/lotpot/media/media_files/2025/10/14/diwali-ki-kahani-2025-10-14-10-33-55.jpg)
बच्चों के लिए दिवाली की कहानी:- दिवाली, जिसे रोशनी का त्योहार (Festival of Lights) कहा जाता है, केवल दीये जलाने या मिठाइयाँ खाने तक ही सीमित नहीं है। यह सच्चाई, अच्छाई और ज्ञान की जीत का प्रतीक है। बच्चों के लिए यह समय उत्साह, नए कपड़े और पटाखों का होता है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि इस त्यौहार के पीछे छिपा असली संदेश क्या है?
आज हम आपको अंजलि और उसके छोटे भाई विक्रम की कहानी बता रहे हैं। यह कहानी 5 से 15 साल के बच्चों को सिखाएगी कि दिवाली की असली रोशनी हमारे घर के बाहर नहीं, बल्कि हमारे दिल के अंदर होती है।
कहानी: मिट्टी के दीये और मन की रौशनी
दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले में अंजलि (10 साल) और विक्रम (7 साल) रहते थे। उनके घर के पास ही एक बड़ी बाज़ार थी जहाँ दिवाली की रौनक देखते ही बनती थी। इस साल, अंजलि और विक्रम ने अपनी माँ से सबसे महँगे और तेज़ आवाज़ वाले पटाखे खरीदने की ज़िद की। उनका ध्यान मिट्टी के साधारण दीयों या रंगोली पर नहीं था, बल्कि केवल शोर और चमकदार आतिशबाज़ी पर था।
माँ ने उन्हें समझाया, "बच्चों, दिवाली शोर का नहीं, प्रकाश का त्यौहार है। इसमें ख़ुशी, प्रेम और दूसरों के जीवन में उजाला लाने की भावना होती है।"
लेकिन दोनों बच्चे नहीं माने।
दिवाली से दो दिन पहले, जब वे बाज़ार गए, तो उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी मिट्टी के दीये वाली अम्मा उदास बैठी थीं। उनकी दुकान पर ज़्यादा भीड़ नहीं थी, क्योंकि सब लोग फैंसी चाइनीज लाइटों की ओर आकर्षित हो रहे थे।
अंजलि ने फुसफुसाते हुए विक्रम से कहा, "देखो, अम्मा कितनी दुखी लग रही हैं। उनकी दुकान पर कोई ख़रीदी नहीं कर रहा।"
विक्रम ने कहा, "हाँ दीदी, सब लोग रंगीन झालर और म्यूजिक वाले बल्ब ख़रीद रहे हैं।"
अचानक, अंजलि को माँ की बात याद आई – "दिवाली ख़ुशी, प्रेम और दूसरों के जीवन में उजाला लाने की भावना है।"
अंजलि ने अपने पैसे गिने। जितने पैसों से वे थोड़े से तेज़ पटाखे ख़रीद सकते थे, उतने में उन्होंने अम्मा से उनके सभी मिट्टी के दीये खरीद लिए।
अम्मा की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने दोनों बच्चों को ढेर सारा आशीर्वाद दिया।
अगले दिन, दिवाली की शाम को जब मोहल्ले में हर तरफ़ महँगी लाइटें जल रही थीं, तब अंजलि और विक्रम ने अपने घर की बालकनी में एक अनोखी दिवाली मनाई।
उन्होंने अम्मा से ख़रीदे हुए सभी छोटे-छोटे दीयों में तेल डाला और रुई की बाती लगाकर उन्हें जलाया। उन्होंने ये दीये न सिर्फ़ अपने घर में, बल्कि मोहल्ले के अनाथ आश्रम और कुछ ग़रीब बच्चों के घरों की दहलीज पर भी रखे, जिनके पास सजाने के लिए कुछ नहीं था।
जब उन्होंने दीयों की रोशनी चारों ओर फैलाई, तो उन्हें एक अद्भुत शांति और ख़ुशी महसूस हुई। वह ख़ुशी किसी भी तेज़ पटाखे के शोर से ज़्यादा मीठी थी। अनाथ आश्रम के बच्चों के चेहरों पर जो मुस्कान आई, वह हज़ारों बल्बों से ज़्यादा चमकदार थी।
माँ ने उन्हें गले लगा लिया और कहा, "**यही है बच्चों, दिवाली का असली अर्थ। जब हम अपनी ख़ुशी बाँटते हैं, तभी हमें सच्ची रोशनी मिलती है।"
इस कहानी से बच्चों के लिए सीख (Moral of the Story)
बच्चों, इस कहानी से हमें दो महत्वपूर्ण सीखें मिलती हैं:
सच्ची ख़ुशी बांटने में है (Sharing is Caring): सबसे बड़ा आनंद अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में ख़ुशी और उजाला लाने में है।
सादापन में सुंदरता: महँगी चीज़ों से ज़्यादा महत्व उन पारंपरिक और सादी चीज़ों का होता है जो किसी के जीवन को बेहतर बना सकती हैं। मिट्टी के दीये किसी की आजीविका (Livelihood) का साधन थे।
इस दिवाली, हम भी अंजलि और विक्रम की तरह ख़ुशी बाँटने का संकल्प लें।
और पढ़ें :
अकबर बीरबल : मूर्ख चोर का पर्दाफाश
प्रेरक कहानी: कौओं की गिनती का रहस्य
प्रेरक कथा- राजा की चतुराई और ब्राह्मण की जीत
बीरबल की चतुराई: अंडे की मस्ती भरी कहानी
Tags : best hindi fun stories | best hindi fun stories in hindi | comedy and fun stories for kids | comedy and fun story | Fun Stories | Fun Stories for Kids | fun stories in hindi | fun story | fun story for kids | fun story in hindi | Hindi fun stories | hindi fun stories for kids | Hindi Fun Story | Kids Fun Stories | Kids Fun Stories hindi | kids fun stories in hindi | kids hindi fun stories | Kids Hindi Fun Story | Lotpot Fun Stories | short fun stories | short fun story | short fun story in hindi