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जूते बनाने वाले और छोटी परियों का कमाल : एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में एक जूते बनाने वाला अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसका नाम था रामदास, और वह एक मेहनती इंसान था, लेकिन उसकी हालत बहुत गरीब थी। उसकी दुकान के पीछे एक छोटा सा घर था, जहाँ वह दिन-रात मेहनत करता था। परेशानी यह थी कि उसके पास चमड़े की इतनी मात्रा नहीं थी कि वह जूते बना सके। अगर वह जूते नहीं बनाता, तो न उसे और न ही उसकी पत्नी को खाने को कुछ मिलता।
एक दिन, रामदास के पास सिर्फ इतना चमड़ा बचा था कि वह एक जोड़ी जूते बना सके। उसने चमड़े को काटकर अपनी मेज पर रख दिया और सोचा, "अब तो सुबह काम शुरू करूँगा, बहुत थकान हो गई है।" वह और उसकी पत्नी सीता सोने चले गए। सुबह उठकर जब रामदास ने अपनी मेज देखी, तो उसकी आँखें चमक उठीं। वहाँ एक खूबसूरत जोड़ी जूते तैयार पड़ी थी, मानो किसी जादूगर ने बनाई हो!
रामदास ने खुशी से कहा, "सीता, देखो, ये जूते तो किसी ने रात में बना दिए!" सीता ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये तो चमत्कार है। इन्हें बेचकर और चमड़ा ला लो।" उसी दिन एक ग्राहक आया और जूतों को अच्छी कीमत पर खरीद ले गया। उस पैसे से रामदास ने दो जोड़ी जूतों का चमड़ा खरीदा। फिर से उसने चमड़ा काटकर मेज पर रखा और सो गया। अगली सुबह, दो शानदार जोड़ी जूते तैयार थीं!
सीता ने कहा, "रामदास, ये तो किसी की मदद है। इन्हें दुकान में रख दो।" रामदास ने जूतों को खिड़की में सजाया, और दोपहर से पहले ही दोनों जोड़ियाँ बिक गईं। इस तरह दिन-ब-दिन रामदास की दुकान चल निकली, और वह धीरे-धीरे अमीर बनने लगा। लेकिन उसका मन उत्सुक था—आखिर ये जूते कौन बनाता है?
एक रात, रामदास और सीता ने फैसला किया कि वे सच जानेंगे। उन्होंने चमड़ा मेज पर रखा, लेकिन सोने की बजाय पर्दे के पीछे छिप गए। रात के सन्नाटे में अचानक छोटी-छोटी परियाँ उनके सामने आईं। वे नन्हें-मुन्ने जीव थे, जो नाचते-गाते हुए जूतों को सिल रहे थे। रामदास ने फुसफुसाकर कहा, "सीता, देखो, ये तो जादुई परियाँ हैं!" सीता ने जवाब दिया, "हाँ, इन्होंने हमारी मदद की। हमें इनका शुक्रिया अदा करना चाहिए।"
दोनों ने सोचा कि परियों को कुछ देना चाहिए। अगली रात, उन्होंने चमड़े की जगह छोटे-छोटे कपड़े और जूते बनाए। रात को वे फिर पर्दे के पीछे छिप गए। परियाँ आईं और कपड़े-जूतों को देखकर खुश हो उठीं। एक परी ने कहा, "देखो, ये हमारे लिए हैं!" दूसरी ने हँसते हुए कहा, "चलो, इन्हें पहनकर नाचते हैं।" वे तुरंत कपड़े पहने, जूते पहने, और मेज पर कूद-कूदकर गाने लगे। उनकी खुशी की गूँज पूरे कमरे में फैल गई।
रामदास ने सीता से कहा, "इन्हें देखकर मन खुश हो गया।" सीता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, उनकी मदद का ये सबसे अच्छा इनाम है।" इसके बाद परियाँ गायब हो गईं, और रामदास-सीता ने उन्हें फिर कभी नहीं देखा। लेकिन उनकी जिंदगी में कभी कोई परेशानी नहीं आई। वे अपने बचे हुए दिनों को खुशी-खुशी बिताते रहे।
कुछ समय बाद, गाँव में एक मेले का आयोजन हुआ। रामदास ने अपनी दुकान सजाई और बच्चों को यह कहानी सुनाई। एक बच्चे ने पूछा, "क्या परियाँ फिर आएँगी?" रामदास हँसकर बोला, "शायद नहीं, लेकिन उनकी मेहनत हमारे साथ है।" मेले में बच्चों ने नन्हीं परियों का नाटक खेला, और रामदास ने उन्हें मिठाइयाँ बाँटी। यह कहानी गाँव में मशहूर हो गई, और हर बच्चा इसे सुनकर खुश होता था।
यह बेस्ट हिंदी स्टोरी रामदास नाम के जूते बनाने वाले की है, जो गरीब था लेकिन मेहनत करता था। रात में छोटी परियाँ उसके लिए जूते बनाती थीं, जिससे वह अमीर हुआ। उसने और उसकी पत्नी सीता ने परियों का शुक्रिया अदा किया, और वे सुखी जिंदगी बिताए। यह कहानी मेहनत और कृतज्ञता का प्रतीक है।
सीख
यह मोटिवेशनल स्टोरी बच्चों को सिखाती है कि मेहनत और अच्छे कर्मों का फल जरूर मिलता है। दूसरों की मदद के लिए कृतज्ञ रहना और उनकी भलाई करना जिंदगी को खुशहाल बनाता है।
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