हिंदी प्रेरक कहानी: अत्याचार का प्रतीक

करीब तीन सौ वर्ष पहले की बात है। गढ़वाल के पूर्वी क्षेत्र खैरागढ़ में राजा भानशाही का शासन था। राजा सदैव प्रजा के हित का ध्यान रखता था, अत: उसकी प्रजा बहुत सुखी और प्रसन्‍न थी।

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अत्याचार का प्रतीक

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हिंदी प्रेरक कहानी: अत्याचार का प्रतीक:- करीब तीन सौ वर्ष पहले की बात है। गढ़वाल के पूर्वी क्षेत्र खैरागढ़ में राजा भानशाही का शासन था। राजा सदैव प्रजा के हित का ध्यान रखता था, अत: उसकी प्रजा बहुत सुखी और प्रसन्‍न थी। खैरागढ़ सामन्त भी राजा का आदर करते थे वे सदैव उसकी आज्ञापालन करने हेतु तैयार रहते थे। (Motivational Stories | Stories)

खैरागढ़ के समीपवर्ती क्षेत्र कत्यूर का राजा धामशाही एक महत्वाकांशी और अन्यायी राजा था। खैरागढ़ की भूमि पर कब्जा करने की गरज से उसने अचानक आक्रमण करके वहां के भानशाही को दुविधा में डाल दिया। उसके सांमत और सरदार भी धामशाही के छल-कपट को समझ नहीं पाए। वीर योद्धा होने के कारण उन्होंने संघर्ष किया। अचानक होने वाले आक्रमण तथा युद्ध की तैयारी न होने की वजह से राजा भानशाही को खैरागढ़ से पलायन करना पड़ा। धामशाही के आतंक तथा अमानवीय आचरण के कारण वहां की प्रजा भी भयभीत हो गई। लोगों का जीना दूभर हो गया।

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खैरागढ़ के हारे हुए सामंत एवं सरदार भी बहुत दुखी थे। वे भी अपरिचित स्थानों पर जाकर बदला लेने की योजना बनाने लगे थे। इनमें खैरागढ़ का...

खैरागढ़ के हारे हुए सामंत एवं सरदार भी बहुत दुखी थे। वे भी अपरिचित स्थानों पर जाकर बदला लेने की योजना बनाने लगे थे। इनमें खैरागढ़ का सांमत भूपू भी था। वह अपने दो पुत्रों भगतू और पंतू तथा पुत्री तीलू रौतेली और अपनी पत्नी के साथ सराई क्षेत्र में छिपकर जीवन-यापन कर रहा था। मगर धामशाही के लोग खैरागढ़ के वफादार सांमतो और सरदारों का पता लगाकर उन्हें मौत के घाट उतार रहे थे। एक दिन उन्होंने सराई क्षेत्र में भूपू सांमत को घेर लिया और छलपूर्वक मार डाला। (Motivational Stories | Stories)

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उसके दो पुत्र सराई से तो निकल गए किन्तु कांडा क्षेत्र में उन दोनों को भी धामशाही के अत्याचारी सैनिकों ने मार डाला। अबोध तीलू, रौतेली और उसकी मां शत्रुओं से बचते-बचाते कांडा के पास अज्ञात में जा बसी।

कोई सात वर्ष तक तीलू की मां ने संघर्ष के साथ दिन गुजारकर उसे विवाह योग्य किशोरी बनाया। उसका पालन पोषण किया। तीलू रौतेली को मां ने उस दुर्घटना से अपरिचित रखा जिसमें उसके पिता तथा भाइयों की जान चली गयी थी।

एक दिन की बात है, किशोरी तीलू रौतेली की सहेलियों ने उसे कांडा में लगने वाले मेले में चलने को कहा। तीलू ने जब मां से मेले में जाने की आज्ञा चाही तो उसे कांडा में शहीद हुए अपने दो बच्चों की याद हो आई। बोली "तू कांडा जा रही है बेटी! वहां तेरे दो भाइयों को दुश्मनों ने मौत के घाट उतार दिया था"।

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तीलू रौतेली इतना सुनकर एकदम चौंक गयी। उसका चेहरा पीला पड़ गया। मां को झकझोर कर पूछा- "क्या कह रही हो मां? कांडा मे मेरे दो भाईयों को किसने मारा? क्यों मारा?" (Motivational Stories | Stories)

मां ने कातर दुख की पीड़ा के साथ बेटी तीलू रौतेली को खैरागढ़ के पराभाव तथा उसके पिता और भाइयों के शहीद हो जाने की पूरी कहानी सुना दी। उसे यह भी बताया कि कत्यूर का राजा धामशाही उसके परिवार के उजड़ने का दोषी है।

तीलू भी वीर पिता की वीर पुत्री तथा बहादुर भाइयों की बहन थी। उसने यह दर्दभरी कहानी सुनी तो क्रोध से उसका रोम-रोम कांप उठा। उसने उसी समय प्रतिज्ञा की- "जब तक वह अपने पिता तथा भाइयों के हत्यारे से बदला लेकर उसे परलोक नहीं पहुंचा देगी तब तक चैन से नहीं बैठेगी"। उसने उसी क्षण से इस बारे में सोचना आंरभ कर दिया। तीलू आसपास बसे खैरागढ़ के परास्त सामंतों और सरदारों से मिली और युद्ध की तैयारी मे जुट गयी। उसकी ललकार सुनकर कितने ही जवान उसके साथ संघर्ष करने को उद्यत हो गए। इस प्रकार किशोरी तीलू रौतेली के नेतृत्व में कत्यूरों के विरूद्ध युद्ध का अभियान शुरू हुआ।

अपनी लगन, अदम्य साहस और नेतृत्व शक्ति के कारण उसने पहले खैरागढ़ जीता। बदला लेने को आतुर वीर गढ़वाली सैनिकों के सहयोग से उसने रमोली खान पर अधिकार कर लिया। वह देवी की उपासिका थी। अतः उसने भौन नामक स्थान पर 'मैनदेवी' तथा उमरावगढ में 'बंगदेवी' के मन्दिरों की स्थापना की। तीलू ने मन्नत मांगी की विजयी होकर लौटने पर मां को छत्र चढ़ायेगी। (Motivational Stories | Stories)

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तीलू अपने सैनिकों के साथ वेगपूर्ण गति से आगे बढ़ रही थी। मिलगना, भौन, कांतियारवाल और चौखूंटिया क्षेत्रों को अपने शौर्य से जीतती वह अल्मोड़ा तक जा पहुंची। सराई क्षेत्र में घमासान युद्ध हुआ। तीलू रणचण्डी बनकर शत्रुसेना पर टूट पड़ी। उससे पहले कि वह कांडा पहुंचती, धामशाही ने कांडा पर हमला करके उसकी गति को रोक दिया। वह आगे जाने की बजाय वापस खैरागढ़ लौट पड़ी।

रास्ते में एक स्थान पर उसका काफिला विश्राम के लिए नदी किनारे रूका। नदी में जब तीलू निश्चिंत होकर स्नान कर रही थी तो रजवाड़े के एक गद्दार ने शस्त्ररहित अवस्था में उसपर घातक हमला किया। तीलू सम्भलती उससे पहले ही शत्रु ने तलवार से वार करके उसे परलोक पहुंचा दिया।

तीलू शहीद हो गयी। उसने साहस और शौर्य के साथ मौत को गले लगा लिया। वह टूट गयी पर झुकी नहीं। उसने जीवन रहते शत्रु के दांत खट्टे किये और अपनी आन के लिए जीवन का बलिदान कर दिया। उसके साहस और शौर्य की गाथाएं आज गढ़वाल के साथ-साथ पूरे भारत देश में पाई गयी हैं। (Motivational Stories | Stories)

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