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एक असाधारण अनुभव
हिंदी नैतिक कहानी: एक असाधारण अनुभव:- सामान्य दृष्टि वाले लोग अक्सर वह सब कुछ नहीं देख पाते जो उनके सामने होता है। इसके विपरीत वे लोग जो दृष्टि विहीन होते हैं अपने सामने की सभी वस्तुओ को ध्यान पूर्वक अपने ज्ञान में समा लेते हैं। रेल में यात्रा करते समय एक बार मुझे इस अंतर का आभास हुआ। मेरे साथ मेरे सामने बर्थ पर बैठी हुई सहयात्री हाफ कट बालों वाली लड़की थी जो देखने में सुन्दर और आकर्षक भी थी।
मुझे उससे बातचीत शुरू करने में हिचकिचाहट हो रही थी। मुझे डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाये और मुझे झिड़क दे।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने स्वंय बातचीत शुरू कर दी। “मुझे केवल एक स्टेशन तक यात्रा करनी है हो सकता है स्टेशन पर मेरे चाचा मुझे लेने आ जाएं। वैसे आप कहां तक जा रहे हैं?”
“छुट्टियां समाप्त हो गई हैं और मैं वापस स्कूल जा रहा हूं”।
“मैं भी बहुत दिन पहले स्कूल जाती थी। स्कूल के दिन कितने अच्छे होते हैं। होते हैं न?”
मैने उत्तर दिया, “सदा अच्छे नहीं होते। कभी कभी बहुत नीरस भी होते हैं”।
लड़की ने बात चीत जारी रखते हुए कहा, “नीरस तो कभी कभी रेल यात्रा भी हो सकती है पर सदा...
लड़की ने बात चीत जारी रखते हुए कहा, “नीरस तो कभी कभी रेल यात्रा भी हो सकती है पर सदा ऐसा नहीं होता। खिड़की से बाहर देखने पर हर क्षण कुछ नया होता दिखता है” इतनी बातचीत के बाद मेरा संकोच कम हो गया था। मैंने साहस जुटा कर कहा, “तुम्हारा चेहरा बहुत आकर्षक है”।
मैं जानता था कि सभी लड़कियां यह पसंद करती हैं कि उनकी सुन्दरता की प्रशंसा की जाए। इस कारण डांट खाने की कोई सम्भावना नहीं थी। “धन्यवाद! मैं चाहती थी कि मेरी ऊचांई थोड़ी और अधिक होती-पर अब इस विषय में कुछ भी करना सम्भव नही है”।
“शायद तुम्हारा स्टेशन आने वाला है” मुझे दुख हो रहा था कि हमारा साथ शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा। गाड़ी की रफ्तार धीमी होने लगी थी। लड़की ने सावधानी से अपना सामान समेट लिया। गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफार्म पर आकर रूक गई।
स्टेशन पर लड़की के चाचा उसे लेने आये हुए थे। जाते हुए उसने मुझे गुडबाय कहा और मुझे लगा कि सब कुछ समाप्त हो गया है।
मैं वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ गया। मेरे सामने अब एक नया यात्री था जो वहीं से चढ़ा था। बिना किसी परिचय के वह यात्री बोला, “आप का एक सुन्दर सहयात्री बिछड़ गया है वैसे आपको उसमें सबसे आकर्षक क्या दिखा था?”
एक अपरिचित व्यक्ति द्वारा किया गया यह प्रश्न बहुत अटपटा सा था।
पर मैं अपने आपको रोक नहीं सका। मेरे मुंह से अक्समात ही शब्द निकल पड़े “निश्चय ही उसकी आंखे”।
“उनका उसके लिये कोई उपयोग नहीं है। आपने ध्यान नहीं दिया वह लड़की पूर्ण रूप से अंधी है”।
मैं अन्दर तक हिल गया। मेरे पास सोचने या करने के लिये कुछ भी नहीं बचाा था अतः मैंने निश्चय कर लिया कि मैं अपनी शेष यात्रा में सिर्फ चुप रहूंगा।