हिंदी नैतिक कहानी: दो पुत्रियों की माता:- अरी सुन! किसान ने पत्नी को पुकारा और बाल्टी में चूना घोलने लगा। पत्नी आवाज़ सुनकर आ गयी और किसान के कामों में सहयोग करने लगी। उसकी दो बेटियां भी थीं- फूलमती और वीरमती! दोनों ही मां-बाप के कार्यों में हाथ बंटाने लगीं। घर की रंगाई-पुताई शीघ्र ही पूरी हो गयी। शाम को लक्ष्मी की पूजा हुई। इसके बाद घर आंगन में दीपों की कतारें सजा दी गईं। किसान खुश था उसकी पत्नी खुश थी, बेटी फूलमती और वीरमती भी खुश थीं। उन्होंने दिवाली खूब मनायी। धीरे-धीरे दोनों लड़कियां जवान हो गयीं। किसान ने फूलमती की शादी कंचनपुर गांव में कर दी और वीरमती की... धीरे-धीरे दोनों लड़कियां जवान हो गयीं। किसान ने फूलमती की शादी कंचनपुर गांव में कर दी और वीरमती की बड़हेट ग्राम में। दोनों लड़कियां ससुराल चली गयीं। भाग्य की बात थी कि फूलमती को घर धनी और सुखी मिला पर वीरमती का ससुराल निर्धन था। बेचारी एक अच्छी साड़ी भी नहीं पहन सकती थी। एक साल बाद दिवाली का त्यौहार फिर आ गया। किसान अपनी दोनों पुत्रियों को बुला लाया। फूलमती गहनों से लदी थी मगर वीरमती के पास एक छल्ला तक नहीं था। वह साधारण कपड़े पहने थी। फूलमती के गहने देखकर मां का हृदय बदल गया। वह फूलमती का खूब स्वागत करने लगी किन्तु वीरमती से बात भी नहीं की। वह बेचारी पराई जैसी एक किनारे में बैठी थी। रात में लक्ष्मी जी का पूजन प्रारंभ हुआ। उनकी आरती उतारी गयी फिर मां लड्डूओं की थाली उठाकर फूलमती के पास आ गयी- “लो बेटी, खाओ न”। वीरमती यह सब देख रही थी। उसकी मां ने एक बार भी उससे खाने को न कहा। वह दुख और अपमान से लाल हो उठी। अब घर में ठहरना उचित नहीं था फूलमती और माता से बात किए बिना वीरमती अकेली अपने घर आ गयी। उसके बच्चे सो चुके थे। वीरमती भी उनके समीप लेट गयी। अचानक किसी की आवाज़ सुनाई पड़ी- “बेटी! दरवाजा खोलो”। कुण्डी खोल वीरमती बाहर निकल आयी। देखा एक बुढ़िया लाठी के सहारे खड़ी है। उसकी सूरत भी एकदम डरावनी और काली थी। वीरमती को देखकर वह बोली, “कुछ खाने को दो बेटी”। मेरे पास तो कुछ भी नहीं है माता जी, वीरमती ने सकुचा कर कहा। बुढ़िया पुनः बोली- “घास पात ही उबाल कर खिला दो”। वीरमती ने बुढ़िया को अन्दर बुला लिया और घास उबालकर ही आदर के साथ खिला दी। फिर हाथ जोड़कर बोली- “मैं सच कहती हूं माता जी, मेरे पास इस समय खिलाने को कुछ नहीं है”। बुढ़िया मुस्कुरायी और लाठी टेकती हुई कुछ ही क्षणों में अंतर्ध्यान हो गयी। इसके बाद वीरमती के घर से दरिद्रता जाती रही। वह धनी हो गयी। एक से एक कपड़े गहने उसके शरीर पर झूलने लगे। इस बात की खबर जब उसकी माता को मिली तो ढ़ेर सारा पकवान लेकर वह बेटी से मिलने आयी। बेटी ने पकवान उठाकर गहने-कपड़ों को संबोधित कर कहने लगी, “खा मेरे टीका, खा मेरे झुमका, खा मेरी साड़ी”। मां चैंकी- “यह क्या करती है? गहने कपड़े नहीं खाते हैं?” “हां मां, इसी की वजह से तो तुम फूलमती से आग्रह करती थी”। सुनकर मां लज्जित हो गयी। और उसने अपनी बेटी से माफी मांगी। यह भी पढ़ें:- हिंदी नैतिक कहानी: अपनी अपनी रूचि हिंदी नैतिक कहानी: शरारत का फल बच्चों की नैतिक कहानी: बात बहुत छोटी सी Moral Story: विश्वास की जीत