काले कौवे की सीख - एक बार की बात है, एक गांव के चौराहे पर एक दुकान के बाहर एक बड़ा सा चोंच वाला काला कौवा बैठा था। वह हमेशा की तरह अपनी चालाकी दिखाने की ताक में था। जैसे ही दुकानदार की नजर हटती, कौवा उड़कर दुकान के पास आया और झपट्टा मारकर एक बड़ा सा पाव उठा ले गया। दुकानदार चिल्लाया, "अरे रे! चोर कौवा, मेरा पाव लेकर भाग गया!"
कौवा उड़ा और थोड़ी ही दूर जाकर एक पेड़ की शाख पर बैठ गया। वह बड़े गर्व से पाव को अपनी चोंच में दबाए बैठा था। उसे लगता था कि वह सबसे चालाक और होशियार है। पास के जंगल का एक लोमड़ी, जो बहुत भूखा था, कौवे को देख रहा था। लोमड़ी ने सोचा, "कौवा बड़ा लालची और घमंडी जानवर है। अगर इसे थोड़ी सी चतुराई से फंसाऊं, तो यह पाव मुझ तक आसानी से आ सकता है।"
लोमड़ी की चालाकी
लोमड़ी ने अपनी मीठी आवाज में कहा, "अरे वाह! कौवे भाई, तुम्हारी चोंच कितनी सुंदर है और तुम्हारे पंख कितने चमकदार। तुम्हारा रंग तो ऐसा है जैसे आसमान का गहरा बादल। लेकिन एक बात बताओ, क्या तुम्हारी आवाज भी इतनी ही मधुर है?"
कौवा लोमड़ी की बातों से खुश हो गया। उसे लगा कि लोमड़ी उसकी सच्ची प्रशंसा कर रही है। उसने अपनी चोंच खोली ताकि वह अपनी आवाज में "कांव-कांव" करके गाना गा सके। लेकिन जैसे ही उसने चोंच खोली, पाव नीचे गिर गया और लोमड़ी ने उसे झट से उठा लिया।
कौवे की सीख
कौवा समझ गया कि उसकी चतुराई से ज्यादा लोमड़ी चालाक निकली। उसने शर्मिंदा होकर कहा, "लोमड़ी बहन, तुमने मुझे मेरी गलती सिखा दी। अब मैं कभी भी दूसरों की चापलूसी में आकर अपनी चीज नहीं गवाऊंगा।"
लोमड़ी ने मुस्कुराते हुए कहा, "यही तो जीवन की सबसे बड़ी सीख है, कौवे भाई। अपनी चीज की कदर करो और बेवजह अपनी चालाकी पर घमंड मत करो।"
कहानी की सीख
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपने काम और अपनी चीजों की कदर करनी चाहिए। दूसरों की झूठी तारीफ या चापलूसी में फंसकर कभी अपनी मेहनत की चीज गंवानी नहीं चाहिए।
"चालाकी से जीता जा सकता है, लेकिन सच्चाई और मेहनत से हमेशा सम्मान पाया जाता है।"
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