मजेदार हिंदी कहानी: ठगों से ठगी यह कहानी शंकर की है, जो अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए ठगों के पास जाता है। अंत में, शंकर अपने पिता के हत्यारों को ठगों की तरह ही नदी में डूबाकर उन्हें समाप्त कर देता है और काशीपुर लौटकर अपनी माँ को न्याय दिलाता है। By Lotpot 13 Aug 2024 in Stories Fun Stories New Update ठगों से ठगी Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 मजेदार हिंदी कहानी: ठगों से ठगी:- काशीपुर में शंकर अपनी विधवा मां के साथ रहता था। उसका पिता उस इलाके का मशहूर ठग था। उसके करनामों से काशीपुर के प्रायः सभी लोग अवगत थे। एक बार ठगी के माल के बंटवारे को लेकर उसके चार साथियों लुटन, प्यारे, गजानन, एवं आनंदी ने उसकी हत्या कर दी एवं फरार हो गये। वे अपना माल बेचकर सुदूर अमरावती में निवास करने लगे थे। शंकर की विधवा माँ अपने पति के हत्यारों से बदला नहीं ले सकती थी। इसीलिए अपने किशोर पुत्र को ठगी एवं बाजीगरी के अनोखे करनामों से तालिम करने लगी। शंकर अब अट्ठारह-उन्नीस साले का पूर्ण प्रशिक्षित गबरू जवान बन गया था। अमरावती में ठगों से मुलाकात वह अपनी मां से बोला- मां मुझे आज्ञा दो मैं पिताजी के हत्यारों से बदला लेने के लिए शीघ्र प्रस्थान करूँगा। मां ने उसे चंदन का तिलक लगाया एवं नजर उतारी। राह में जलपान हेतु मीठे पकवानों की एक गठरी भी उसे थमा दी। मां का चरण स्पर्श कर शंकर अमरावती नगर के लिए प्रस्थान कर गया। उन दिनों घोड़े हाथी के अलावा कोई दूसरी सवारी तो थी नहीं। शंकर एक घोड़े पर सवार होकर जंगल, पहाड़ों से गुजरता हुआ कई दिनों की लम्बी यात्रा तय कर वहां पहुँचा। अमरावती पहुँच कर उसने एक सराय में एक कमरा लिया एवं अपने को एक व्यापारी बतलाया। लोगों से पूछते पाछते उसे अपने पिता के हत्यारों लुटन, प्यारे, गंजानन एवं आनन्दी का पता लग गया। वे चारों अमरावती,नगर में एक साथ निवास कर रहे थे। वे दिन में व्यापारी बन कर व्यापार करते एवं रात में ठगों का वेश धर कर ठगी बटमारी किया करते थे। उनके पास पहुँच कर शंकर ने उनके पैर छूते हुए कहा- "मामा जी मेरा प्रणाम स्वीकार करें"। ठगों को अपने इस अज्ञात भाँजे को देखकर आश्चर्य हुआ। उन्होंने सम्मिलित स्वर में कहा -हमने तो तुम्हें पहचाना नहीं। शंकर बोला- "आप लोग तो देश छोड़कर इधर आ बसे। मैं आपकी छोटी बहन का लड़का हूँ। मेरा जन्म आप सबों के इधर आने के बाद हुआ सो मुझे पहचानोगे कैसे?" यह सुनते ही लुटन, प्यारे वगैरह ठगों ने उसे गले लगा लिया। जादुई बंदर और डण्डा वह अपने साथ एक थैले में दो बंदरों को लेता गया था। एक बन्दर उसने बाहर रस्सी से बाँधकर हाथ में पकड़ लिया था, जबकि दूसरे को थैले में ही छुपाये रखा। ठगों ने पूछा- "भांजे यह कैसा बन्दर है? इसे क्यों साथ रखे हुए हो?" शंकर बोला- "बड़ा अनमोल बंदर है मामाजी, जहाँ कोई सन्देश देना हो तुरंत दे देगा एवं वापस लौट आयेगा"। ठगों ने कहा "भांजे! यह बंदर हमें बेच दो। पहले तो शंकर ना नुकुर करता रहा, फिर मुँहमाँगी कीमत में बंदर ठगों को दे दिया। प्यारे ने उस बंदर से कहा- "जा-जाकर हमारे घर में कह देना मेहमान आये हैं, उनके लिए बढ़िया खाना बनाकर रखना, हम लोग शाम को घर लौटेंगे"। यह कहकर उसने बंदर को छोड़ दिया। वह बंदर भला उनके घर क्यों जाता, वह तो सीधे मुक्त होकर जंगल की ओर भाग गया। कुछ देर बाद शंकर ने ठगों से निगाह बचाकर दूसरा बंदर थैले से निकाल दिया एवं बोला- "लो मामा जी! तुम्हारा दूत संदेश देकर लौट आया है, इसे पकड़ो। शाम को जब चारों शंकर के साथ घर लौटे, तब घर पर खाना नदारद था। ठगों ने अपनी पत्नियों को खूब फटकारा और कहा कि इस बंदर के द्वारा हमने संदेश नहीं भेजा था? पत्नियां बेचारी डर कर बोलीं- "हो सकता है हम सब काम में व्यस्त थीं, इसकी बात ना समझ पाई हों, हमें इस बार माफ कर दो। कुछ दिनों के बाद वे चारों शंकर के साथ नदी में मछली मारने के लिए गये। शंकर ने थैले से एक छोटा-सा डण्डा निकाल कर कहा- "मामा यह जादुई डण्डा है, यदि किसी कारण मैं बेहोश हो जाऊँ तो मुझे इसे सुंघा देना, होश लौट आयेगा"। कुछ देर बाद वह बेहोशी का नाटक कर मूर्छित हो गया। ठग ने उसे काफी हिलाया डुलाया एवं पानी के छीटें मुंह के उपर मारे पर वह तो नाटक किये हुए था सो उठता कैसे? तब ठगों ने उसके बताये हुए डण्डे को आजमाया। डण्डा नाक से लगते ही वह उठकर बैठ गया। ठगों ने सोचा यह तो सबसे कमाल की चीज है। उन्होंने फिर मुँहमांगी कीमत देकर वह डण्डा खरीद लिया। इस बार फिर ठगों ने नदी किनारे से दूसरे बंदर को घर पर खाना बनाने का संदेश देकर भेजा। यह दूसरा बंदर भी उनके हाथ से छूटते ही जंगल की ओर भाग गया। शाम में जब पाँचो घर पहुँचे तब भोजन फिर नदारद था। इस बार भूखे ठगों ने अपनी पत्नियों की अच्छी खासी ठुकाई की एवं उन्हें मार-मार कर बेहोश कर दिया। जब हिलाने डुलाने से वे नहीं जागीं तो उन्होंने शंकर से खरीदे गये जादुई डण्डे को उनकी नाकों से सुँघाया, पर वे तो मार से परलोक सिधार चुकी थीं, उठतीं कैसे? ठगों की सजा और शंकर का प्रतिशोध इधर शंकर मौका देखकर वहाँ से खिसक गया। अब ठगों को पता चला कि शंकर ने उन्हें खूब उल्लू बनाया। वे उसे ढूँढने लगे, कई दिनों के प्रयास के बाद एक दिन शंकर नदी किनारे उन्हें मिल गया। उन सबों ने उसे पकड़ लिया एवं एक बोरे में बंद कर नदी में फेंक आये। संयोगवश बोरा नदी किनारे जा लगा एवं एक नाविक ने उसे खोलकर शंकर को बचा लिया। कुछ दिनों के बाद बाजार में जब शंकर की निगाहें उन चारों ठगों से मिली तो वे भूत-भूत कहकर भागने लगे। शंकर बोला- "मामा जी मैं जिन्दा हूँ। वह तो जादुई बोरा था, उसमें किसी को बन्द कर नदी में डाल दो तब भी वह व्यक्ति डूबेगा नहीं। उन ठगों को उस बोरे के चमत्कार पर पूर्ण विश्वास हो गया, फिर भी इसबार उन्होंने उसकी तुरंत परीक्षा करनी चाही। शंकर को उसका दाम चुका कर वे चारों एक साथ उस बोरे में बैठ गये। शंकर ने उसका मुँह बाँधकर उसे नदी की तेज धारा में छोड़ दिया। बोरा नदी की तेज धारा में बह गया और चारों ठगों ने जल समाधि ले ली। इस प्रकार अपने पिता के हत्यारों से बदला लेकर एक मोटी रकम के साथ शंकर काशीपुर लौट आया। कहानी से सीख:- सच्चे प्रतिशोध और न्याय के लिए धैर्य, चतुराई और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। शंकर की कहानी यह सिखाती है कि बुरे कर्मों की सजा अंततः मिलती है और सच्चाई की हमेशा जीत होती है। यह भी पढ़ें:- सीख देती मजेदार कहानी: राजा और मधुमक्खी मजेदार हिंदी कहानी: आलसी राजू मजेदार हिंदी कहानी: घमण्डी राजा Fun Story: घमंडी ज़मींदार #Kids Hindi Fun Story #ठगों की कहानी #Hindi story of Thugs #Hindi story of kid's revenge #मजेदार हिंदी कहानी You May Also like Read the Next Article