Fun Story: सच्चा मित्र

हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। काली घटाएं पूरी तरह छा गई थीं। मेढ़क आनंद से उछल-कूद रहे थे। प्रयोगशाला में जीवविज्ञान के विद्यार्थियों को मेढ़क के बाहय एवं आंतरिक भाग की ठोस जानकारी देने के लिए अध्यापक ने एक मेढ़क मंगवाया।

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सच्चा मित्र

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Fun Story सच्चा मित्र:- हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। काली घटाएं पूरी तरह छा गई थीं। मेंढक आनंद से उछल-कूद रहे थे। प्रयोगशाला में जीवविज्ञान के विद्यार्थियों को मेढ़क के बाहय एवं आंतरिक भाग की ठोस जानकारी देने के लिए अध्यापक ने एक मेढ़क पकड़कर मंगवाया और उसका निरीक्षण किया। सभी विद्यार्थियों ने बड़े चाव से मेढ़क के भीतरी नसों को देखा। दीपक भी वहाँ उपस्थित था। उसकी नजरों में चमक थी। (Fun Stories | Stories)

मध्यांतर होते ही दीपक अपने कुछ साथियों के साथ स्कूल के बगल वाले तालाब के पास जा पहुंचा। वहां पर वे मेंढ़क की उछल-कूद का आनंद लेने लगे। दीपक किसी बड़े मेंढ़क को पकड़ने की प्रतीक्षा कर रहा था। जब कोई बड़ा मेंढ़क तालाब से बाहर नहीं आया, तो उसने तालाब के भीतर जाने की ठान ली। वह मेढ़क को घर ले जाकर उसका अच्छी तरह से अवलोकन करना चाहता था। उसे मना करते हुए अरविन्द ने कहा, "नहीं दीपक, पानी के अंदर मत जाओ। देखते नहीं, बारिश भी हो रही है। हां, और तुम तैरना भी नहीं जानते। तुम्हें मालूम है, इसकी सतह लगभग दस फुट नीचे है"। मुकेश ने कहा।

cartoon image of school boys near a pond

"ओफ यार, तुम नाहक ही परेशान हो रहे हो। मैं यों गया और यों आया"। कहकर दीपक ने तालाब में छलांग लगा दी।  एक मेंढक, जो दीपक के सामने ही था, छपाक की आवाज के साथ पानी में चला गया। बस दीपक के सामने समस्या खड़ी हो गई। वह तैरना नहीं जानता था। चारों ओर पानी देखकर वह घबरा गया और अपना संतुलन खो बैठा। अब वह हाथ-पांव मारते हुए चिल्लाने लगा "बचाओ-बचाओ"! शीघ्र ही पानी उसके मुंह तक आ गया। (Fun Stories | Stories)

अरविंद, मुकेश तथा अन्य साथी चारों ओर जोर-जोर से आवाजें देने लगे, किंतु बादलों की गड़गड़ाहट के कारण आवाज लोगों तक ठीक से नहीं पहुंच पा रही थी। आसमान की ओर देखते ही विद्यार्थियों का भय और बढ़ गया। कुछ विद्यार्थी स्कूल की तरफ भागे और कुछ तालाब के चारों ओर आकर खड़े हो गए। सभी दीपक पर तरस खा रहे थे।

cartoon image of a school boy drowning in a pond

अचानक अरविंद दौड़ता हुआ आया। उसके एक हाथ में एक वृक्ष की कुछ सूखी टहनियां और दूसरे हाथ में बरगद की एक नरम टहनी थी। उसने कहा, "साथियों, हमें किसी तरह दीपक को बचाना है"। 

"सो तो ठीक है, लेकिन तुम इस नाजुक लकड़ी से क्या करोगे?" मुकेश ने  पूछा।

"सुनो यार, तुम ये दो लकड़ियां कसकर पकड़े रहो। मैं बरगद की इस नरम टहनी से इन दो लकड़ियों को जोड़कर लपेटता हूं"। (Fun Stories | Stories)

सभी विद्यार्थी उत्सुकतावश उसे ऐसा करते हुए देखने लगे। इसके बाद उन्होंने तालाब में उस लंबी लकड़ी को डालकर टटोला। दीपक पानी में...

सभी विद्यार्थी उत्सुकतावश उसे ऐसा करते हुए देखने लगे। इसके बाद उन्होंने तालाब में उस लंबी लकड़ी को डालकर टटोला। दीपक पानी में बेसुध हो गया था। उसका हाथ किनारे के पत्थर पर था, जिससे उसकी पकड़ निरंतर ढीली होती जा रही थी। इसके पूर्व कि उसका हाथ पत्थर से अलग होता, उसके मित्रों ने पूरे वेग से उसे पत्थर से टिकाए रखा। मुकेश ने दौड़कर पास पड़ी सूखी ईख उठाई तथा उसका सहारा पकड़कर दीपक को बाहर निकालने की योजना बनाई। वर्षा अब थम चुकी थी। उनके स्कूल में पढ़ाई भी चालू हो चुकी थी। सभी विद्यार्थी दीपक को बाहर निकालने के लिए नई-नई तरकीब सोच रहे थे, जबकि दीपक अभी भी बेहोशी की हालत में था, धीरे-धीरे अन्य लोग भी तालाब के पास इकट्ठे हो गए। सभी नाना प्रकार के परामर्श देने लगे। उसी समय एक साथी की निगाह एक राहगीर के हाथ में झूलती हुई चेन पर पड़ी, जिसमें मोटरसाइकिल की चाबी थी। उसका मुंह एक कोण की तरह मुड़ा हुआ था। उसके दिमाग में एक तरकीब आयी। उसने कहा, "चाचाजी कुछ देर के लिए आप अपनी चाबी देंगे?" (Fun Stories | Stories)

"हां-हां जरूर बेटे पर क्यों?" राहगीर ने उन्हें चाबी थमाते हुए पूछा।

"धन्यवाद, मैं फिर बताऊंगा"। कहकर मुकेश चाबी लेकर अरविंद तथा अन्य साथियों के पास पहुंचा। अपनी योजनानुसार उसने वह चेन लगी चाबी लेकर सूखी टहनी के सामने बांध दी। इसके बाद सभी दौड़ते हुए तालाब के किनारे पहुंचे। दो-तीन साथियों ने कसकर सिरा दीपक की कमीज में लटका दिया। अब सारे विद्यार्थियों ने संभालकर वह सूखी टहनी पकड़ी और हल्के हाथों से खींचना आरंभ किया। तब सभी खुशी से झूम उठे, जब दीपक धीरे से ऊपर खिंचता चला आया। पानी छिड़कते ही दीपक को होश आ गया। उसने धुंधली आंखों से चारों ओर देखा। फिर बोला, "मैं कहां हूं? तुम सब मुझे क्‍यों घूर रहे हो?" (Fun Stories | Stories)

थोड़ी देर में दीपक को पूरी तरह से होश आ गया। पूरी बात समझ लेने के बाद उसने कहा, "यार, मैं अपने किए पर शर्मिंदा हूं, मैं किस तरह तुम लोगों का शुक्रिया अदा करूं?"

"देखो यार, हमनें तो अपना फर्ज पूरा किया। हां, तुम यह वादा करो कि फिर कभी ऐसी हरकत नहीं करोंगे"। अरविंद ने कहा।

मैं वादा करता हूं कि तुम्हारे जैसे सहृदयी मित्रों के साथ रहूंगा तथा ऐसा काम नहीं करूंगा, जिससे दूसरों को परेशानी उठानी पड़े"। दीपक ने तौबा की।

"क्या कहते हो यार, हम दूसरे हैं?" मुकेश ने पूछा।

"म..मेरा कहने का वह मतलब नहीं था"।

"अरे, छोड़ो भाई, मित्र वही है जो मुसीबत में काम आए, समझे"। मुकेश ने हंसकर कहा। 

फिर सभी स्कूल की ओर चल पड़े। (Fun Stories | Stories)

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