/lotpot/media/media_files/nYG2GbwdQJZEBJ6f3Qgn.jpg)
मुंशी काका का गुस्सा
सीख देती मजेदार हिंदी कहानी: मुंशी काका का गुस्सा:- मुंशी काका अपने गुस्से से खुद ही दुखी रहते हैं। वह चाहते हैं कि गुस्सा करने की उनकी आदत छूट जाये पर यह आदत छूटती ही नहीं। पहले उन्हें बूढ़े शब्द से नफरत थी, थे तो वह बूढ़े ही लेकिन उन्हें यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी कि कोई उन्हें बूढ़ा कहे।
एक गुस्से भरी घटना
एक दिन गांव का एक बूढ़ा उनसे कुर्ते का कपड़ा खरीद रहा था। मोल-भाव करने के लिए उसने बस इतना ही कहा "बुड्ढे बाबा, आप भी बूढ़े हम भी बूढ़े, सही दाम लगा लो"। ग्राहक की बात सुनकर तो मुंशी काका लगे चिल्लाने "तू मुझे बूढ़ा कहता है, बूढ़ा तू तेरा, सारा खानदान। चल निकल यहां से, मुझे तेरे हाथ कपड़ा नहीं बेचना"। मुंशी काका की चीख पुकार सुनकर आस-पास के दुकानदार भी इकट्ठा हो गए। वह ग्राहक मुंशी काका को इस प्रकार देखता चला गया जैसे वह दूसरे ग्रह के प्राणी हों।
बाद में बड़कऊ भइया ने समझाया तो मुंशी काका की समझ में आ-गया कि बूढ़े को बूढ़ा कहलाने में कैसी शर्म, बात उनकी समझ में आयी और माथा ठंडा हुआ। बस उसी दिन से मुंशी काका ने सोच लिया कि वह गुस्सा कम किया करेंगे।
श्रीकांत मास्टर की सलाह
इसमें उनकी कौन मदद कर सकता है, यह सोचते-सोचते उन्हें श्रीकांत मास्टर की याद आयी। श्रीकांत मास्टर हैं, इसलिए वह उन्हें कोई न कोई रास्ता जरूर सुझायेंगे, उन्होंने सोचा। फिर तो उन्होंने श्रीकांत मास्टर से मिलने की ठान ली।
श्रीकांत मास्टर के घर पहुँचकर मुंशी काका बस रो ही पड़े, "मास्टर साहब, मुझे गुस्सा बहुत आता है, आप ही बताइए मैं क्या करूं? इस गुस्से से मुझे बहुत नुकसान होता है। कल ही की बात है, मैं बाजार जाने के लिए साइकिल पर बैठने लगा कि गिर पड़ा, इस पर मुझे इतना गुस्सा आ गया कि मैं घर से कुल्हाड़ी उठा लाया और उससे साइकिल को कबाड़ बना दिया"।
"आपको जब गुस्सा आए तो पानी पी लिया करें, इससे गुस्सा शांत हो जायेगा। अगर इससे भी गुस्सा शांत न हो तो सौ तक गिनती गिन लिया करें", श्रीकांत ने समझाया।
मुंशी काका को श्रीकांत मास्टर की बात समझ में आ गयी। अब उन्हें जब भी गुस्सा आता, वह श्रीकांत की सलाह पर अमल करते।
गुस्से का परीक्षण
उस दिन बरसात हुई थी। मुंशी काका बाजार से गुजर रहे थे तभी पीछे से साइकिल पर आ रहे एक लड़के ने उन्हें जोर से टक्कर मार दी, जिससे वह कीचड़ में गिर पड़े। उनके पैरों में चोट भी आ गई थी। लड़के ने जब मुंशी काका की हालत देखी तो वह माफी मांगने लगा, पर मुंशी काका का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था। मुंशी काका का गुस्सा देखकर उसने साइकिल उठायी और नौ-दो-ग्यारह हो गया। इस पर गुस्से से भरे मुंशी काका को श्रीकांत मास्टर की सलाह याद आयी और वह लंगड़ाते हुए पास के नल से पानी पीने चले गये। उनके एक पैर में तेज दर्द हो रहा था। पानी पीते-पीते उनका पेट भर गया, लेकिन गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। इस पर वह वहीं खड़े-खड़े गिनती गिनने लगे...एक...दो...तीन।
मुंशी काका को गिनती गिनते देख बहुत से लोग आस-पास इकठ्ठे हो गये।
"क्या बात है बुढ़ऊ?'' एक ने पूछा। उसकी बात सुनकर मुंशी काका का गुस्सा और बढ़ गया। वह जोर-जोर से गिनने लगे चालीस...इकतालिस...बयालिस.।
"लगता है बेचारे का कोई पुर्जा ढीला हो गया है," दूसरा बोला। मुंशी काका चीख चीख कर गिनने लगे “'अस्सी...इक्क्यासी।
तभी वहां खड़ा मुबारक बोल पड़ा "क्यों भाई लोगों, बुढ़ऊ सुबह तक तो ठीक था"।
बस मुंशी काका ने किसी तरह गिनती पूरी की और फिर मारने के लिए छतरी लेकर दौड़ पड़े। लोग तुरन्त भाग खड़े हुए।
इधर श्रीकांत मास्टर भी बाजार की तरफ जा रहे थे। भगदड़ देखकर उन्होंने भागते हुए एक आदमी से पूछा "क्या हुआ भाई क्या कोई झगड़ा हुआ है?"
"नहीं, मुंशी काका छाता लिये इधर ही आ रहे हैं, वह व्यक्ति बोला फिर उसने मुंशी काका के साथ हुए पूरे हादसे को दोहरा दिया और यह भी बता दिया कि वे भरपेट पानी पी कर सौ तक गिनती भी गिन रहे थे।
श्रीकांत मास्टर का डर
अब तो श्रीकांत मास्टर समझ गये कि इतना सब होने के बाद मुंशी काका उनके घर ही धमकेंगे, उसके बाद की कल्पना से ही वह सिहर गया। वह समझ गये मुंशी काका पूरे मोहल्ले को ही चिल्ला कर हिला देंगे। वह उल्टे पांव घर आ गये और पड़ोसी से कह कर अपने घर के दरवाजे पर ताला लगवा दिया ताकि लोग समझें कि मास्टर जी बाहर गये हैं। बस वो दिन है और आज का दिन मुंशी काका श्रीकांत मास्टर को ढूंढ रहे हैं और श्रीकांत मास्टर उनको देखकर छुप जाते हैं।
कहानी से सीख: यह कहानी गुस्से पर नियंत्रण और इसके हास्यपद परिणामों के बारे में है, जो पाठकों को न सिर्फ हंसी दिलाती है बल्कि गुस्से को सही तरीके से प्रबंधित करने की भी सलाह देती है।