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यह कहानी एक निर्जीव वस्तु, एक 'समोसे' के नज़रिए से सुनाई गई है। यह समोसा एक अमीर घर में एक बच्चे के जन्मदिन की आलीशान पार्टी के लिए बनाया जाता है। लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वह समोसा वहां नहीं खाया जाता, बल्कि एक अजीब सफर पर निकल पड़ता है। एक भूलने वाली लड़की की कार से होते हुए, एक दयालु ड्राइवर के हाथों से गुजरकर, वह अंततः एक गरीब माँ के पल्लू में पहुँचता है। उसका सफर वहीं खत्म होता है जहाँ उसकी सबसे ज्यादा कद्र थी—एक गरीब बच्चे के जन्मदिन के एकमात्र तोहफे के रूप में। यह कहानी हमें बताती है कि हर चीज़ की एक नियति होती है और कभी-कभी जो हमारे लिए मामूली है, वह किसी और के लिए अनमोल खजाना हो सकता है। यह बच्चों के लिए एक बेहतरीन कहानी है।
चलिए, अब पढ़ते हैं यह दिल छू लेने वाली और ज़िंदगी बदल देने वाली कहानी...
एक समोसे का अनोखा सफर: किस्मत के बंद लिफाफे
नमस्ते दोस्तों! आप मुझे पहचानते ही होंगे। मेरी तिकोनिया शक्ल, मेरा सुनहरा-भूरा रंग और मेरी चटपटी खुशबू मुझे दुनिया भर में मशहूर बनाती है। जी हाँ, मैं हूँ आपका प्यारा 'समोसा'। आज मैं आपको अपनी ज़िंदगी का वह सबसे यादगार दिन सुनाने जा रहा हूँ, जब मुझे समझ आया कि मेरी किस्मत में क्या लिखा था।
मेरी कहानी शुरू होती है एक बड़ी सी कोठी की आलीशान रसोई में। उस दिन घर के छोटे साहब, 'आर्यन' का जन्मदिन था। रसोई में गजब की चहल-पहल थी। आर्यन की मम्मी खुद अपने हाथों से मेरे जैसे सैकड़ों साथियों को तैयार कर रही थीं।
मेरा जन्म बड़ा ही शाही था। सबसे पहले मेरे सबसे अच्छे दोस्त, आलू (Potato), को उबाला गया। जब वह नरम हो गया, तो उसे मैश करके उसमें मटर के हरे दाने, महंगे काजू के टुकड़े, ताज़ा हरा धनिया और ढेर सारे चटपटे मसाले मिलाए गए। आह! क्या खुशबू थी उस मसाले की। फिर मुझे मैदे की एक नरम चादर में लपेटा गया और खौलते हुए तेल की कड़ाही में छोड़ दिया गया। जब मैं सुनहरे रंग का होकर बाहर निकला, तो मुझे खुद पर बड़ा गर्व हुआ। मैं आर्यन की पार्टी की शान बनने वाला था।
पार्टी शुरू हुई। बच्चों का शोर-शराबा और हंसी-ठिठोली गूंज रही थी। मेरे कई साथियों को तो बच्चे प्लेट में आते ही चट कर गए। मैं एक ट्रे के कोने में पड़ा अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था। तभी आर्यन की एक दोस्त, जिसका नाम 'मिष्टी' था, दौड़ती हुई आई।
उसने अपनी प्लेट में मुझे रख तो लिया, लेकिन तभी उसका फ़ोन बजा। "हाँ माँ, मैं बस निकल रही हूँ," उसने कहा और आर्यन की मम्मी से बोली, "आंटी, मुझे बहुत देर हो रही है। मैं यह समोसा ले जा रही हूँ, कार में खा लूँगी।"
मुझे लगा चलो, मेरा सफर शुरू हुआ। लेकिन मिष्टी तो बड़ी भुलक्कड़ निकली। वह अपनी बड़ी सी कार में बैठी और बातों में ऐसी मशगूल हुई कि मुझे पिछली सीट पर ही भूल गई। कार घर पहुँच गई, मिष्टी उतर कर चली गई और मैं वहीं कार के अंधेरे में अकेला रह गया। मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने सोचा, "क्या मेरा अंत यहीं सूखकर कड़क हो जाने का है? क्या मुझे कोई नहीं खाएगा?"
काफी देर बाद ड्राइवर भैया, जिनका नाम रमेश था, कार साफ करने आए। उनकी नज़र मुझ पर पड़ी। "अरे! मिष्टी बिटिया तो अपना समोसा यहीं भूल गई," उन्होंने बुदबुदाया। उन्होंने मुझे उठाया। मैं अभी भी थोड़ा गर्म था।
रमेश भैया मुझे लेकर घर जा रहे थे कि रास्ते में एक लाल बत्ती पर कार रुकी। कार की खिड़की पर 'खट-खट' हुई। बाहर एक बूढ़ी अम्मा खड़ी थीं, उनके कपड़े फटे-पुराने थे और चेहरा भूख से मुरझाया हुआ था। उन्होंने हाथ जोड़कर इशारा किया कि उन्हें कुछ खाने को चाहिए।
रमेश भैया बहुत नेक दिल इंसान थे। उन्होंने सोचा, "यह समोसा घर ले जाकर मैं ही खाऊंगा, उससे बेहतर है इस भूखी माँ को दे दूँ।" उन्होंने शीशा नीचे किया और मुझे उस बूढ़ी अम्मा के हाथों में रख दिया।
अम्मा की आँखों में चमक आ गई। उन्होंने कांपते हाथों से मुझे लिया और अपनी पुरानी साड़ी के पल्लू में बड़ी सावधानी से बांध लिया, जैसे मैं कोई कीमती हीरा हूँ। मुझे उस पुराने पल्लू की गर्माहट में एक अजीब सा सुकून मिला। मुझे लगा कि शायद मेरा असली सफर अब शुरू हुआ है।
अम्मा तेज़ कदमों से चलती हुई एक झुग्गी-बस्ती में पहुँचीं। एक छोटी सी, टूटी-फूटी झोपड़ी के बाहर एक छोटा लड़का उदास बैठा था। अम्मा को देखते ही वह दौड़ा, "माँ! तुम आ गईं? आज मेरा जन्मदिन है, तुम मेरे लिए क्या लाई हो?"
ओह! तो उस गरीब बच्चे का भी आज जन्मदिन था, बिल्कुल उस अमीर घर के आर्यन की तरह। लेकिन यहाँ न तो गुब्बारे थे, न केक और न ही मेहमान।
अम्मा ने मुस्कुराते हुए अपने पल्लू की गांठ खोली और मुझे बाहर निकाला। "देख मेरे राजू, मैं तेरे लिए क्या लाई हूँ! शहर का सबसे बढ़िया समोसा! जन्मदिन मुबारक हो मेरे लाल।"
राजू की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं दुनिया का सबसे बड़ा केक हूँ। उसने मुझे हाथ में लिया, उसकी खुशबू सूंघी और खुशी से नाचने लगा। उसने अपनी माँ को गले लगा लिया।
जब राजू ने मेरा पहला टुकड़ा तोड़ा और खाया, तो उसके चेहरे पर जो संतोष और खुशी थी, वह आर्यन की पार्टी में किसी बच्चे के चेहरे पर नहीं थी। उस पल मुझे समझ आया कि मेरा जन्म उस आलीशान पार्टी में बर्बाद होने के लिए नहीं, बल्कि इस गरीब बच्चे की भूख मिटाने और उसके जन्मदिन को खास बनाने के लिए हुआ था।
सच कहते हैं दोस्तो, कि 'दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम'। मुझे खुशी है कि मेरी किस्मत में राजू का नाम लिखा था।
सीख (Moral of the Story)
इस कहानी से हमें दो बड़ी सीख मिलती हैं। पहली यह कि दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए हमारी छोटी-छोटी चीज़ें भी बहुत बड़ी खुशियाँ होती हैं, इसलिए हमें हमेशा अपनी चीज़ों की कद्र करनी चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। दूसरी सीख यह है कि किस्मत हमें कब, कहाँ और किसके पास ले जाए, कोई नहीं जानता; हर चीज़ का एक सही समय और सही जगह तय होती है।
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