठा लिया जाए, तो वे परिवार की समस्याओं को भूलकर खेतों में बड़ी मेहनत से कामकर अनाज का उत्पादन तिगुना चैगुना कर सकते हैं। ग्रामीणों ने उस नौजवान की बात हँसी में उड़ा दी, परंतु महाराज कृष्णदेव राय के दिमाग में यह बात घर कर गई।
सराय में रात गुजारकर महाराज कृष्णदेव राय दूसरे दिन राजधानी लौट आये। लौटते ही महाराज ने घोषणा की कि रामपुर में राजा की तरफ से एक भंडारा खोला जायगा। जिसमें दोनों समय गांव वालों के भोजन का निशुल्क प्रबंध किया जायगा। इसके एवज में रामपुर वासियों अपेक्षा की जायेगी कि कि वे खेतों में निश्ंिचत होकर काम करें और अनाज का उत्पादन बढ़ाकर राजधानी को भेजें।
राज्य उन्हें प्राप्त अनाज का उचित मूल्य भी देगा। प्रधानमंत्री ने महाराज को समझाना चाहा कि इससे अच्छा होता यदि गांव वालों को उन्नतिशील कृषियंत्र, अच्छी खाद व अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध कराये जाते और उन्हें खेती की नवीनतम विधियों से भी परिचित कराया जाता, परंतु महाराज ने प्रधानमत्री की एक न सुनी।
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महाराज के आदेश के फलस्वरूप रामपुर वासियों के लिय निशुल्क भंडारे की व्यवस्था हो गई। गांव वालों ने प्रारंभ में तो खेतों में मेहनत से काम करने की ओर कुछ उत्साह दिखाया, परंतु धीरे-धीरे वे काहिल होते गये। भंडारे से उन्हें दोनों समय अच्छा भोजन निशुल्क मिल जाया करता था। भरपेट भोजन करने के बाद वे अपना समय यूँ ही मटरगश्ती करने में गुजार दिया करते थे।
महाराज कृष्णदेव राय ने कुछ समय बाद अपनी योजना की प्रगति जाननी चाही। अपना लाव-लश्कर लेकर उन्होंने रामपुर जाकर गांव के बाहर पड़ाव डाला। प्रधानमंत्री के साथ महाराज खेतों का भ्रमण करने निकले। उनको विश्वास था कि खेतों में गांव वालों ने काफी परिश्रम से काम किया होगा और इस समय फसलें लहरा रही होगी, परन्तु आशा के विपरीत खेतों को वीरान देखकर महाराज अचंभित रह गये।
गांव के अंदर जाकर महाराज ने देखा कि गांववासी विभिन्न प्रकार के खेल तमाशों में लगे है और अपना समय यूँ ही व्यर्थ कर रहे हैं।
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प्रधानमंत्री ने महाराज को समझाया कि जब मनुष्य को बैठे-बिठाये खाने को मिल जाता है, तो वह काहिल होकर काम की ओर से विमुख हो जाया करता है महाराज को अपनी योजना की निरर्थकता का अहसास हो गया। उन्होंने तुरंत निशुल्क भंडारेे की व्यवस्था बंद करवा दी और प्रधानमंत्री की राय के अनुसार गावंवालों को उन्नतिशील कृषि यंत्र, अच्छी खाद व अधिक उपज देने वाले बीज उपलब्ध कराये और उन्हें खेती की नवीनतम विधियों से परिचित कराने के लिये विशेषज्ञों को बुलवाया। अगले वर्ष से ही रामपुर में अनाज का उत्पादन चैगुना हो गया और गांववासी पहले से भी कहीं ज्यादा अनाज राजधाानी विक्रय के लिये भेजने लगे।