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चोरी का भेद
Fun Story चोरी का भेद:- देव गुप्त जयगढ़ के राजा का प्रधान सेनापति था। वह बहुत ही निर्दयी और मक्कार था। वह देश के राजस्व का कार्य भी देखता था। राजस्व के कार्य में आमदनी का अच्छा मौका था। देव गुप्त की चाँदी रहती थी। उसने अपने कारिन्दों को किसानों से अधिक से अधिक माल गुजारी वसूलने का आदेश दे रखा था। प्राप्त माल गुजारी का निश्चित भाग वह राज कोष में जमा कर देता शेष भाग को स्वंय हड़प कर जाता। (Fun Stories | Stories)
जयगढ़ में राम नाथ नाम का एक गरीब किसान रहता था वह बड़ी मुश्किल से परिवार भर के लिए भोजन की व्यवस्था कर पाता था। वह जितनी फसल पैदा करता उसका आधा देवगुप्त के कारिन्दों को माल गुजारी के रूप में देता। गरीब राम नाथ के परिवार को आधे पेट ही रह जाना पड़ता था। (Fun Stories | Stories)
एक बार की बात है। गाँव में सूखा पड़ा गेहूँ की बालियाँ तक न फूटी। राम नाथ थोड़ा सा गेहूँ पैदा...
एक बार की बात है। गाँव में सूखा पड़ा गेहूँ की बालियाँ तक न फूटी। राम नाथ थोड़ा सा गेहूँ पैदा कर पाया फसल खलिहान में ही थी कि सदैव की भांति देव गुप्त के कारिन्दे माल गुजारी बसूलने पहुँच गए। इस बार राम नाथ ने माल गुजारी न देने का निश्चय कर रखा था। देव गुप्त के कारिन्दे जब माल गुजारी के रूप में गेहूँ उठा कर ले जाने लगे तो राम नाथ ने उनका विरोध किया। निरंकुश शासक के राज्य में जो होता है वही हुआ। देव गुप्त के कारिन्दों ने राम नाथ की जम कर पिटाई की और सारा गेहूँ उठा ले गए। (Fun Stories | Stories)
राम नाथ से अब बर्दाशत न हुआ। उसने देव गुप्त की शिकायत राजा से करनी चाही।
दरबार में जाने के लिए देव गुप्त के सैनिकों से ही आज्ञा लेनी पड़ती। भला वे क्यों राम नाथ को राजा से मिलने की आज्ञा देते। जिद्द करने पर यहाँ भी राम नाथ को मार खानी पड़ी। देव गुप्त को कारागार में डाल दिया गया।
राम नाथ का लड़का हरि शंकर कम उम्र का होते हुए भी काफी चालाक था। उसने कई बार राजा से मिल कर देव गुप्त की शिकायत करनी चाही पर सैनिकों के कारण असफल रहा। आखिर उसने काफी सोच विचार के बाद दरबार में प्रवेश करने की एक तरकीब निकाल ही ली। (Fun Stories | Stories)
एक रात वह चुपके से राज उद्यान में घुस गया और शाही मंदिर से चाँदी का कलश चुरा लाया। जब सुबह महारानी पूजा करने के लिए मंदिर गईं तो कलश नदारद देख कर दंग रह गयी। बात राजा के कानों तक पहुँची। सारे राज्य में हाहाकार मच गया। चोर को खोजने के लिए सैकड़ों गुप्तचर और सैनिक शस्त्र लेकर निकल पड़े।
इधर हरि शंकर ने कलश को अपने घर के आंगन में गाड़ दिया। उसने यह बात अपने मित्र नील चन्द्र को छोड़कर किसी को न बतायी। उसने नील चन्द्र को सारी योजना भी समझा दी। (Fun Stories | Stories)
अगले दिन नील चन्द्र ने यह बात एक गुप्तचर को बता दी। बस फिर क्या था हरि शंकर के घर को राजा के सैनिकों ने घेर लिया। आंगन को खोद कर कलश बरामद कर लिया और हरि शंकर को गिरफ्तार कर लिया गया।
चोर के रूप में हरि शंकर को देखकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। इतनी कम उम्र का चोर राजा ने अभी तक नहीं देखा था। राजा के पूछने पर हरि शंकर ने बताया, ‘महराज मैंने ही मंदिर का कलश चुराया है। लेकिन मैंने यह चोरी धन के लिए नहीं की न ही मेरी आपसे कोई शत्रुता है।’
‘फिर तुमने यह चोरी क्यों की?’ राजा ने पूछा।
‘राजन्, मेरे चोरी करने का उदेश्य मात्र आप तक पहुँचना था। अपना दुख सुनाने के लिए मैं आप तक पहँचना चाहता था। किन्तु देव गुप्त के सैनिक मुझे रोक लेते थे।’ हरि शंकर ने कहा।
राजा के पूछने पर हरि शंकर ने सेनापति द्वारा अधिक माल गुजारी वसूलने तथा आपत्ति करने पर सैनिकों द्वारा मारने की बात बता दी। उसने यह भी बता दिया कि देव गुप्त और उसके निर्दयी सैनिकों ने किस प्रकार उसके पिता को अकारण ही जेल में बंद कर रखा है। (Fun Stories | Stories)
राजा ने तुरंत सेनापति देव गुप्त से इस संबंध में पूछताछ की। पहले तो देव गुप्त ने इंकार कर दिया किन्तु बाद में भय वश सब कुछ उगल दिया।
सच्चाई जानकर राजा को बहुत दुख हुआ। उन्होंने तुरंत देव गुप्त को देश निकाले का दण्ड दिया तथा हरि शंकर और उसके पिता को मुक्त कर दिया। तथा बहुत सारा धन और जमीन उपहार स्वरूप भेंट कर दी। अब सभी किसानो को अधिक माल गुजारी नहीं देनी पड़ती थी। हरि शंकर की चतुराई से राज्य भी तरक्की पथ की ओर अग्रसर हो गया। (Fun Stories | Stories)
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