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जादुई कद्दू और होशियार नानी: यह कहानी एक प्यारी और समझदार बूढ़ी औरत के बारे में है, जिसे हम प्यार से 'नानी' कहेंगे। नानी को अपनी बेटी की बहुत याद आती है, जो दूसरे गाँव में ब्याही है। बेटी से मिलने के लिए नानी को एक घना और खतरनाक जंगल पार करना पड़ता है, जहाँ शेर, चीता और भालू जैसे खूंखार जानवर रहते हैं। जाते समय तो नानी अपनी अक्ल लगाकर जानवरों को चकमा दे देती है, लेकिन असली चुनौती है वापसी की। क्या नानी जंगल के इन भूखे दरिंदों से बचकर सुरक्षित घर लौट पाएगी? उसकी बेटी ने उसकी सुरक्षा के लिए क्या अनोखा और 'चटपटा' प्लान बनाया? यह जानने के लिए आपको यह मजेदार कहानी पढ़नी होगी। यह बच्चों और बड़ों सभी के लिए एक बेहतरीन कहानी (Best Hindi Story Hindi) है।
चलिए, अब यह दिल को छू लेने वाली और रोमांचक कहानी पढ़ते हैं...
जादुई कद्दू और होशियार नानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से, प्यारे से गाँव में एक बूढ़ी अम्मा रहती थीं। गाँव के सभी बच्चे उन्हें 'नानी माँ' कहकर बुलाते थे। नानी माँ बहुत ही हंसमुख और समझदार थीं। उनकी एक ही बेटी थी, जिसकी शादी उन्होंने दूर एक दूसरे गाँव में की थी।
समय बीतता गया और नानी को अपनी लाडो रानी से मिले हुए कई महीने हो गए। एक दिन सुबह उठकर नानी ने सोचा, "बहुत दिन हो गए मेरी बच्ची का मुँह देखे। अब तो रहा नहीं जाता, आज ही उससे मिलने जाऊंगी।"
बस फिर क्या था! नानी ने झटपट तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने संदूक से अपने सबसे अच्छे कपड़े निकाले, बेटी के लिए घर की बनी स्वादिष्ट बेसन की बर्फियाँ और मठरी एक पोटली में बाँधी। लाठी उठाई, चश्मा ठीक किया और चल पड़ीं बेटी के गाँव की ओर।
दोनों गाँवों के बीच में एक बहुत बड़ा और घना जंगल (Forest) पड़ता था। दिन ढलने लगा था और जंगल में सन्नाटा छाने लगा। नानी अभी आधी दूर ही पहुँची थीं कि अचानक सामने झाड़ियों में हलचल हुई।
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"गर्रर्रर्रर...!" एक भयानक दहाड़ गूंजी। सामने एक विशालकाय बब्बर शेर खड़ा था। उसकी आँखें चमक रही थीं।
शेर ने रास्ता रोकते हुए कड़कड़ाती आवाज़ में कहा, "अरे ओ बुढ़िया! कहाँ जा रही है शाम के समय? आज तो मेरा दिन बन गया, तुझे ही खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।"
नानी पहले तो डर गईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी कंपकपाती आवाज़ को संभाला और बड़ी विनम्रता से बोलीं, "अरे वनराज! मुझ बूढ़ी और कमज़ोर औरत को खाकर तुम्हें क्या मिलेगा? देखो तो सही, मुझमें बचा ही क्या है? बस हड्डी और चमड़ी। मेरे दांत भी नहीं हैं, मुझे चबाओगे कैसे?"
शेर ने गौर से देखा, बात तो सही थी। नानी ने तुरंत अपनी चाल चली, "सुनो महाराज, मैं अभी अपनी बेटी के ससुराल जा रही हूँ। वहाँ कुछ दिन रहूँगी, खूब दूध-मलाई और खीर-पूड़ी खाऊँगी। जब खूब मोटी-ताजी और गोल-मटोल हो जाऊँगी, तब वापस आऊँगी। तब तुम मुझे आराम से खा लेना, तुम्हें भी मज़ा आएगा।"
लालची शेर के मुँह में पानी आ गया। उसने सोचा, "बात तो पते की कह रही है यह बुढ़िया। अभी इसे खाऊंगा तो दांतों में फंसेगी, बाद में तो दावत होगी।"
शेर बोला, "ठीक है बुढ़िया, जा! लेकिन याद रखना, मैं वापसी में यहीं मिलूँगा।" नानी ने राहत की सांस ली और जल्दी-जल्दी आगे बढ़ गईं।
थोड़ी दूर ही गई थीं कि एक पेड़ के पीछे से एक फुर्तीला चीता कूदकर सामने आ गया। "वाह! आज तो शिकार खुद चलकर आया है," चीता गुर्राया, "तैयार हो जा बुढ़िया, आज मेरा रात का खाना तू ही बनेगी।"
नानी ने फिर वही पुराना पैंतरा अपनाया। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "बेटा चीते! मुझ दुबली-पतली पर क्यों अपनी मेहनत बर्बाद करते हो? अभी तो मैं बिल्कुल सूखी लकड़ी जैसी हूँ।" और फिर नानी ने उसे भी वही खीर-पूड़ी और मोटी होने वाली कहानी सुना दी। चीता भी मूर्ख बन गया और उन्हें जाने दिया।
आगे बढ़ने पर एक भालू मिला। भालू ने अपने भारी-भरकम शरीर से रास्ता रोका और बोला, "बहुत भूख लगी है बुढ़िया, आज तो तुझे खाकर ही पेट भरूँगा।" नानी ने उसे भी अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसा लिया और वहाँ से भी सुरक्षित निकल गईं।
अगली सुबह होते-होते नानी अपनी बेटी के घर पहुँच गईं। माँ को देखकर बेटी की खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों गले मिले और खूब रोए। जब बेटी ने पूछा कि रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, तो नानी ने शेर, चीते और भालू वाली पूरी आपबीती सुनाई।
बेटी घबरा गई, "माँ! यह तो बहुत बुरा हुआ। वे जानवर तो आपका इंतज़ार कर रहे होंगे। आप वापस कैसे जाओगी?"
नानी ने बेटी को दिलासा दिया, "तू चिंता मत कर मेरी बच्ची। अभी तो मैं यहाँ कुछ दिन रहूँगी।"
नानी अपनी बेटी के घर खूब मज़े से रहने लगीं। रोज़ नई-नई पकवान बनते। कभी हलवा, कभी खीर, तो कभी गरमा-गरम पूड़ियाँ। बेटी अपनी माँ की खूब सेवा करती। देखते ही देखते कुछ हफ्तों में नानी सचमुच खूब सेहतमंद और थोड़ी गोल-मटोल सी हो गईं। उनके चेहरे पर रौनक आ गई।
आखिरकार, विदा लेने का दिन आ ही गया। नानी ने कहा, "बेटा, अब मुझे अपने घर लौटना चाहिए। गाँव वाले भी याद कर रहे होंगे।"
बेटी उदास हो गई, लेकिन उसे माँ की सुरक्षा की चिंता थी। उसने कहा, "माँ, आप ऐसे नहीं जा सकतीं। वे जानवर रास्ते में घात लगाए बैठे होंगे। लेकिन आप फिक्र मत करो, मेरे पास एक उपाय है।"
बेटी बाड़े में गई और वहाँ से एक बहुत बड़ा, गोल और पका हुआ कद्दू तोड़ लाई। उसने कद्दू को अंदर से खोखला किया और एक अनोखी गाड़ी सी बना दी। फिर उसने रसोई से एक बड़ी थैली में ढेर सारी तीखी लाल मिर्च का पाउडर और नमक भरा।
बेटी ने नानी को समझाया, "देखो माँ, जब भी कोई जानवर मिले, घबराना बिल्कुल नहीं। उनसे मीठी-मीठी बातें करना। जब वे तुम्हें खाने के लिए पास आएँ, तो झट से यह नमक-मिर्च उनकी आँखों में झोंक देना और अपनी इस अनोखी कद्दू-गाड़ी में बैठकर भाग निकलना।"
नानी ने अपनी समझदार बेटी को गले लगाया और ढेर सारा आशीर्वाद देकर विदा लीं।
नानी अपनी अनोखी कद्दू वाली सवारी लेकर जंगल में दाखिल हुईं। जैसे ही वह उस जगह पहुँची जहाँ पहले भालू मिला था, भालू वहीं इंतज़ार कर रहा था।
नानी को देखते ही भालू की आँखें फटी की फटी रह गईं। वह खुशी से चिल्लाया, "अरे वाह! बुढ़िया तू तो सचमुच वादा निभाकर आई है। अब तो तू खासी मोटी-ताजी लग रही है। चल, अब देर मत कर, मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है।"
नानी कद्दू की गाड़ी से थोड़ा बाहर निकलीं और मुस्कुराते हुए बोलीं, "हाँ-हाँ भालू भाई, क्यों नहीं? देखो, मैं कितनी सेहतमंद हो गई हूँ। आओ, मुझे शौक से खा लो।"
भालू जैसे ही अपना बड़ा सा मुँह खोलकर नानी को पकड़ने आगे बढ़ा, नानी ने बिजली की फुर्ती दिखाई। उन्होंने झट से पोटली से मुट्ठी भर लाल मिर्च और नमक का पाउडर निकाला और भालू की आँखों में दे मारा।
"हाय मैया! मेरी आँखें! जल गया रे!" भालू दर्द से चीखने लगा और अपनी आँखें मलने लगा। उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
मौका देखते ही नानी ने अपने जादुई कद्दू को थपकी दी और ज़ोर से बोलीं, "चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक! चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक!"
वह कद्दू सचमुच अनोखा था, वह तेज़ी से लुढ़कने लगा और भालू को रोता-बिलखता छोड़कर आगे बढ़ गया।
थोड़ी दूर जाने पर वही चीता मिला। नानी की सेहत देखकर चीते के मुँह में भी पानी आ गया। उसने रास्ता रोका और बोला, "वाह बुढ़िया! तूने तो सच कहा था। अब तो तू बहुत स्वादिष्ट लग रही है। अब मैं तुझे एक पल भी नहीं छोड़ूँगा।"
नानी ने गाड़ी रोकी और बड़े प्यार से बोलीं, "बेटा चीते, तुम्हारा ही तो इंतज़ार था। आओ, मेरी भूख मिटाओ।"
चीता जैसे ही छलांग लगाने के लिए तैयार हुआ, नानी ने फिर वही कमाल किया। मिर्च और नमक का एक बड़ा झोंका चीते की आँखों में फेंक दिया।
चीता बेचारा अपनी आँखें ही मलता रह गया। वह दहाड़ता रहा, इधर-उधर टक्करें मारता रहा, लेकिन उसे कुछ न सूझा। नानी ने फिर से अपने कद्दू को आदेश दिया, "चल मेरे कद्दू टुनूक-टुनूक!" और हवा हो गईं।
अब बारी थी सबसे खतरनाक दुश्मन की - बब्बर शेर की। शेर जंगल के आखिरी छोर पर बैठा बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। जब उसने नानी को कद्दू की गाड़ी में आते देखा, तो वह खुश हो गया।
शेर ने गरजते हुए कहा, "आखिरकार तू आ ही गई! मुझे लगा तू डरकर दूसरे रास्ते से भाग गई होगी। तैयार हो जा मेरे भोजन के लिए।"
नानी ने इस बार थोड़ी ज्यादा सावधानी बरती। उन्होंने शेर से कहा, "वनराज! मैं तो आपके पास ही आ रही थी। लेकिन देखिए, मैं इस कद्दू में फंसी हूँ, ज़रा पास आकर मेरी मदद तो कीजिये बाहर निकलने में।"
शेर अपने घमंड में बिना सोचे-समझे नानी के बिल्कुल करीब आ गया। जैसे ही उसने अपना विशाल सिर कद्दू के पास झुकाया, नानी ने बची हुई सारी की सारी मिर्च और नमक की थैली शेर के चेहरे पर उलट दी।
शेर की तो जैसे जान ही निकल गई। वह दर्द के मारे ज़मीन पर लौटने लगा और भयानक आवाज़ें निकालने लगा। नानी ने बिना एक पल गंवाए अपनी कद्दू-गाड़ी दौड़ाई और जंगल के बाहर निकल आईं।
इस तरह अपनी और अपनी बेटी की होशियारी से नानी ने जंगल के तीनों खूंखार जानवरों को सबक सिखाया और सुरक्षित अपने गाँव पहुँच गईं। गाँव वालों ने जब नानी की यह साहसिक और चटपटी कहानी सुनी, तो सभी ने उनकी और उनकी बेटी की सूझबूझ की खूब तारीफ की।
सीख (Moral of the Story)
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अगर हम घबराने के बजाय सूझबूझ और हिम्मत से काम लें, तो हम किसी भी संकट से बाहर निकल सकते हैं। शारीरिक ताकत से ज्यादा दिमागी ताकत बड़ी होती है।
(यह कहानी भारत की एक अत्यंत लोकप्रिय लोककथा पर आधारित है, जो पीढ़ियों से बच्चों को सुनाई जा रही है और यह वास्तव में हिंदी की बेहतरीन कहानियों (Best Hindi Story Hindi) में से एक है।)
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