/lotpot/media/media_files/2024/11/09/chatur-singh-aur-jadui-gadha-funny-story-1.jpg)
मज़ेदार कहानी -चतुर सिंह और जादुई गधा :- बहुत समय पहले की बात है, राजा मानसिंह अपनी महारानी से बहुत प्रेम करते थे। महारानी का जन्मदिन आ रहा था, और राजा ने उनके लिए एक कीमती हार बनवाया था। हार इतना सुंदर था कि देखने वाला हर कोई उसकी प्रशंसा करता। महारानी भी इसे पाकर बहुत खुश हुईं और राजा का धन्यवाद किया। लेकिन अगले ही दिन, जब महारानी ने हार पहनने के लिए संदूक खोला, तो हार गायब था।
महारानी घबरा गईं और उन्होंने तुरंत राजा को इस बात की जानकारी दी। राजा ने सोचा, "यह चोरी का मामला है, और इसे हल करने के लिए मुझे अपने सबसे चतुर दरबारी की जरूरत पड़ेगी।"
यहीं से कहानी में चतुर सिंह की एंट्री होती है, जो अपनी अनोखी बुद्धिमानी से इस गुत्थी को सुलझाने का जिम्मा लेता है। चलिए शुरू करते हैं ये कहानी :
मज़ेदार कहानी : चतुर सिंह और जादुई गधा
महारानी का गायब हार और चतुर सिंह की चतुराई
राजा मानसिंह: (महारानी से) "प्रिय रानी, यह हार मैंने तुम्हारे जन्मदिन के लिए बनवाया है। उम्मीद है, तुम्हें पसंद आएगा।"
महारानी: (खुश होकर) "महाराज, यह हार तो बहुत ही सुंदर है! यह मेरी सबसे कीमती धरोहर बनेगा।"
लेकिन अगले दिन, जब महारानी ने हार संदूक में रखा और उसे पहनने के लिए सुबह खोला, तो हार गायब था। महारानी ने घबराते हुए राजा को इसकी जानकारी दी।
महारानी: "महाराज! हमारा हार चोरी हो गया है! संदूक में रखा था, अब गायब है।"
राजा ने तुरंत चतुर सिंह को बुलाया।
राजा मानसिंह: "चतुर सिंह, हमारे महल से हार चोरी हो गया है। तुम्हें इसे ढूंढने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।"
चतुर सिंह: (मुस्कुराते हुए) "महाराज, चिंता मत करें। मैं तुरंत इसका पता लगाऊंगा।"
चतुर सिंह ने सभी महल के कर्मचारियों को दरबार में बुलवाया, और खुद गधे के साथ दरबार में पहुंचे।
राजा मानसिंह: (हैरानी से) "चतुर सिंह, यह गधा क्यों लाए हो? चोरी का हार इससे क्या लेना-देना?"
चतुर सिंह: "महाराज, यह कोई साधारण गधा नहीं है। यह जादुई गधा है, और यह चोर की पहचान कर सकता है।"
चतुर सिंह ने गधे को एक कमरे में ले जाकर बांध दिया और सभी से कहा कि वे एक-एक करके अंदर जाएं, गधे की पूंछ पकड़ें और जोर से कहें, "महाराज, मैंने चोरी नहीं की है।"
सेवक 1: (गधे की पूंछ पकड़ते हुए) "महाराज, मैंने चोरी नहीं की है।"
सेवक 2: "मैं निर्दोष हूं, महाराज।"
सभी ने गधे की पूंछ पकड़ी और अपनी सफाई दी। लेकिन एक सेवक ने गधे की पूंछ नहीं पकड़ी।
इसके बाद, चतुर सिंह ने सभी के हाथ सूंघना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने एक सेवक का हाथ सूंघा, उन्होंने जोर से कहा:
चतुर सिंह: "महाराज, यही चोर है।"
राजा मानसिंह: "तुम इतनी यकीन से कैसे कह सकते हो, चतुर सिंह? क्या गधे ने तुम्हें इसका नाम बताया?"
चतुर सिंह: (मुस्कुराते हुए) "महाराज, यह गधा जादुई नहीं है। मैंने इसकी पूंछ पर इत्र लगाया था। सभी निर्दोष सेवकों ने गधे की पूंछ पकड़ी, इसलिए उनके हाथों में इत्र की खुशबू आ रही है। लेकिन चोर ने डर के मारे गधे की पूंछ नहीं पकड़ी, इसलिए उसके हाथ से खुशबू नहीं आ रही।"
यह सुनकर सभी लोग हैरान रह गए। राजा ने तुरंत चोर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
राजा मानसिंह: "चतुर सिंह, तुमने बहुत ही चतुराई से चोर को पकड़ लिया। महारानी का हार वापस मिल गया है। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की सराहना करता हूं।"
महारानी: (खुश होकर) "चतुर सिंह, तुम्हारी चतुराई ने हमारी सबसे कीमती धरोहर हमें वापस दिलाई। धन्यवाद!"
चतुर सिंह: "महाराज, यह मेरी जिम्मेदारी थी। हमेशा याद रखें, सत्य और बुद्धिमानी से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है।"
कहानी की सीख:
कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और सच्चाई के रास्ते पर ही चलना चाहिए। बुद्धिमानी और चतुराई से हर समस्या का समाधान संभव है।