बोलने वाला तोता: सच्ची खुशी की खोज

"बोलने वाला तोता: सच्ची खुशी की खोज" एक ऐसी कहानी है, जो हमें सच्ची खुशी और जीवन की गहरी सीख के बारे में बताती है। यह कहानी एक अकेले आदमी और उसके तोते की है, जो एक अनोखे तरीके से हमें यह समझाती है कि सच्ची खुशी बाहरी चीज़ों में नहीं

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Speaking parrot discovery of true happiness

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"बोलने वाला तोता: सच्ची खुशी की खोज" एक ऐसी कहानी है, जो हमें सच्ची खुशी और जीवन की गहरी सीख के बारे में बताती है। यह कहानी एक अकेले आदमी और उसके तोते की है, जो एक अनोखे तरीके से हमें यह समझाती है कि सच्ची खुशी बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और प्रेम में छुपी होती है। एक छोटे से गाँव में रहने वाला यह आदमी अपने अकेलेपन से परेशान था और उसने सोचा कि एक बोलने वाला तोता उसकी ज़िंदगी में खुशियाँ ला सकता है। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हमें यह एहसास होता है कि सच्ची खुशी खिलौनों, सजावट, या बाहरी चीज़ों से नहीं मिलती। यह कहानी हमें अपने जीवन की प्राथमिकताओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है और सिखाती है कि हमें अपनी आत्मा की भूख को समझना चाहिए। आइए, इस कहानी के ज़रिए एक गहरी सीख की यात्रा पर चलें और जानें कि सच्ची खुशी का असली मतलब क्या है।

एक आदमी अकेला रहता था और अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए उसने एक तोता खरीदने के बारे में सोचा। एक दिन दुकान पर जाकर उसने तोता खरीदा। आदमी ने सोचा कि वह तोता उसके अकेलेपन को दूर कर देगा। हालांकि तोता खरीदने के अगले दिन वह दुकानदार से शिकायत करने वापस उसकी दुकान पर गया और उसने दुकानदार से कहा कि वह तोता तो बात ही नहीं करता।

दुकानदार ने आदमी से पूछा, ‘क्या उसके पिंजरे में शीशा लगा है?’ आदमी ने उत्तर दिया, ‘नहीं लगा है।’

‘ओह! तोतों को शीशे से प्यार होता है। जब वह अपना प्रतिरूप शीशे में देखता है तो वह बात करना शुरू कर देता है।’ दुकानदार ने जवाब दिया। दुकानदार की बात सुनकर आदमी ने उससे एक शीशा खरीद लिया। अगले दिन वह आदमी फिर दुकानदार के पास शिकायत करने पहुंचा कि उसका तोता शीशा लगने के बाद भी नहीं बोला।

पालतू विशेषज्ञ ने कहा, ‘यह तो बड़ी अजीब बात है। तुम एक काम करो उसके पिंजरे में एक झूला लगा दो। पक्षियों को इन छोटे झूलों से लगाव होता है और एक खुश तोता ही बातूनी तोता होता है।’ दुकानदार की बात मानते हुए उस आदमी ने एक झूला खरीद लिया। वह झूले को घर ले गया और उसे पिंजरे में लगा दिया।

पर अगले ही दिन वह फिर उसी कहानी के साथ वापिस दुकान पर पहुंचा। दुकानदार ने आदमी की तरफ देखते हुए कहा, ‘क्या उसके पास चढ़ने के लिए सीढ़ियां है?’ ग्राहक ने दुकानदार की तरफ देखते हुए कहा, ‘तोता मर गया।’ आदमी की बात सुनकर दुकानदार हैरान रह गया और उसने पूछा, ‘क्या तोते ने कभी भी कुछ नहीं बोला?’

आदमी ने जवाब दिया, ‘जी, हां! उसने मरने से पहले ही कमज़ोर बैठी हुई आवाज़ में मुझसे पूछा, ‘क्या उस दुकान पर कोई खाने के बीज नहीं बेचता?’

हममें से कई लोग गलती से सोचते हैं कि हमारी खुशियां खिलौनों और अन्य वस्तुओं तक ही सीमित हैं। जिसके पास भी सबसे ज़्यादा खिलौने है, वही जीतता है और खुश रहता है। पर क्या ऐसा है?

मनुष्य के दिल में एक आध्यात्मिक भूख होती है जिसे शीशे में देखकर, ख्रुद के खिलौंने से खेलकर या फिर काॅरपोरेट की दुनिया की सीढ़िया चढ़कर मिटाया नहीं जा सकता। हमारे दिल को सच्चे आहार की आवश्यकता होती है परिवार और दोस्तों का प्रेम, निजी पूर्णता, भगवान के साथ जुड़ाव ही हमारी आत्मा की भूख को भर सकता है। तो दोस्तों, क्या आप उस ज़िंदगी को चुनेंगे जो जीवन में आपको पूर्णता देगी या सिर्फ दिखावें की संतुष्टि देगी?

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