Fun Story: इमानदार बना बेईमान

बहुत समय पहले सूरतगढ़ नाम का एक छोटा सा राज्य हुआ करता था। वहां का राजा सनक सिंह अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत सनकी स्वभाव का था। उसकी सनक के कारण प्रजा कई बार परेशानी में पड़ जाती थी। वह तो राज्य का सौभाग्य था।

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इमानदार बना बेईमान

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Fun Story इमानदार बना बेईमान:- बहुत समय पहले सूरतगढ़ नाम का एक छोटा सा राज्य हुआ करता था। वहां का राजा सनक सिंह अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत सनकी स्वभाव का था। उसकी सनक के कारण प्रजा कई बार परेशानी में पड़ जाती थी। वह तो राज्य का सौभाग्य था कि उसे चतुरसेन नाम का चतुर मंत्री मिला था। चतुरसेन अपनी चतुराई से सारी परेशानियों को समाप्त कर देता था। (Fun Stories | Stories)

एक शाम राजा के सिर पर फिर से सनक सवार हुई और वह चतुरसेन से बोला, “मंत्रीजी, हम जानना चाहते हैं कि हमारे राज्य में ईमानदार व्यक्ति रहते हैं या नहीं, चल कर देखते हैं।''

चतुरसेन जानता था कि मना करने से कोई लाभ नहीं है इसलिए राजा के साथ चल पड़ा। दोनों घोड़ों पर सवार हो कर पूरे राज्य में घूमते रहे और शाम को नदी के बाहर एकांत में बनी एक झोपड़ी के पास पहुँच गए। राजा को अचानक न जाने क्या सूझा और उसने अपने पास रखी सौ स्वर्णमुद्राओं की थैली उस झोपड़ी के अंदर फेंक दी तथा मंत्री के साथ वापस महल की ओर लौट पड़े।

रास्ते में वह मंत्री को अपनी योजना बताने लगा “उस झोपड़ी में जो कोई भी रहता है, अब हमें पता चल जाएगा कि वह ईमानदार है या नहीं। यदि उसने अपनी ईमानदारी से हमारी स्वर्णमुद्राएं वापस दे दीं तो हम उसे ढेर सा ईनाम देंगे वरना उसे बंदी बना लेंगे। (Fun Stories | Stories)

मंत्री फिर भी कुंछ न बोला और वे दोनों वापस महल चले गए।

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वह झोपड़ी रघु नाम के एक चतुर किंतु निर्धन व्यक्ति की थी। स्वर्णमुद्राओं के गिरने पर हुए खनखनाहट के स्वर से वह चौंक गया और...

वह झोपड़ी रघु नाम के एक चतुर किंतु निर्धन व्यक्ति की थी। स्वर्णमुद्राओं के गिरने पर हुए खनखनाहट के स्वर से वह चौंक गया और तुरंत झोपड़ी के बाहर आ कर राजा और मंत्री को साथ जाते देख वह सोच में पड़ गया। राजा के सनकी स्वभाव से रघु भी अच्छी तरह परिचित था। इसलिए समझ गया था कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है।

अगली सुबह वह स्वर्णमुद्राओं की थैली लेकर राजमहल में पहुंच गया। राजा के सामने जाते ही उस ने प्रणाम किया और बोला, 'महाराज, मैं एक गरीब आदमी हूं, मेहनत कर के अपना पेट भरता हूं। कल न जाने कहां से मेरी झोपड़ी में यह स्वर्णमुद्राओं की थैली आ गई मैं जानता हूं कि इस थैली पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। इसलिए इसे आप को सौंपने आया हूं।” (Fun Stories | Stories)

राजा उसकी बात सुनकर प्रसन्‍न हो गया। उसने तुरंत ही मंत्री को आदेश दिया 'मंत्रीजी, यह व्यक्ति बहुत ईमानदार है, इसे पुरस्कार देकर सम्मानित करना चाहिए। इसे शाही कोष से दो सौ स्वर्णमुद्राएँ पुरस्कार स्वरुप दे दी जाएं।"

“लेकिन महाराज, ईमानदार होना तो प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, इसलिए इतना पुरस्कार देने की क्या आवश्यकता है?” मंत्री ने समझाना चाहा।

“नहीं, हमें उसकी ईमानदारी का सम्मान करना ही चाहिए। उसने सौ स्वर्णमुद्राओ के प्रति ईमानदारी दिखाई है। इसलिए उसे इससे दो गुना पुरस्कार देना ही उचित है।'' राजा नहीं माना तो हार कर मंत्री को उसकी बात माननी पड़ी। दो सौ स्वर्णमुद्राएं लेकर रघु खुशी-खुशी अपने घर लौट गया।

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अभी इस घाटना को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि अचानक महल में एक और आदमी आया और राजा को पचास स्वर्णमुद्राएं सौंपते हुए बोला, ''महाराज, मैं एक गरीब आदमी हूं। कल अचानक मुझे सड़क पर पचास स्वर्णमुद्राएं पड़ी हुई मिली हैं। मै जानता हूं कि इन पर मेरा कोई अधिकार नहीं है इसलिए मैं इन्हें आप को सौंपने आया हूँ।" (Fun Stories | Stories)

राजा फिर से प्रसन्न हो गया। उसे अचानक रघु की याद आ गई। बोला, "मंत्रीजी, इस व्यक्ति को भी सौ स्वर्णमुद्राएँ पुरस्कार में दे दी जाएँ।”

“महाराज, यदि आप इसी तरह दो गुना पुरस्कार बांटते रहे तो राजकोष को भारी घाटा हो सकता है। ईमानदारी का पुरस्कार देना ठीक है, मगर उतना ही जितने से इस व्यक्ति के साथ साथ राजकोष को भी लाभ पहुंचे। मेरे विचार से इसे पच्चीस स्वर्णमुद्रांए दे दी जानी चाहिए।” मंत्री ने फिर समझाया, मगर राजा नहीं माना।

“नहीं, हमने पहले वाले व्यक्त को दोगुना पुरस्कार दिया था। अब यदि हम अपना निर्णय बदलेंगे तो प्रजा हमारे विषय में कया सोचेगी?"

राजा ने कहा तो मंत्री को उस व्यक्ति को सौ स्वर्णमुद्राएं देनी ही पड़ गई। (Fun Stories | Stories)

उसके बाद समय समय पर ऐसी ही घटनाएं होने लगीं। कोई भी व्यक्ति स्वर्णमुद्राएं लेकर आता और दोगुनी स्वर्णमुद्राएं पुरस्कार में लेकर चलता बनता। मंत्री परेशान हो गया था और सोचने लगा था कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है। राज्य में इतने सारे ईमानदार कहां से पैदा हो रहे हैं? उसने मन ही मन इस बात का पता लगाने की ठान ली।

अगली बार जैसे ही एक ईमानदार व्यक्ति पुरस्कार लेकर अपने घर की ओर चला, मंत्री ने अपने गुप्तचर उसके पीछे भेज दिए। शाम होते ही गुप्तचरों ने सारी बातें आकर उसे बता दीं और सारा मामला समझ में आ गया। उस के बाद फिर से जब एक ईमानदार आदमी को राजा ने पुरस्कार दिया तो मंत्री ने राजा को वेष बदल कर अपने साथ चलने को कहा।

दोनों वेष बदल कर उस स्थान में पहुंच गए। जहां रघु की झोपड़ी थी। लेकिन झोपड़ी के स्थान पर अब यहां एक अच्छा सा मकान बना हुआ था। (Fun Stories | Stories)

कुछ ही समय बाद पुरस्कार लेकर लौटने वाला व्यक्ति भी वहां आ गया और मकान के अंदर प्रवेश कर गया। मंत्री और राजा खिड़की से छिप कर देखने लगे। उस व्यक्ति ने सारी स्वर्णमुद्राएं रघु को सौंप दी थीं, जिनमें से कुछ स्वर्णमुद्राएं रघु नें वापस उस व्यक्ति को दे दी थीं।

“वाह, ऐसा सनकी राजा सबको मिलना चाहिए। बैठे बिठाए अच्छी खासी कमाई हो रही है।अब जाओ और दो दिन बाद दूसरे आदमी को भेज देना, "रघु हंसते हुए उस व्यक्ति से बोला था।

“देखा महाराज" मंत्री ने राजा को समझाया, आपने रघु को ईमानदारी का जो अनुचित पुरस्कार दिया था, उसने उसे कितना बेईमान बना दिया है। वह दूसरों की सहायता से कितनी आसानी से आप को लूट रहा है।” राजा की समझ में सारी बातें आ गईं और वह क्रोधित होकर अंदर रघु के सामने पहुंच गया। राजा को देखकर रघु बुरी तरह घाबरा गया और क्षमायाचना करने लगा।

राजा तो उसे बंदी बनाना चाहता था मगर मंत्री ने समझाया "एक तरह से आपने ही रघु को बेईमान बनाया है इसलिए उसे क्षमा करना ही ठीक है।" राजा मान गया और रघु को सारी स्वर्णमुद्राएं वापस राजकोष में जमा करने का आदेश देकर मंत्री के साथ महल को लौट गया। उस दिन के बाद राजमहल में ईमानदार लोगों का आना बंद हो गया। (Fun Stories | Stories)

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