Fun Stories: कंजूसी का फल

किसी गांव में धनीराम नाम का एक किसान रहता था। बह 50 बीघा जमीन का मालिक था। उसका एक खेत मुख्य सड़क के किनारे पर था। उस खेत की फसल की रखवाली वह स्वयं करता था।

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कंजूसी का फल

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Fun Stories कंजूसी का फल:- किसी गांव में धनीराम नाम का एक किसान रहता था। बह 50 बीघा जमीन का मालिक था। उसका एक खेत मुख्य सड़क के किनारे पर था। उस खेत की फसल की रखवाली वह स्वयं करता था। मेहनती और अवसर वादी होने के कारण धनीराम अन्य किसानों की अपेक्षा सुखी और सपन्‍न था, लेकिन खर्च के मामले में पूरा कंजूस-मक्खी चूस था। उसके इस स्वभाव से परिवार वाले तो परेशान थे ही गांव वाले भी दुखी थे। (Fun Stories | Stories)

यद्यपि धनीराम को शराब, गांजा, भांग अफीम आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने की लत न थी। उसे कोई शौक था तो तम्बाकू पीने का, वह भी हुक्के द्वारा। इस सस्ते व्यसन में भी वह कंजूसी करने से नहीं चूकता था। जहां तक संभव होता, वह दूसरों से ही मांग कर अपना शौक पूरा करता था।

मुख्य रास्ते पर धनीराम का खेत था ही। इसलिए रास्ते पर प्रतिदिन लोगों का आना जाना बना रहता था। रास्ते के पास छियूल का एक वृक्ष था। उसके नीचे धनीराम की बैठक थी। उसी जगह वह अपना हुक्का और सुलगता हुआ कंडा रखता था। किन्तु तम्बाकू नहीं रखता था। रास्ते से गुजरने वाले पैदल या बैलगाड़ी वाले राहगीरों को मीठी बोली से अपने पास बुलाता- ''अरे भाई चलते-चलते आप थक गये होंगे। कुछ देर सुस्ता लो। सुस्ताने से थकान थोड़ी बहुत उतर जाती है। तम्बाकू पी लो, फिर चले जाना।” (Fun Stories | Stories)

उसके इस प्रेम भरे आग्रह पर शिष्टाचार वश यात्री को ठहरना पड़ता। फिर वह अपनी बनियान की जेब में झूठ-मूठ हाथ डालता और बड़े ही भोलेपन से मुंह बिगाड़ कर कहता “अरे भैया! मैं भी बड़ा भुलक्कड़ हूं। खास चीज़ तम्बाकू तो मैं घर पर ही भूल आया। यदि आपके पास तम्बाकू हो तो दीजिए।" यदि पथिक चिलम या हुक्का पीने का शौकीन होता था, तो वह तुरंत अपना तम्बाकू धनीराम के हवाले कर देता था। इस प्रकार बड़ी चतुराई और सफाई से धनीराम अपना काम सीधा कर लेता था।

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एक दिन की बात है। एक राहगीर सड़क से जा रहा था। आदतन धनीराम ने उसे भी तम्बाकू पीने के लिए आंमत्रित कर लिया। उससे भी वही चाल चली।

“अरे भैया तम्बाकू तो मैं घर पर ही भूल आया। आपके पास हो तो दीजिए।” (Fun Stories | Stories)

बटोही अन्य मुसाफिरों की भांति साधारण न होकर शातिर ठग था। वह भी यही चाह रहा था कि किसी को मैं...

बटोही अन्य मुसाफिरों की भांति साधारण न होकर शातिर ठग था। वह भी यही चाह रहा था कि किसी को मैं अपनी तम्बाकू पिलाऊं। धनीराम के तम्बाकू मांगने पर ठग के मन में लड्डू फूटने लगे। बोला- “अजी! किसान के सिर पर सैकड़ों झंझटें हैं। दिमाग कहां तक सही रखे। कुछ न कुछ भूल हो ही जाती है। लीजिए मेरा तम्बाकू पीजिए। इसे भी अपनी ही चीज समझिए।" (Fun Stories | Stories)

two man under a tree

यह कहते हुए ठग ने अपने बटुए में से तम्बाकू निकाल कर धनीराम को सौंप दी। धनीराम खुश! उसके हाथ हुक्का तैयार करने में लग रहे थे। ठग का दिमाग ठगी की योजना बनाने में तल्‍लीन था। ठग ने देखा धनीराम सोने-चांदी के आभूषणों से लदा हुआ है। फिर उसने चारों ओर दृष्टि घुमाई। कहीं कोई रखवाला या चरवाहा नहीं था, दुपहरी भन्ना रही थी। राह पर भी कोई आ-जा नहीं रहा था सिर्फ ज्वार के ऊँचे-ऊँचे पेड़ खड़े हुए थे ये पेड़ उसे मदद ही करेंगे।

धनीराम ने हुक्का तैयार कर लिया। अब दोनों बारी-बारी से हुक्का पीने लगे। ठग ने पूछा “क्यों जी स्वादिष्ट है न मेरा तम्बाकू? आज तक आपने ऐसी कीमती तम्बाकू नहीं पी होगी।”

“सच कह रहे हो भैया! इतनी सुगन्धित और स्वादिष्ट तम्बाकू तो मैंने देखी तक नहीं। जो आपकी कृपा से आज पी रहा हूं।" (Fun Stories | Stories)

धनीराम ने नाक के रास्ते धुंआ निकालते हुए कहा। धनीराम को तम्बाकू पीने में मजा आ रहा था। इसलिए धनीराम गहरे कश लेता। धुंए के घूँट निगल जाता था और फिर बड़ी अदा से नाक-मुंह से धुंआ छोड़ता हुआ हुक्के द्वारा तम्बाकू पीने में मस्त था।

जबकी ठग हुक्का पीने का मात्र दिखावा कर रहा था। उसे मालूम था कि मेरी तम्बाकू तेज़ नशीली है। वह थोड़ा सा कश लेता और तुरंत धुंए को फूंक देता था।

ठग तो तेज नशीली तम्बाकू धनीराम को पिलाकर उसे बेहोश करना चाहता था। ठग की योजना सफलता की ओर बढ़ने लगी। धनीराम की खोपड़ी पर नशीली तम्बाकू का असर होने लगा। आंखें भारी-भारी और सिर चकराने लगा। देखते ही देखते धनीराम बेहोश हो गया। (Fun Stories | Stories)

man sleeping under a tree

धनीराम के बेहोश होते ही ठग की प्रसन्‍नता का ठिकाना न रहा। उसने धनीराम के अंगों पर से आभूषण उतारना शुरू कर दिया, ठग ने फटाफट धनीराम के गले से सोने का तावीज़ खोल लिया, कानों में लटके हुए सोने के कुंडल और हाथों के चांदी के कड़े निकाल कर ठग वहां से धनीराम को बेहोश छोड़ कर नौ दो ग्यारह हो गया। 

धनीराम को जब होश आया तो ठग को अपने पास न देखकर उसे आश्चर्य हुआ। अचानक उसकी नजर हाथों पर पड़ी। हाथों में चांदी के कड़े नहीं थे। उसके होश उड़ गए। फिर क्रमशः गले और कानों पर हाथ घुमाया तो वह पागलों सा हो गया- तावीज़ और कुंडल गायब थे। उसने अपना माथा पीट लिया, धनीराम रोने लगा पछताने लगा। उसे हद से ज्यादा कंजूसी करने का फल मिल चुका था।

उस दिन के बाद धनीराम ने व्यर्थ की कंजूसी करना सदा के लिये छोड़ दिया। इसके साथ उसने तम्बाकू पीने से भी मुंह मोड़ लिया। (Fun Stories | Stories)

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